Quick Fact Check: फिर वायरल हुआ इटली के डॉक्टरों का कोरोना से मरे व्यक्ति के शव के ऑटोप्सी के दावे वाला फर्जी पोस्ट

इटली में कोरोनावायरस से मृत शव के पोस्टमॉर्टम से जुड़े तमाम दावों वाली वायरल पोस्ट फर्जी है। Disclaimer: विश्वास न्यूज की कोरोना वायरस (COVID-19) से जुड़ी फैक्ट चेक स्टोरी को पढ़ते या उसे शेयर करते वक्त आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि जिन आंकड़ों या रिसर्च संबंधी डेटा का इस्तेमाल किया गया है, वह परिवर्तनीय है। परिवर्तनीय इसलिए ,क्योंकि इस महामारी से जुड़े आंकड़ें (संक्रमित और ठीक होने वाले मरीजों की संख्या, इससे होने वाली मौतों की संख्या) में लगातार बदलाव हो रहा है। इसके साथ ही इस बीमारी का वैक्सीन खोजे जाने की दिशा में चल रहे रिसर्च के ठोस परिणाम आने बाकी हैं और इस वजह से इलाज और बचाव को लेकर उपलब्ध आंकड़ों में भी बदलाव हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि स्टोरी में इस्तेमाल किए गए डेटा को उसकी तारीख के संदर्भ में देखा जाए।

नई दिल्ली (विश्वास टीम)। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट फिर से वायरल हो रही है, जिसके जरिए ऐसे दावे किए जा रहे हैं कि इटली में डॉक्टर्स ने कोरोना से मरे व्यक्ति के शव का पोस्टमॉर्टम किया और पाया कि यह वायरस नहीं, बल्कि बैक्टीरिया है, जिससे मरीज की नसों में खून के थक्के जम जाते हैं और वह मर जाता है। यह भी दावा किया जा रहा है कि लोग असल में एम्प्लीफाइड ग्लोबल 5जी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन जहर से मर रहे हैं। वायरल पोस्ट में कई दावे किए गए हैं। विश्वास न्यूज ने इन तमाम दावों की पहले भी पड़ताल की थी और पाया था कि यह सभी दावे फर्जी हैं।

क्या है वायरल पोस्ट में?

फेसबुक पर इस पोस्ट को Pooja Singh नामक यूजर ने साझा किया था। पोस्ट में लिखा है: “*इटली विश्व का पहला देश बन गया है जिसनें एक कोविड-19 से मृत शरीर पर अटोप्सी (postmortem) का आयोजन किया है, और एक व्यापक जाँच करने के बाद उन्हें पता चला है कि एक वाईरस के रूप में कोविड-19 मौजूद नहीं है, बल्कि यह सब एक गलोबल घोटाला है। लोग असल में “ऐमप्लीफाईड गलोबल 5G इलैक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन ज़हर” के कारण मर रहे हैं।

पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है।

पड़ताल

हमने वायरल पोस्ट में किए गए दावों की एक-एक कर पड़ताल की—

पहला दावा—

इटली में डॉक्टर्स ने कोविड—19 से मृत शरीर पर ऑटोप्सी यानी कि पोस्टमॉर्टम किया और पाया कि कोविड—19 कोई वायरस नहीं है, बल्कि एक बैक्टीरिया है, जिसकी वजह से नसों में खून के थक्के जम जाते हैं और मरीज की मौत हो जाती है।

यह दावा भ्रामक है कि कोविड—19 वायरस नहीं, बैक्टीरिया है। हमें पड़ताल में एक रिसर्च रिपोर्ट मिली। इसके अनुसार, कोरोनावायरस में रेस्पिरेटरी फेल्योर को मौत का मुख्य कारण माना जा रहा है। हालांकि, कई केसेज में ब्लड क्लॉटिंग भी सामने आई है और यह मौत के कारणों में से एक है, लेकिन इसे मुख्य कारण नहीं बताया गया है।

दूसरा दावा

दावा किया गया है कि इटली में यह ऑटोप्सी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के कानून की अवज्ञा करते हुए किया गया है। डब्ल्यूएचओ कोरोना से मरने वालों के शवों की ऑटोप्सी की इजाजत नहीं देता, ताकि यह न पता चल जाए कि यह वायरस नहीं, बल्कि बैक्टीरिया है।

पड़ताल में हमने पाया कि डब्ल्यूएचओ का ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसमें कोरोना से मरने वालों का शव परीक्षण करने से रोका जाता हो। हालांकि, डब्ल्यूएचओ की ओर से जारी गाइडलाइंस में यह जरूर बताया गया है कि कोविड19 से मरने वालों के शवों को किस तरह ट्रीट किया जाए, ताकि मृतकों को संभालने वालों को सुरक्षित किया जा सके और आगे संक्रमण फैलने से रोका जा सके। इसमें मृतक के शव को पैक करने का तरीका भी बताया गया है।

डब्ल्यूएचओ ने यह भी साफ किया है कि कोरोनावायरस एक वायरस है, बैक्टीरिया नहीं।

तीसरा दावा

इसका इलाज एंटीबायोटिक्स, एंटी इन्फ्लेमेटरी या एस्प्रिन से किया जा सकता है।

डब्ल्यूएचओ यह साफ कर चुका है कि कोरोनावायरस एक वायरस है और एंटीबायोटिक्स वायरस पर काम नहीं करते।

चौथा दावा

यह भी दावा किया गया है कि असल में लोगों की मौत एम्प्लीफाइड गलोबल 5G इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन ज़हर के कारण हो रही हैं।

पड़ताल में हमें अप्रेल 2020 में प्रकाशित एक रिपोर्ट मिली। इसके अनुसार, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के लिए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने कहा है कि कोरोनावायरस के लिए हाई स्पीड ब्रॉडबैंड तकनीक 5G जिम्मेदार नहीं है, न ही इन दोनों का कोई तकनीकी आधार है।

पूरा फैक्ट चेक यहां पढ़ा जा सकता है।

फेसबुक पर यह पोस्ट “Pooja Singh” नामक यूजर ने साझा की थी। जब हमने इस यूजर की प्रोफाइल को स्कैन किया तो पाया कि यूजर सोनीपत की रहने वाली है।

निष्कर्ष: इटली में कोरोनावायरस से मृत शव के पोस्टमॉर्टम से जुड़े तमाम दावों वाली वायरल पोस्ट फर्जी है। Disclaimer: विश्वास न्यूज की कोरोना वायरस (COVID-19) से जुड़ी फैक्ट चेक स्टोरी को पढ़ते या उसे शेयर करते वक्त आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि जिन आंकड़ों या रिसर्च संबंधी डेटा का इस्तेमाल किया गया है, वह परिवर्तनीय है। परिवर्तनीय इसलिए ,क्योंकि इस महामारी से जुड़े आंकड़ें (संक्रमित और ठीक होने वाले मरीजों की संख्या, इससे होने वाली मौतों की संख्या) में लगातार बदलाव हो रहा है। इसके साथ ही इस बीमारी का वैक्सीन खोजे जाने की दिशा में चल रहे रिसर्च के ठोस परिणाम आने बाकी हैं और इस वजह से इलाज और बचाव को लेकर उपलब्ध आंकड़ों में भी बदलाव हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि स्टोरी में इस्तेमाल किए गए डेटा को उसकी तारीख के संदर्भ में देखा जाए।

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