हज़ारों साल पुरानी बताकर वायरल की जा रही भगवान विष्णु के वराह अवतार की प्रतिमा असल में वर्ष 2015 में बनायी गयी थी। मंदिर का निर्माण 2009 में शुरू हुआ था।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज): सोशल मीडिया पर वायरल एक पोस्ट में भगवान विष्णु के वराह अवतार की तस्वीर को शेयर करते हुए दावा किया गया है कि यह प्रतिमा हजार साल पुरानी है। इस तस्वीर में भगवान वराह की प्रतिमा के दांतों के बीच गोल धरती को देखा जा सकता है। हालांकि, विश्वास न्यूज ने अपनी पड़ताल में पाया कि वायरल हो रही प्रतिमा हजार साल पुरानी नहीं है, बल्कि साल 2009 में बने मंदिर का हिस्सा है।
फेसबुक यूजर, ‘पंडित अजय शर्मा प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण सुरक्षा प्रकोष्ठ मध्य प्रदेश’ ने वायरल तस्वीर पोस्ट करते हुए हिंदी में लिखा।
“स्वयं को पहचानो। इस मूर्ति को ध्यान से देखें, यह भगवान विष्णु के वराह अवतार की है जिसमें वह पृथ्वी को रसातल से प्रदर्शित करते हुए दिखाए गए हैं।
अब सबसे बड़ा आश्चर्य यह होता है कि इसमें पृथ्वी के आकार का गोल दिखाया गया है। और दुनिया को पृथ्वी के गोल होने का ज्ञान आज से 500 – 600 साल पहले मिला था, जबकि यह मूर्ति जगन्नाथ मंदिर में सहस्त्रों वर्ष पूर्व से ही है। सनातन का गौरवपूर्ण इतिहास अपनी चीख चीख कर अभिसाक्ष्य दे रहा है।
यही पेज है कि पाठ्यक्रम इस विषय को हमारे भूगोल के नाम से दर्ज किया गया है, क्योंकि हमारे पूर्वजो को ज्ञान था कि पृथ्वी का आकार वृत्ताकार है।
वाम हस्त से इतिहास लिखने वालों तुम क्या हमारा इतिहास मिटाओगे, हमारा इतिहास तो पत्थरो पर लिखा है। सौन्दर्य दृश्य हो तो यूरोप जा सौन्दर्य के साथ आश्चर्य और यथार्थ भी देखें हो तो हमारे मंदिर आइए।”
पोस्ट और इसका आर्काइव वर्जन यहां देखें।
विश्वास न्यूज ने वायरल तस्वीर की पड़ताल की शुरुआत गूगल रिवर्स इमेज सर्च से की।
हमें aminoapps.com नाम की एक वेबसाइट मिली, जो कम्युनिटी बेस्ड सोशल मीडिया नेटवर्क वेबसाइट है। इसी वेबसाइट पर ‘माइथोलॉजी एंड कल्चर्स’ के एक ब्लॉग पर, हमें 27 मई, 2019 को एक यूजर ‘ब्रोकनस्ट्रांग’ द्वारा साझा की गई तस्वीर मिली। ब्लॉग का शीर्षक था, ‘ईमामी जगन्नाथ मंदिर की दीवार पर वराह अवतार की मूर्ति ( मंदिर)। उपयोगकर्ता ने टिप्पणियों में यह भी साझा किया, “फिर से क्षमा करें यदि चित्र उतना अच्छा नहीं है … मैंने इसे अपने सेल फोन से क्लिक किया था … और अगली पोस्ट वराह अवतार की कहानी पर होगी।”
इससे यह पुष्टि हुई कि मूर्ति इमामी जगन्नाथ मंदिर की थी। इसके बाद हमने इस मंदिर को ऑनलाइन सर्च किया। हमें पता चला कि मंदिर ओडिशा के बालासोर में है। हमें मंदिर की वेबसाइट भी मिली।
वेबसाइट के अबाउट अस सेक्शन में हमें पता चला, “3.5 एकड़ भूमि पर मंदिर और उसकी सीमा का निर्माण शुरू करने की योजना है। सपने को सच करने के लिए 2009 के उत्तरार्ध में श्री रघुनाथ महापात्र ने भुवनेश्वर में 30 कुशल वास्तुकारों के साथ काम शुरू किया।” यहाँ यह स्पष्ट था कि मंदिर का निर्माण 2009 में शुरू हुआ था।
हमें गूगल मैप्स पर भी इमामी जगन्नाथ मंदिर में वही मूर्ति मिली, जिसे हज़ारों वर्ष पुराना बताया जा रहा है।
पड़ताल के अगले चरण में हमने इमामी जगन्नाथ मंदिर, बालासोर के निखिल सामत्रय से बात की। उन्होंने हमें बताया कि मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई वराह प्रतिमा मंदिर निर्माण के साथ ही 2015 में बनाई गई थी। यह हज़ारों साल पुरानी नहीं है।
इससे इस बात की पुष्टि हुई कि मूर्ति हाल ही में मंदिर के निर्माण के साथ बनाई गई थी।
हमने यह भी जांचा कि क्या गोल पृथ्वी के बारे में हिंदू धर्मग्रंथों का कोई संदर्भ है। हमें इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला। हालांकि, चपटी पृथ्वी और गोल पृथ्वी सिद्धांत को लेकर कई बहसें हुईं।
पड़ताल के आखिरी चरण में हमने वायरल तस्वीर और पोस्ट को शेयर करने वाले यूजर की सामाजिक पृष्ठभूमि की जांच की। हमें पता चला कि ‘पंडित अजय शर्मा प्रदेश अध्यक्ष सुरक्षा ब्राह्मण प्रकोष्ठ मध्य प्रदेश’ को 1.5K लोगों ने लाइक किया है और 1.6K लोगों ने फॉलो किया है।
निष्कर्ष: हज़ारों साल पुरानी बताकर वायरल की जा रही भगवान विष्णु के वराह अवतार की प्रतिमा असल में वर्ष 2015 में बनायी गयी थी। मंदिर का निर्माण 2009 में शुरू हुआ था।
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