Fact Check: कुर्सियों के बीच से निकलते इन पेड़ों का विश्वयुद्ध से नहीं है कोई संबंध, यह एक आर्ट इंस्टालेशन है

Vishvas News ने अपनी पड़ताल में पाया कि वायरल दावा झूठा है। वायरल तस्वीर साल 2001 में बेल्जियम में हुई एक आर्ट इंस्टॉलेशन की है। इसका किसी विश्वयुद्ध से कोई लेना-देना नहीं है।

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज़)। सोशल मीडिया पर वायरल एक तस्वीर में कुछ कुर्सियों के बीच में से पेड़ों को निकलते देखा जा सकता है। पोस्ट के साथ दावा किया जा रहा है कि यह कुर्सियां 1939 में पोलैंड देश में एक शादी के लिए रखी गई थीं,पर अचानक दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो गया और जर्मनी ने पोलैंड पर हमला कर दिया। इसके बाद वहां मौजूद सारे लोग शादी को छोड़कर चले गए और समय के साथ इन कुर्सियों के बीच से पेड़ निकल आया।

Vishvas News ने अपनी पड़ताल में पाया कि वायरल दावा झूठा है। यह फ्रांसीसी आर्टिस्ट पैट्रिक डेमेजॉ के द्वारा बनायी गयी एक आर्ट इंस्टॉलेशन है।

क्या है वायरल वीडियो?

वायरल तस्वीर में कुछ कुर्सियों के बीच में से पेड़ों को निकलते देखा जा सकता है। पोस्ट के साथ दावा किया जा रहा है (अनुवादित) “ये कुर्सियां साल 1939 में पोलैंड की एक शादी में मेहमानों के लिए रखी गई थीं, पर अचानक दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो गया और जर्मनी ने पोलैंड पर हमला कर दिया। इसके बाद लोग आयोजन को छोड़कर चले गए। कई साल बाद पता लगा कि उस जगह पर रखी कुर्सियों के बीच में से पेड़ निकल आए हैं। तबसे इन कुर्सियों को हर साल पेंट किया जाता है।”

वायरल पोस्ट का आर्काइव लिंक यहां देखा जा सकता है।

पड़ताल

अपनी जांच शुरू करने के लिए हमने सबसे पहले इस तस्वीर को गूगल रिवर्स इमेज पर सर्च किया। हमें यह तस्वीर https://arthur.io/ पर मिली। Arthur एक डिजिटल म्यूजियम है और इस तस्वीर के साथ लिखे डिस्क्रिप्शन के अनुसार, यह एक आर्ट इंस्टॉलेशन है जिसे “The Four Seasons of Vivaldi” नाम दिया गया है। इसके आर्टिस्ट का नाम पैट्रिक डेमाजॉ है।

पैट्रिक डेमाजॉ की वेबसाइट से हमें calameo.com का एक लिंक मिला। यहाँ इस आर्ट इंस्टालेशन के बारे में पूरी जानकारी थी। डिस्क्रिप्शन के अनुसार, यहाँ आर्टिस्ट पैट्रिक ने एक संगीत के कंसर्ट की कल्पना की थी और यह आर्ट इंस्टॉलेशन 2001 में बेल्जियम में बनाया गया था। यहां हमें कुर्सियों वाले इस आर्ट इंस्टॉलेशन की कुछ और तस्वीरें भी मिलीं।

हमने इस विषय में पुष्टि के लिए पैट्रिक डेमाजॉ से मेल के ज़रिये संपर्क साधा। उनकी टीम से आये रिप्लाई में कहा गया, “यह 2001 का आर्ट इंस्टॉलेशन है। इसका किसी विश्वयुद्ध से कोई लेना-देना नहीं है। यह एक कंसर्ट की परिकल्पना है, जहाँ पेड़ आर्टिस्ट हैं।”

इस पोस्ट को फेसबुक यूजर Sreekanth Kalas Sree ने साझा किया था। इस प्रोफ़ाइल को यूजर ने लॉक कर रखा है इसलिए उनकी कोई जानकारी मौजूद नहीं है।

निष्कर्ष: Vishvas News ने अपनी पड़ताल में पाया कि वायरल दावा झूठा है। वायरल तस्वीर साल 2001 में बेल्जियम में हुई एक आर्ट इंस्टॉलेशन की है। इसका किसी विश्वयुद्ध से कोई लेना-देना नहीं है।

False
Symbols that define nature of fake news
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