Explainer: जानें, क्या होता है आर्थिक सर्वेक्षण, बजट और उसके प्रकार?

विश्वास न्यूज की यह वित्तीय साक्षरता सीरीज उन कुछ कठिन और प्रचलित श्ब्दावलियों को समझने की कोशिश है, जो किसी बजट की रूपरेखा को तय करते हैं और जिनके आधार पर विश्लेषक बजट की समीक्षा करते हैं।

Explainer: जानें, क्या होता है आर्थिक सर्वेक्षण, बजट और उसके प्रकार?

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। एक फरवरी को देश का अगला बजट पेश किया जाएगा और अगले लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी 2.0 सरकार का यह अंतिम पूर्ण बजट होगा। इस साल बजट सत्र 31 जनवरी से शुरू होकर 6 अप्रैल तक चलेगा। इस सत्र का पहला चरण 31 जनवरी से 14 फरवरी के बीच होगा, जिसमें बजट पेश किया जाएगा।

इसके बाद 14 फवरी से 12 मार्च तक करीब एक महीने का अवकाश होगा और इसके बाद बजट सत्र का दूसरा चरण 12 मार्च से शुरू होकर 6 अप्रैल तक चलेगा। इस अवकाश के दौरान विभागों से जुड़ी स्थायी समितियां अनुदान मांगों की समीक्षा करेंगी और फिर उसकी रिपोर्ट संबंधित मंत्रालय और विभागों को भेजी जाती हैं।

विश्वास न्यूज की यह वित्तीय साक्षरता सीरीज उन कुछ कठिन और प्रचलित श्ब्दावलियों को समझने की कोशिश है, जो किसी बजट की रूपरेखा को तय करते हैं और जिनके आधार पर विश्लेषक बजट की समीक्षा करते हैं।

संविधान के अनुच्छेद 112 में बजट का जिक्र किया गया है। इसके मुताबिक, प्रत्येक वित्तीय वर्ष (1अप्रैल से 31 मार्च) के लिए सरकार को संसद में अपनी अनुमानित आय और खर्च का ब्यौरा पेश करना जरूरी होता है। यह सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है और यही वार्षिक वित्तीय ब्यौरा बजट कहलाता है।

बजट के प्रकार के बारे में जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि जो पैसा आता है, वह कहां से आता है और जो खर्च होता है, वह कहां खर्च होता है। अगर यह मान लें कि कुल आय 1 रुपये है तो (2022-23 के बजट आंकड़ों के मुताबिक) तो उसमें 35 पैसा उधार और अन्य देनदारियों, 15 पैसे कॉरपोरेट टैक्स, 15 पैसे आय कर या इनकम टैक्स, 5 पैसे सीमा शुल्क, 7 पैसे केंद्रीय उत्पाद शुल्क, 16 पैसे जीएसटी (वस्तु और सेवा कर), गैर टैक्स राजस्व से 5 पैसे और गैर ऋण पूंजी प्राप्तियों से 2 पैसे मिलते हैं।

बात खर्च की करें तो केंद्रीय योजनाओं में 15 पैसे, ब्याज भुगतान में 20 पैसे, रक्षा पर 8 पैसे, सब्सिडी में 8 पैसे, वित्त आयोग और अन्य ट्रांसफर में 10 पैसे, करों और शुल्कों में राज्यों की हिस्सेदारी में 17 पैसे, पेंशन 4 पैसे, अन्य व्यय में 9 पैसे और केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं में 9 पैसे का खर्च होता है।

बजट के प्रकार

आय और खर्च के अनुपात के आधार पर बजट तीन प्रकार के होते हैं। जब सरकार जमा आय के बराबर राशि खर्च करती है तो इसे संतुलित बजट कहा जाता है।

जब कर से हासिल राशि आवश्यक आय से अधिक होती है तो इसे अधिशेष बजट या सरप्लस बजट कहा जाता है। वहीं, जब खर्च कुल हासिल राजस्व से अधिक होता है तो उसे घाटे का बजट कहा जाता है। भारत का बजट घाटे के बजट की श्रेणी में आता है।

हालांकि, नियंत्रित घाटे वाला बजट भारत जैसे विकासशील अर्थव्यवस्था को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। इसका सामान्य मतलब है कि सरकार बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य और अन्य जनहितकारी परियोजनाओं पर खर्च कर रही है। आम तौर पर मंदी के दिनों में सरकार का घाटा बढ़ता है, क्योंकि वह मांग बढ़ाने के लिए खर्च करती है।

आर्थिक सर्वेक्षण

एक फरवरी को बजट पेश किए जाने से पहले सरकार आर्थिक सर्वेक्षण को पेश करती है। इस सर्वेक्षण यह पता चल जाता है कि देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति क्या है और वह किस गति से आगे बढ़ रही है।

सामान्य शब्दों में कहें तो इससे यह अनुमान लगाने में मदद मिलती है कि आने वाले समय में देश की अर्थव्यवस्था कैसी रहेगी और साथ ही यह बजट बेहतर तरीके से समझने में मदद करते हैं।

इसी सर्वे में सरकार अगले वित्त वर्ष के लिए जीडीपी अनुमान का जिक्र करती है, जिस पर वित्तीय एजेंसियों और आर्थिक विश्लेषकों की नजर होती है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी 2022 को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 को पेश किया था और इसमें 2022-23 में 8-8.5 फीसदी जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगाया गया था।

सरकार ने 2022-23 के लिए 8-8.5 फीसदी के जीडीपी अनुमान को जाहिर करते हुए कहा था कि यह इस धारणा पर आधारित है –

आगे कोई महामारी जैसी स्थिति नहीं होगी,
मानसून सामान्य रहेगा,
केंद्रीय बैंकों की तरफ से की जाने वाली तरलता निकासी नियंत्रण में रहेगी (यानी ब्याज दरों में कोई व्यापक इजाफा नहीं होगा),
तेल की कीमतें 70-75 डॉलर प्रति बैरल के बीच रहेंगी और
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान में आने वाले समय में कमी आएगी।

हालांकि, पिछले वर्ष इनमें से कुछ कारक अनुमान के मुताबिक, नियंत्रण में नहीं रहे और उसकी वजह से महंगाई का सामना करना पड़ा और साथ ही केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में इजाफा कर बाजार से तरलता को वापस खींचने का काम किया। ऐसी स्थिति में इस बार के आर्थिक सर्वेक्षण पर सबकी नजर होगी, जिसमें सरकार अगले वित्त वर्ष का जीडीपी अनुमान जारी करेगी, जो यह तय करेगा कि भारत की अर्थव्यवस्था किस गति से आगे बढ़ने वाली है।

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