भारत के संविधान के अनुच्छेद 330 और 342 में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय को "मूल निवासी" बताए जाने का दावा गलत और तथ्यों से परे हैं। भारतीय संविधान कहीं से भी मूल निवासी या बाहरी जैसी धारणाओं को स्वीकार नहीं करता है और अनुच्छेद 330 में जहां लोकसभा में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण का जिक्र है, वहीं 342 में अनुसूचित जनजातियों का जिक्र है।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया पर वायरल एक पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330/342 के अनुसार, देश में रहने वाले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा समुदाय हिंदू नहीं हैं, बल्कि भारत के मूल निवासी हैं।
विश्वास न्यूज ने अपनी जांच में इस दावे को गलत और मनगढ़ंत पाया। भारतीय संविधान में मूल निवासी जैसी कोई अवधारणा नहीं है। भारतीय संविधान के भाग 16 में अनुच्छेद 330 से 342 के बीच विशिष्ट वर्गों से संबंधित विशिष्ट प्रावधानों का उल्लेख है, लेकिन इसमें कहीं से भी मूल निवासी के तौर पर नागरिकों के वर्गीकरण का जिक्र नहीं है। अनुच्छेद 330 में जहां लोकसभा में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण का जिक्र है, वहीं 342 में अनुसूचित जनजातियों का जिक्र है।
इंस्टाग्राम यूजर ‘nitin.gehlot.96’ ने वायरल पोस्ट (आर्काइव लिंक) को शेयर किया है, जिसमें लिखा हुआ है, “संविधान…क्या आप जानते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 330/342 के अनुसार भारत के SC/ST/OBC हिन्दू नहीं हैं! ये भारत के मूल निवासी हैं। जय मूलनिवासी। जय भीम।”
सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर भी कई अन्य यूजर्स ने इस पोस्ट को समान और मिलते-जुलते दावे के साथ शेयर किया है।
चूंकि वायरल पोस्ट में संविधान के अनुच्छेद 330 और 342 का जिक्र है, इसलिए हमने इन दोनों अनुच्छेदों को चेक किया। भारतीय संविधान की प्रति www.india.gov.in वेबसाइट पर हिंदी और अंग्रेजी समेत कई भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है।
संविधान के भाग 16 में अनुच्छेद 330 का जिक्र आता है और यह अनुच्छेद लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों के आरक्षण से संबंधित है।
वहीं अनुच्छेद 342 अनुसूचित जनजातियों से संबंधित है। पूरे संविधान में किसी भी अनुच्छेद में “मूल निवासी” जैसे शब्द का जिक्र नहीं है।
संविधान के अनुच्छेद 15 (4) और 16 (4) में अफरमेटिव एक्शन या सकारात्मक विभेद (मोटे अर्थों में आरक्षण) का जिक्र किया गया है, लेकिन इसमें भी लाभार्थियों की पहचान के लिए “मूल निवासी” जैसे वर्गीकरण का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
सोशल मीडिया पर यह दावा पहले भी वायरल हुआ था, तब विश्वास न्यूज ने इसे लेकर वरिष्ठ पत्रकार और समाजशास्त्री दिलीप मंडल से संपर्क किया था। उन्होंने बताया था, “भारत का संविधान समाज के विभिन्न स्तरों को स्वीकार करता है और इसके आधार पर अनुच्छेद 15 (4) और 16 (4) में अफरमेटिव एक्शन की बात की गई है, लेकिन इसका आधार अस्पृश्यता, जनजाति और सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ापन है। उन्होंने कहा, “भारतीय संविधान कहीं से भी मूल निवासी या बाहरी जैसी धारणाओं को स्वीकार नहीं करता है।”
विश्वास न्यूज की पुरानी फैक्ट चेक रिपोर्ट इसकी विस्तृत पड़ताल को पढ़ा जा सकता है।
गलत दावे को लेकर शेयर करने वाले सोशल मीडिया यूजर को इंस्टाग्राम पर करीब दो सौ लोग फॉलो करते हैं।
निष्कर्ष: भारत के संविधान के अनुच्छेद 330 और 342 में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय को “मूल निवासी” बताए जाने का दावा गलत और तथ्यों से परे हैं। भारतीय संविधान कहीं से भी मूल निवासी या बाहरी जैसी धारणाओं को स्वीकार नहीं करता है और अनुच्छेद 330 में जहां लोकसभा में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण का जिक्र है, वहीं 342 में अनुसूचित जनजातियों का जिक्र है।
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