विश्वास न्यूज़ ने अपनी पड़ताल में पाया कि तस्वीर में नज़र आ रही महिलायें ना ही बांग्लादेश की फ्रीडम फाइटर हैं और ना ही जबरन धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बनीं। वायरल की जा रही यह तस्वीर बांग्लादेश की लिबरेशन वॉर की नहीं, बल्कि उससे पहले की है। यह महिलायें बांग्लादेश की फ्रीडम फाइटर नहीं थी और जन्म से ही मुसलमान थीं। विश्वास न्यूज़ से बात करते हुए इन महिलाओं के पोते ने बताया कि इस पोस्ट के साथ किये जा रहे सभी दावे गलत हैं।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज़)। सोशल मीडिया पर दो तस्वीरों का एक कोलाज वायरल हो रहा है। पहली तस्वीर ब्लैक एंड व्हाइट है और उसमें चार यंग औरतों को एक जीप में बैठे हुए देखा जा सकता है। वहीँ, दूसरी तस्वीर में सेम पोजिशन में चार औरतें जीप पर बैठी हैं और यह तस्वीर कलर्ड है और बैठी हुई सभी औरतें थोड़ी बुज़ुर्ग हैं। अब इस वायरल कोलाज को शेयर करते हुए दावा किया जा रहा है कि पहली तस्वीर में नज़र आ रही यह महिलाएं बांग्लादेश की फ्रीडम फाइटर हैं और यह तस्वीर 1971 की तब की है, जब यह महिलाएं हिन्दू थीं। वहीँ, दूसरी तस्वीर को लेकर यह दावा है कि 50 साल बाद इन महिलाओं ने इसी मंज़र को दोहराया, लेकिन तब तक यह चारों महिलायें मुसलमान बन चुकी थीं।
विश्वास न्यूज़ ने अपनी पड़ताल में पाया कि तस्वीर में नज़र आ रही महिलायें ना ही बांग्लादेश की फ्रीडम फाइटर हैं और ना ही जबरन धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बनीं। वायरल की जा रही यह तस्वीर बांग्लादेश की लिबरेशन वॉर की नहीं, बल्कि उससे पहले की है। यह महिलायें बांग्लादेश की फ्रीडम फाइटर नहीं थी और जन्म से ही मुसलमान थीं। विश्वास न्यूज़ से बात करते हुए इन महिलाओं के पोते ने बताया कि इस पोस्ट के साथ किये जा रहे सभी दावे गलत हैं।
फेसबुक पेज, ‘वोट फॉर बीजेपी’ ने वायरल कोलाज को शेयर करते हुए लिखा, ‘The picture at the top is of four Bangladeshi freedom fighters taken in 1971, during the liberation war against West Pakistan. The photo below has been taken recently, 50 years on. The same women, in the same jeep, with what looks like the same rifles. But if you can’t see what i am showing, you sleeping Hindus. Wake up its is sweeping world”. हिंदी अनुवाद: ‘सबसे ऊपर की तस्वीर चार बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानियों की है, जो 1971 में पश्चिम पाकिस्तान के खिलाफ मुक्ति संग्राम के दौरान खींची गयी थी। नीचे दी गई तस्वीर को हाल ही में 50 साल होने पर लिया गया है। वही महिलाएं, एक ही जीप में, एक ही राइफल के साथ दिखती हैं। लेकिन अगर आप यह नहीं देख सकते हैं कि मैं क्या दिखा रहा हूं, तो आप सो रहे हिन्दू हैं। नींद की दुनिया से जागो”
ट्विटर यूजर ‘आशीष तिवारी’ ने इसी कोलाज को शेयर करते हुए लिखा- ‘ऊपर की तस्वीर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन के समय की है, जब वे हिन्दू थीं, लेकिन आज जब इन महिलाओं ने उसी जीप पर बैठकर फोटो खिंचवाई तो तब तक वो मुस्लिम बन चुकी थी।’
पोस्ट के आर्काइव वर्जन को यहां और यहां देखें।
अपनी पड़ताल को शुरू करते हुए सबसे पहले हमने वायरल की जा रही पहली तस्वीर को क्रॉप किया और गूगल रिवर्स इमेज के ज़रिये सर्च किया। सर्च में हमारे हाथ Pinterest की एक पोस्ट मिली, जिसमें वायरल तस्वीर ही थी और साथ में फोटो क्रेडिट में ‘रेनन अहमद’ लिखा हुआ नज़र आया।
न्यूज़ बांग्ला 24.कॉम पर इसी कोलाज से जुड़ा बांग्ला ज़ुबान में शेयर किया हुआ एक वीडियो मिला, जिसमें बताया गया कि तस्वीर में नज़र आ रही यह महिलाएं मुसलमान ही हैं और इनके नाम हैं, ‘आयशा अहमद, रोकेया अहमद, रशीदा अहमद और शहनारा अहमद’।
अब फेसबुक पर हमने रेनन अहमद को सर्च किया और हमारे हाथ उनकी प्रोफाइल लगी। असल तस्वीर हमें रेनन अहमद के ज़रिये 26 अगस्त 2020 को शेयर हुई मिली। तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा है, ‘1961’. तस्वीर में नज़र आ रही महिलाओं की और भी ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें हमें इस प्रोफाइल पर मिलीं।
विश्वास न्यूज़ ने रेनन अहमद से फेसबुक के ज़रिए संपर्क किया और वायरल पोस्ट उनके साथ शेयर की। उन्होंने हमें बताया कि यह तस्वीर उनके दादा जी ने लिबरेशन वॉर से पहले खींची थी, तस्वीर में नज़र आ रही यह महिलायें उनकी रिश्ते की दादियां हैं उनमें उनकी असल दादी भी हैं। इन महिलाओं का स्वतंत्रता सेनानी और हिन्दू होने का दावा गलत है। वहीँ, दूसरी तस्वीर के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह रिक्रिएशन मैंने ही 2017 में किया था। यह एक स्टेजड फोटो था। उन्होंने आगे बताया, ‘उनके दादा शिकार पर जाते थे उनके लौटने के बाद की यह तस्वीर है, जिसमें यह महिलायें बंदूक लिए हुए हैं।
पोस्ट को फ़र्ज़ी दावे के साथ शेयर करने वाले फेसबुक पेज ‘वोट फॉर बीजेपी” की सोशल स्कैनिंग में हमने पाया कि इस पेज को 78,209 लोग फॉलो करते हैं। वहीँ, 9 जनवरी 2018 को यह पेज बनाया गया है।
निष्कर्ष: विश्वास न्यूज़ ने अपनी पड़ताल में पाया कि तस्वीर में नज़र आ रही महिलायें ना ही बांग्लादेश की फ्रीडम फाइटर हैं और ना ही जबरन धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बनीं। वायरल की जा रही यह तस्वीर बांग्लादेश की लिबरेशन वॉर की नहीं, बल्कि उससे पहले की है। यह महिलायें बांग्लादेश की फ्रीडम फाइटर नहीं थी और जन्म से ही मुसलमान थीं। विश्वास न्यूज़ से बात करते हुए इन महिलाओं के पोते ने बताया कि इस पोस्ट के साथ किये जा रहे सभी दावे गलत हैं।
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