पूरा सच : मेवात में हिंदुओं का मांस खाने की खबर पूरी तरह झूठी है

नई दिल्‍ली (विश्‍वास टीम)। सोशल मीडिया से लेकर कुछ वेबसाइट पर रोहिंग्‍या को लेकर खबर चल रही है कि ये हिंदुस्‍तान में रहकर हिंदुओं का मांस खाते हैं। पोस्‍ट में तस्‍वीरों के साथ दावा किया जा रहा है कि मेवात दिनोंदिन मिनी पाकिस्‍तान बनता जा रहा है। विश्‍वास टीम की पड़ताल में ऐसी रिपोर्ट और पोस्‍ट फर्जी साबित हुई है।

क्‍या है वायरल पोस्‍ट में?

Sanjay Dwivedy ने फेसबुक पर 16 दिसंबर को एक अखबार की कटिंग पोस्‍ट की थी। हरियाणा से प्रकाशित वीकली अखबार ‘आज तक गुड़गांव’ की खबर का शीर्षक था – हिंदुओं का मांस खाते हैं और हिंदुस्‍तान में रहते हैं! खबर में दावा किया गया है कि सरकार नहीं चेती तो हो सकता है बड़ा बवाल। इसी तरह Twitter पर भी इससे जुड़ी कई पोस्‍ट वायरल हो रही है। इसमें भी रोहिंग्‍या मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाई जा रही है। इसके अलावा वकील प्रशांत पटेल उमराव ने रोहिंग्‍या को भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए रोहिंग्‍या को लेकर दावा किया कि मेवात में ये हिंदुओं का मांस खा रहे हैं।

https://twitter.com/ippatel/status/1074725443306106880

विश्‍वास टीम की पड़ताल

हमें सबसे पहले ये जानना था कि ‘आज तक गुड़गांव’ अखबार ने ऐसी कोई खबर वाकई में पब्लिश की थी? इसके लिए हमने गूगल में खबर की हेडिंग ‘हिंदुओं का मांस खाते हैं और हिंदुस्‍तान में रहते हैं’ सर्च की। ‘आज तक गुड़गांव’ की वेबसाइट aajtakgurgaon.com पर हमें खबर का लिंक मिल गया। अखबार के बारे में जानकारी के लिए हमने REGISTRAR OF NEWSPAPERS FOR INDIA की वेबसाइट की मदद ली। यहां से हमें पता चला कि अखबार का रजिस्‍ट्रेशन नंबर HARHIN/2012/48353 है। हरियाणा से प्रकाशित इस अखबार के पब्लिशर का नाम सतबीर भारद्वाज है।

हरियाणा के वीकली अखबार में पब्लिश खबर।

अब हमें ये चेक करना था कि खबर में जिन तस्‍वीरों का यूज किया गया है, वो कहां की हैं। इसके लिए हमने फोटो को गूगल रिवर्स इमेज में सर्च किया। गूगल पर कई ऐसे लिंक मिले, जिसमें इन तस्‍वीरों का यूज करते हुए दावा किया जा रहा है कि बर्मा में बुद्धिस्ट अतिवादी मुसलमानों पर कहर ढहा रहे हैं। सबसे पुराना लिंक 2009 का मिला। 2009 में पब्लिश एक ब्‍लॉग में इस तस्‍वीर के साथ लिखा था – Aslolanın ruh olduğuna, cesedin hiçbir değerinin kalmadığına inanan Tibet’li Budistler, ölenin etinin değerlendirilmesi için yabani kuşlara bağışlarlar. जब हमने इसका अनुवाद किया तो हमें पता चला कि ये तस्‍वीरें तिब्‍बती लोगों के अंतिम संस्‍कार के है। मरने के बाद शव को जंगली पक्षियों के लिए छोड़ दिया जाता है।

2009 में पब्लिश ब्‍लॉग की तस्‍वीर।

इसके बाद हमने tibet death ritual गूगल में इमेज और वीडियो में सर्च किया तो वहां भी हमें पता चला कि तिब्‍बत में ये अंतिम संस्‍कार की बहुत पुरानी परंपरा है। 

विश्‍वास टीम की पड़ताल में मेवात में ‘हिंदुओं का मांस खाते हैं और हिंदुस्‍तान में रहते हैं’ का दावा पूरी तरह गलत साबित हुआ।

इसके बाद विश्‍वास टीम ने Sanjay Dwivedy के फेसबुक प्रोफाइल को stalkscan.com के माध्‍यम से स्‍कैन किया। हिन्‍दू धर्म की रक्षा के नाम पर बनाए गए इस अकाउंट को 44 हजार से ज्‍यादा लोग फॉलो करते हैं।  

जब विश्‍वास टीम ने प्रशान्‍त पटेल उमराव (@ippatel) को foller.me से स्‍कैन किया तो पता चला कि इस अकाउंट से एक खास विचारधारा के पक्ष में माहौल बनाया जाता है। इस अकाउंट को फॉलो करने वालों में कई केंद्रीय मंत्री और पत्रकार भी शामिल हैं।

पूरा सच जानें…सब को बताएं

सच जानना आपका अधिकार है। अगर आपको ऐसी किसी भी खबर पर संदेह है जिसका असर आप, समाज और देश पर हो सकता है तो हमें बताएं। हमें यहां जानकारी भेज सकते हैं। हमें contact@vishvasnews.com पर ईमेल कर सकते हैं। इसके साथ ही वॅाट्सऐप (नंबर – 9205270923) के माध्‍यम से भी सूचना दे सकते हैं।

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Symbols that define nature of fake news
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