Fact Check : श्रीनगर में घायल हुए शख्स की तस्वीर को किसान आंदोलन का बताकर किया जा रहा वायरल

विश्वास न्यूज ने अपनी पड़ताल में पाया घायल शख्स की वायरल तस्वीर का किसान आंदोलन से कोई संबंध नहीं है। असल में फोटो साल 2016 में श्रीनगर में पुलिस और प्रदर्शनकारी के बीच हुए टकराव के बाद की है।

विश्वास न्यूज (नई दिल्ली)। मिनिमम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और अन्य मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे किसानों को लेकर फेक पोस्ट के वायरल होने का सिलसिला जारी है। सोशल मीडिया पर घायल चेहरे के साथ एक शख्स की तस्वीर तेजी से वायरल हो रही है। तस्वीर को शेयर कर दावा किया जा रहा है कि यह तस्वीर हालिया किसान आंदोलन की है।

विश्वास न्यूज ने अपनी पड़ताल में पाया कि वायरल दावा गलत है। वायरल तस्वीर का हालिया किसान आंदोलन से कोई संबंध नहीं है। फोटो साल 2016 में श्रीनगर में पुलिस और प्रदर्शनकारी के बीच हुए टकराव के बाद की है।

क्या हो रहा है वायरल ?

फेसबुक यूजर ‘सुनिल कांग्रेस विचारक’ ने 23 फरवरी 2024 को वायरल फोटो को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है, “अगर देश के किसान की ये तस्वीर आपको विचलित नहीं करती तो आपका जमीर और आत्मा मर चुकी है।”

पोस्ट के आर्काइव लिंक को यहां पर देखें।

पड़ताल

वायरल दावे की सच्चाई जानने के लिए हमने फोटो को गूगल रिवर्स इमेज की मदद से सर्च करना शुरू किया। इस दौरान हमें वायरल तस्वीर इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में मिली। 24 सितंबर 2016 को प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, वायरल तस्वीर श्रीनगर में हुई एक घटना की है। रिपोर्ट में शख्स का नाम मोहम्मद इमरान पैर्रे बताया गया है।

प्राप्त जानकारी के आधार पर हमने गूगल पर संबंधित कीवर्ड्स की मदद से सर्च करना शुरू किया। इस दौरान हमें वायरल तस्वीर से जुड़ी एक अन्य रिपोर्ट इंडिया टाइम्स की वेबसाइट पर 14 जुलाई 2016 को प्रकाशित मिली। रिपोर्ट के अनुसार, हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए थे और वहां पर पत्थरबाजी होने लगी थी। परिस्थितियों को संभालने के लिए पुलिस ने पैलेट गन से फायरिंग की, जिसकी वजह से वहां पर कई लोग घायल हो गए थे।

जांच के दौरान हमें वायरल तस्वीर इमेज स्टॉक वेबसाइट आलमी और एसोसिएटेड प्रेस की वेबसाइट पर भी मिली। मौजूद जानकारी के मुताबिक, वायरल तस्वीर को फोटोग्राफर डार यासीन ने 13 जुलाई 2016 को श्रीनगर में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुए टकराव के बाद खींचा था।

अधिक जानकारी के लिए हमने किसान आंदोलन को कवर करने वाले अंबाला के दैनिक जागरण के चीफ रिपोर्टर दीपक बहल से संपर्क किया। उन्होंने हमें बताया कि यह तस्वीर किसान आंदोलन से संबंधित नहीं है।

हमने फोटो को बारे में जानने के लिए डार यासीन से भी संपर्क किया है। रिप्लाई आने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा।

अंत में हमने फोटो को गलत दावे के साथ शेयर करने वाले यूजर के अकाउंट को स्कैन किया। हमने पाया कि यूजर एक विचारधारा से जुड़ी पोस्ट को शेयर करता है। यूजर के करीब 15 सौ फॉलोअर्स हैं।

निष्कर्ष : विश्वास न्यूज ने अपनी पड़ताल में पाया घायल शख्स की वायरल तस्वीर का किसान आंदोलन से कोई संबंध नहीं है। असल में फोटो साल 2016 में श्रीनगर में पुलिस और प्रदर्शनकारी के बीच हुए टकराव के बाद की है।

False
Symbols that define nature of fake news
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