Explainer: क्या है राजकोषीय घाटा और यह राजस्व घाटे से कैसे अलग है?
कई बार राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटे को लेकर पाठक अक्सर भ्रमित हो जाते हैं, जबकि दोनों के मायने और मतलब बिल्कुल भिन्न हैं। राजस्व घाटा वह स्थिति है, जब सरकार की हासिल आय अनुमानित आय से कम होती है। राजस्व घाटे का मतलब राजस्व की हानि भी नहीं होती है, बल्कि यह अनुमानित आय और हासिल आय के बीच का अंतर है।
- By: Abhishek Parashar
- Published: Jan 23, 2023 at 05:59 PM
- Updated: Aug 2, 2024 at 04:00 PM
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। एक फरवरी को देश का अगला बजट पेश किया जाएगा और हमेशा की तरह इस बार भी इस बजट को लेकर जताए जा रहे पूर्वानुमान बजट के स्वरूप की तरफ इशारा कर रहे हैं। माना जा रहा है कि इस बार के बजट में राजकोषीय अनुशासन को प्राथमिकता दी जाएगी। आर्थिक विश्लेषक अक्सर कुछ कठिन और प्रचलित आर्थिक शब्दावलियों का इस्तेमाल करते हुए बजट की व्याख्या करते हैं और ऐसे में बजट को आसानी से समझने के लिए जरूरी है कि हम इन शब्दों के आसान मतलब को समझें।
विश्वास न्यूज की यह सीरीज उन कुछ कठिन और प्रचलित शब्दावलियों को समझने की कोशिश है, जो किसी बजट की रूपरेखा को तय करते हैं और जिनके आधार पर विश्लेषक बजट की समीक्षा करते हैं। आज की इस सीरीज में हम राजकोषीय घाटे के बारे में चर्चा करेंगे, जो इस बार के बजट पूर्व चर्चा का केंद्र बना हुआ है। साथ ही यह भी समझने की कोशिश करेंगे कि यह राजस्व घाटे से कैसे अलग है।
अधिकांश रिपोर्ट्स में राजकोषीय घाटे और राजकोषीय अनुशासन का जिक्र होता है। कई बार लोग राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा को समान समझ लेते हैं, जबकि इन दोनों के बीच व्यापक अंतर है।
इस बार बजट को लेकर विश्लेषकों का कहना है कि सरकार को बजट में राजकोषीय घाटे कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसकी वजह यह है कि ऊंची ब्याज दर के माहौल में उधारी पर सरकार को बहुत अधिक खर्च न करना पड़े। माना जा रहा है कि आगामी बजट में सरकार बुनियादी ढांचे पर निवेश और कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च के बीच संतुलन बिठाने का काम करेगी।
यही वजह है कि वित्त वर्ष 2023 के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 6.4 फीसदी और 2026 में इसे कम कर जीडीपी के मुकाबले 4.5 फीसदी करने का लक्ष्य है।
तो आखिर क्या है राजकोषीय घाटा?
बेहद सामान्य शब्दों में समझें तो जब सरकार का कुल खर्च उसकी आय से अधिक होता है तो यह राजकोषीय घाटा कहलाता है। इस घाटे को काबू में रखना क्यों जरूरी है और कितना घाटा स्वीकार्य है और क्या राजकोषीय घाटे का मतलब हमेशा नकारात्मक ही होता है? इन्हें जानें बिना राजकोषीय घाटे को समझना केवल पारिभाषिक समझ तक सिमट कर रह जाना है।
कोविड महामारी में आपने देखा और सुना कि आर्थिक गतिविधियां ठप्प पड़ने और विभिन्न आर्थिक व्यवधानों की वजह से सरकार की आय में गिरावट आई, लेकिन उसे महामारी से बचाव के राहत कार्यक्रमों, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण और ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों में इजाफा करना पड़ा। इस वजह से सरकार को आय के मुकाबले ज्यादा खर्च करना पड़ा और इसी अनुपात में राजकोषीय घाटा भी बढ़ा और वह रिकॉर्ड हाई लेवल पर पहुंच गया।
2020-21 में वास्तविक घाटा 9.2 फीसदी रहा। वहीं, बजट अनुमान 6.8 फीसदी और संसोधित अनुमान 6.9 फीसदी का था, लेकिन अप्रत्याशित कोविड संबंधित स्थितियों की वजह से खर्च में इजाफा हुआ और घाटा सभी अनुमानों को पार करते हुए 9.2 फीसदी रहा।
2011-12 से अगर घाटे के आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो आपको पता चलेगा कि इसमें लगातर गिरावट आई है, बल्कि सरकार ने इसे तय सीमा में रखने की कोशिश की है, जिसे नीचे के ग्राफिक्स में देखा जा सकता है।
राजकोषीय घाटा हमेशा नकारात्मक नहीं होता है। जब अर्थव्यवस्था में मांग की स्थिति सुस्त होती है तो घाटे में इजाफा अर्थव्यवस्था को ताकत देने का काम करता है। इससे लोगों के हाथों में पैसा जाता है और उनकी खरीदने की क्षमता में इजाफा होता है, जिससे अर्थव्यवस्था में मांग में बढ़ोतरी होती है। हालांकि, लंबे समय तक घाटे की स्थिति आर्थिक व्यवस्था और स्थिरता दोनों के लिए ठीक नहीं होती है। इसलिए प्रत्येक सरकार इसे नियंत्रण में रखने की कोशिश करती है।
तो आखिर वह सीमा क्या है, जिसके तहत घाटे को नियंत्रण में रखने की कोशिश की जाती है?
घाटे को नियंत्रण में रखने के लिए एफआरबीएम (फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट) एक्ट को लाया गया, जो घाटे को सीमित स्तर में रखने के लिए सरकार को बाध्य करता है। हालांकि, अप्रत्याशित स्थिति में सरकार इस घाटे के लक्ष्य को बढ़ाती है, जैसा कि कोविड के समय में देखा गया और यह इसलिए किया गया, क्योंकि सरकार को खर्च बढ़ाने की जरूरत थी।
स्टेटमेंट ऑफ फिस्कल पॉलिसी अंडर द एफआरबीएम एक्ट, 2003 के मुताबिक, सरकार को 31 मार्च 2021 तक घाटे को जीडीपी के मुकाबले 3 फीसदी तक लाने का लक्ष्य रखा था। लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से अभूतपूर्व आर्थिक और राजकोषीय संकट पैदा हुआ, जिसकी वजह से सरकार को राजकोषीय घाटे के स्तर को बढ़ाकर 9.5 फीसदी (2020-21 के लिए संशोधित अनुमान) करना पड़ा, जबकि इस वित्त वर्ष के लिए बजट अनुमान 3.5 फीसदी तय किया गया था। हालांकि, इस अधिनियम में संसोधन को अनिश्चित काल के लिए टाल दिया गया है और वित्त वर्ष 2026 में घाटे को कम कर 4.5 फीसदी पर सीमित रखने का संकल्प लिया गया है।
हालांकि, 2020-21 के लिए वास्तविक घाटा 9.2 फीसदी रहा, जो संसोधित अनुमान 9.5 से कम था। 2021-22 में घाटे का बजटीय अनुमान 6.8 फीसदी रहा, जिसे संशोधित कर 6.9 फीसदी किया गया, क्योंकि सरकार ने जनकल्याणकारी योजनाओं पर खर्च को बढ़ाया और लोगों को मदद दी। इसमें एयर इंडिया का पुराना लंबित भुगतान भी शामिल रहा।
2022-23 के बजट में 6.4 फीसदी घाटे का लक्ष्य रखा गया है और बजट पूर्व न्यूज रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्र सरकार अगले वित्त वर्ष में इस घाटे को और कम करते हुए उसे 5.8 फीसदी तक रखने पर विचार कर सकती है, ताकि वित्त वर्ष 26 तक इस घाटे को 4.5 फीसदी के स्तर पर लाया जा सके।
घाटे को कम करना किसी भी सरकार की प्राथमिकता होती है, क्योंकि यह किसी भी अर्थव्यवस्था में स्थिरता का प्रतीक होता है। सरकार अगर घाटे को काबू में नहीं रखेगी तो उसे अपने खर्चों में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जो आर्थिक वृद्धि के लिहाज से ठीक नहीं है। तो क्या सरकार वित्त वर्ष 2022-23 के घाटे के लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब हो पाएगी। अनुमान के मुताबिक, सरकार इस लक्ष्य को हासिल कर सकती है और अगर नहीं कर पाई तो वह चूक मामूली होगी और इसी के आधार पर सरकार अगले वित्त वर्ष के घाटा लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में काम कर पाएगी।
हालांकि, हमें यह ध्यान रखना होगा कि यह बजट अगले लोकसभा चुनाव के पहले सरकार का अंतिम पूर्ण बजट है। ऐसे में सबकी नजर इस बात पर होगी कि सरकार आक्रामक रूप से घाटे को कम करते हुए सरकार राजकोषीय अनुशासन को प्राथमिकता देती है या फिर वैश्विक अनिश्चितताओं व चुनाव को देखते हुए लोकलुभावनकारी व नरम राजकोषीय नीति का सहारा लेती है।
क्या है राजस्व घाटा?
कई बार राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटे को लेकर पाठक अक्सर भ्रमित हो जाते हैं, जबकि दोनों के मायने और मतलब बिल्कुल भिन्न हैं। राजस्व घाटा वह स्थिति है, जब सरकार की हासिल आय अनुमानित आय से कम होती है। राजस्व घाटे का मतलब राजस्व की हानि भी नहीं होती है, बल्कि यह अनुमानित आय और हासिल आय के बीच का अंतर है।
अगर कोई सरकार राजस्व घाटे की स्थिति में है, तो यह माना जाता है कि उसी आय उसके आधारभूत खर्च को पूरा करने की स्थिति में नहीं है और ऐसी स्थिति में सरकार या तो कर्ज लेती है या फिर अपनी मौजूदा परिसंपत्तियों को बेचती है, जिसे विनिवेश कहा जाता है। राजस्व घाटे की स्थिति से निपटने के लिए सरकार टैक्स में इजाफा कर सकती है या फिर अपने खर्चों में कटौती कर सकती है।
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