नई दिल्ली (विश्वास टीम)। फेसबुक और वॉट्सऐप पर अखबार की एक क्लिप वायरल हो रही है। इसमें दावा किया जा रहा है हाईकोर्ट ने कहा है कि जून और जुलाई महीने की फीस नहीं लेंगे प्राइवेट स्कूल। विश्वास टीम ने जब इस मैसेज की पड़ताल की तो यह फर्जी निकला। देश के किसी भी हाइकोर्ट ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है। जो मैसेज वायरल हो रहा है, वह एक साल पुराना पाकिस्तान के कोर्ट का आदेश है।
विश्वास टीम के कई यूजर्स ने हमें अखबार की एक पुरानी कटिंग भेजते हुए सच्चाई बताने को कहा। अखबार की खबर की हेडिंग है – जून व जुलाई माह का फीस नहीं लेंगे प्राइवेट स्कूल : हाईकोर्ट
13 लाइन की इस खबर में दावा किया गया है कि हाईकोर्ट ने आदेश जारी करते हुए कहा है कि प्राइवेट स्कूल जून और जुलाई की फीस नहीं लेंगे। खबर में बकायदा कोर्ट का ऑर्डर नंबर भी दिया गया है।
सोशल मीडिया में फैल रहे इस मैसेज में लिखा है कि कोई भी प्राइवेट स्कूल ऐसा करता है कि उसकी शिकायत जिला शिक्षा अधिकारी से की जा सकती है। ऐसे स्कूलों को काली सूची में डाला जा सकता है। साथ ही, वह स्कूल अदालत के अवमानना का दोषी भी माना जाएगा।
विश्वास टीम ने वायरल हो रही अखबार की क्लिप की ध्यान से पढ़ा। वायरल खबर की हर लाइन में कोई न कोई हिंदी की गलती थी, जबकि कोई भी अखबार इतनी गलती नहीं करता। इसके अलावा खबर में हाईकोर्ट का जिक्र है, लेकिन पूरी खबर में यह नहीं बताया गया है कि कौन-से हाईकोर्ट ने ऐसा निर्णय दिया है। इससे भी शक और गहरा गया। इसके अलावा भारत में सामान्यत: मई और जून में स्कूलों में अवकाश रहता है, जबकि खबर में कहा गया है कि जून और जुलाई।
इसके बाद हमने सबसे पहले गूगल में इस खबर को सर्च करने का फैसला किया। गूगल से हमें पता चला कि यह मैसेज अलग-अलग फॉर्मेट में एक साल से वायरल हो रहा है। इस बार यह एक बार फिर से अखबार की कटिंग के रूप में फैला है।
विश्वास टीम को दैनिक जागरण और आईनेक्स्ट की वेबसाइट पर एक साल पुरानी खबरें मिलीं। इन खबरों के अनुसार, यह रिट भारत की किसी भी कोर्ट की नहीं है, बल्कि हाईकोर्ट सिंध व कराची में डाली गई थी। दैनिक जागरण ने यह खबर 10 मई 2018 को प्रकाशित की थी।
वायरल हो रही पोस्ट में आदेश संख्या सीपी नं – 5812/2015 एसओ (जी-111)एसई2एल/पीएस/एचएस/3-859/18 लिखा हुआ है। इसे हमने गूगल में सर्च किया तो सच्चाई अब खुलकर सामने आ गई। गूगल में केस नंबर डालकर सर्च किया तो हमें पता चला कि यह आदेश हाईकोर्ट सिंध व कराची के चीफ जस्टिस जुल्फिकार अहमद खान का है। केस संख्या की बात करें तो वायरल हो रहे मैसेज की केस संख्या और ओरिजनल आदेश की केस संख्या एक ही है। यह केस (CP नंबर D-5812) शाहरुख शकील खान और अन्य ने 2015 में सिंध प्रांत के मुख्य सचिव के खिलाफ दायर किया था। इसका फैसला 7 अक्टूबर 2016 को आया था। इस आदेश में चीफ जस्टिस ने छुट्टियों के दौरान फीस न लेने और फीस के इजाफे की सीमा तय की थी।
अखबार की कटिंग में सासाराम लिखा था, इसलिए हमने बिहार में पटना के डीएवी पब्लिक स्कूल के प्रिंसिपल एके झा से बात की। उन्होंने बताया कि जून-जुलाई माह का स्कूल फीस नहीं लेने के संबंध में न तो कोई लेटर आया है और न ही कोई नोटिफिकेशन जारी हुआ है। इस तरह के फर्जी मैसेज वायरल होते रहते हैं, जिन पर हमलोगों का कभी ध्यान भी नहीं जाता है। साथ ही, ऐसे फर्जी मैसेज से छात्रों व अभिभावकों को भी बचना चाहिए।
निष्कर्ष : विश्वास टीम की जांच में पता चला कि जून व जुलाई में स्कूल फीस वाली पोस्ट फर्जी है। इसका भारत से कोई लेना-देना नहीं है। यह पाकिस्तान से जुड़ी पोस्ट है। इसे जानबूझ कर वायरल किया जा रहा है।
सब को बताएं सच जानना आपका अधिकार है। अगर आपको ऐसी किसी भी खबर पर संदेह है जिसका असर आप, समाज और देश पर हो सकता है तो हमें बताएं। हमें यहां जानकारी भेज सकते हैं। हमें contact@vishvasnews.com पर ईमेल कर सकते हैं। इसके साथ ही वॅाट्सऐप (नंबर – 9205270923) के माध्यम से भी सूचना दे सकते हैं।