डेनमार्क में मुस्लिम समुदाय को मताधिकार से वंचित करने वाले कानून को पास किए जाने का दावा फेक है और यह दावा समय-समय पर सोशल मीडिया पर वायरल होता रहा है। डेनमार्क के कानून के मुताबिक, वहां 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी व्यक्ति को मत देने का अधिकार है, जो डेनमार्क का नागरिक है और वहां रह रहा है।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया पर वायरल एक इन्फोग्राफिक्स को लेकर यह दावा किया जा रहा है कि डेनमार्क ने संसद में कानून बनाकर मुस्लिम समुदाय के लोगों के मताधिकार या वोट देने के अधिकार को वापस ले लिया है।
विश्वास न्यूज ने अपनी जांच में इस दावे को फेक पाया। डेनमार्क की संसद ने किसी भी समुदाय को मताधिकार से वंचित किए जाने वाले कानून को पास नहीं किया है। हालांकि, पिछले साल डेनमार्क की संसद ने उस कानून को पास कर दिया, जो धार्मिक ग्रंथ के अपमान की घटना को गैर-कानूनी बनाता है।
फेसबुक यूजर ‘Birjesh Kumar’ ने वायरल पोस्ट (आर्काइव लिंक) को शेयर करते हुए लिखा है, “जय श्री राम किसी किसी देश से सीखना ही पड़ता है।”
कई अन्य यूजर्स ने इस इन्फोग्राफिक्स को समान और मिलते-जुलते दावे के साथ शेयर किया है।
अगर डेनमार्क में किसी समुदाय विशेष को मताधिकार से वंचित किया गया होता, तो यह बड़ी खबर होती और इसका जिक्र इंटरनैशनल मीडिया में होता। सर्च में हमें ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं मिली, जिसमें डेनमार्क में ऐसे किसी कानून को संसद के द्वारा पारित किए जाने का जिक्र हो, जो मुस्लिम समुदाय को उसके मताधिकार से वंचित करता है।
हालांकि, न्यूज सर्च में हमें कई रिपोर्ट्स जरूरी मिली, जिसमें पिछले साल डेनमार्क की संसद के ऐसे कानून को पास किए जाने का जिक्र है, जो देश में किसी भी धार्मिक ग्रंथ के अपमान की घटना को गैर-कानूनी बनाता है।
एपीन्यूज.कॉम की सात दिसंबर 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, “डेनमार्क की संसद में गुरुवार को एक नया कानून पारित किया गया, जो देश में किसी भी पवित्र ग्रंथ के अपमान की घटना को गैर-कानूनी बनाता है।”
रिपोर्ट के मुताबिक, यह नया कानून हाल ही में मुस्लिम धर्म ग्रंथ के अपमान की घटना के बाद सामने आया है, जिसका कई मुस्लिम देशों ने विरोध किया था।
कई अन्य रिपोर्ट्स में भी इसका जिक्र है।
नॉर्डिक को-ऑपरेशन की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, “अगर कोई भी व्यक्ति 18 साल की उम्र का है और डेनमार्क का नागरिक है और डेनमार्क में रहता है, तो वहां अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकता है।”
ऐसा पहली बार नहीं है, जब यह दावा सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। इससे पहले भी अलग-अलग मौकों पर यह दावा समान संदर्भ में वायरल होता रहा है, जिसकी जांच रिपोर्ट को यहां पढ़ा जा सकता है।
इससे पहले जब यह दावा वायरल हुआ था, तब हमने भारत स्थित डेनमार्क दूतावास से संपर्क किया था। जवाब में मिनिस्टर काउंसलर स्टीन मैल्थ हैनसेन ने बताया था, “वायरल पोस्ट में किया जा रहा दावा सही नहीं है। ऐसा कोई कानून पास नहीं किया गया है।”
निष्कर्ष: डेनमार्क में मुस्लिम समुदाय को मताधिकार से वंचित करने वाले कानून को पास किए जाने का दावा फेक है और यह दावा समय-समय पर सोशल मीडिया पर वायरल होता रहा है। डेनमार्क के कानून के मुताबिक, वहां 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी व्यक्ति को मत देने का अधिकार है, जो डेनमार्क का नागरिक है और वहां रह रहा है।
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