वायरल पोस्ट में नजर आ रही मूर्ति का जगन्नाथ पुरी मंदिर से कोई संबंध नहीं है। इसके अलावा वायरल पोस्ट का यह दावा भी गलत साबित हुआ कि 1920 में स्पैनिश फ्लू के समय भी इस शालिग्राम को निकाला गया था। असल में स्पैनिश फ्लू 1918 में फैला था और उस वक्त शालिग्राम को नहीं निकाला गया था।
नई दिल्ली (Vishvas News)। सोशल मीडिया पर काले रंग की गाय के मुंह जैसी दिखने वाली एक मूर्ति की तस्वीर वायरल हो रही है। इस तस्वीर के साथ दावा किया जा रहा है कि यह जगन्नाथ पुरी मंदिर से संबंधित शालिग्राम है, जिसे आखिरी बार 1920 में स्पेनिश फ्लू के दौरान महामारी के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए निकाला गया था और अब कोविड से बचाने के लिए निकाला गया हे। जब भी पृथ्वी पर महामारी आती है इसे बाहर दर्शन के लिए निकाला जाता है।
विश्वास न्यूज ने वायरल पोस्ट की पड़ताल की और इस दावे को गलत पाया। दरअसल महामारी के दौरान शालिग्राम को कभी बाहर नहीं निकाला जाता है। वहीं, वायरल तस्वीर में नजर आ रही शालिग्राम जगन्नाथ पुरी में नहीं है। हर साल जगन्नाथ पुरी में भगवान बाड़ी नरसिम्हा की मूर्ति को शहर में घुमाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे लोग महामारी व अन्य बीमारियों से बचे रहते हैं।
क्या है वायरल पोस्ट में?
फेसबुक पेज घनश्याम वन महाराज बिल्वकेश्वर महादेव मन्दिर हरिद्वार पर यह तस्वीर शेयर करते हुए लिखा गया है: SALIGRAM पुरी मंदिर से संबंधित इस सालिग्राम को आखिरी बार 1920 में स्पेनिश फ्लू के दौरान महामारी के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए निकाला गया था। COVID के मद्देनजर अब इसे फिर से निकाल लिया गया है। कृपया दर्शन करें और इसे परिवार और दोस्तों को दें… शालिग्राम जगन्नाथ पुरी में है, जब पृथ्वी पर महामारी आती है तब इसे बाहर दर्शन के लिए निकाला जाता है। ईससे पहले इसे 1920 में निकाला गया था।
पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है।
पड़ताल
विश्वास न्यूज ने वायरल पोस्ट की पड़ताल शुरू करते हुए सबसे पहले इंटरनेट पर कीवर्ड्स की मदद से सर्च किया तो हमें मार्च 2020 में प्रकाशित कुछ मीडिया रिपोर्ट्स मिलीं, जिसमें पुरी मंदिर के देवता बाड़ी नरसिम्हा को कोरोना महामारी से चलते जगन्नाथ मंदिर से बाहर निकाल कर शहर में घुमाने की बात कही गई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भगवान नरसिम्हा की मूर्ति को हर साल चैत्र माह के चौथे दिन बाहर निकाला जाता है और ऋषि मारकंड, अंगीरा, भृगु और कांडु के आश्रम सहित पूरे शहर में घुमाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे लोग महामारी व बीमारियों से बचे रहते हैं। हालांकि, किसी भी मीडिया रिपोर्ट में हमें शालिग्राम को बाहर निकालने का जिक्र नहीं मिला।
सर्च के दौरान जगन्नथ पुरी मंदिर की वेबसाइट पर भी बाड़ी नरसिम्हा की मूर्ति को शहर में घुमाने की प्रथा का जिक्र मिला।
वायरल पोस्ट में यह भी दावा किया गया है कि शालिग्राम को आखिरी बार 1920 में निकाला गया था जब स्पैनिश फ्लू फैला था। हमने इंटरनेट पर स्पैनिश फ्लू के बारे में सर्च किया तो हमें रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों की एक रिपोर्ट मिली। इसके अनुसार, स्पैनिश फ्लू 1918 में फैला था न कि 1920 में और उस वक्त भी शालिग्राम को नहीं निकाला गया था।
विश्वास न्यूज ने ओडिश के जगन्नाथ पुरी मंदिर के पुजारी विश्वबासु बिनायकदास महापात्रा से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि वायरल तस्वीर में दिख रहा शालिग्राम जगन्नाथ पुरी में नहीं है। यह पोस्ट फर्जी है। उन्होंने यह भी बताया कि महामारी के दौरान शालिग्राम को बाहर नहीं निकाला जाता। यहां भगवान नरसिम्हा की मूर्ति को हर साल बाहर निकालने की प्रथा है। ऐसी मान्यता है कि इससे लोग महामारी व बीमारियों से बचे रहते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जगन्नाथ पुरी में विष्णु भगवान को समर्पित सबसे बड़ा व सबसे भारी शालिग्राम मौजूद है। इसे मंदिर के गर्भगृह में रखा गया है। 11वीं सदी में नेपाल के राजा ने ओडिशा के राजा ययाति केसरी को यह शालिग्राम भेंट किया था। हालांकि, वायरल पोस्ट में दिख रही मूर्ति कहां है, इस बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिली।
विश्वास न्यूज ने ऐसे ही मिलते-जुलते दावे का फैक्ट चेक पिछले साल भी किया था।
अब बारी थी फेसबुक पर इस पोस्ट को साझा करने वाले पेज घनश्याम वन महाराज बिल्वकेश्वर महादेव मन्दिर हरिद्वार की प्रोफाइल को स्कैन करने का। प्रोफाइल को स्कैन करने पर हमने पाया कि खबर लिखे जाने तक इस पेज के 27 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स थे।
निष्कर्ष: वायरल पोस्ट में नजर आ रही मूर्ति का जगन्नाथ पुरी मंदिर से कोई संबंध नहीं है। इसके अलावा वायरल पोस्ट का यह दावा भी गलत साबित हुआ कि 1920 में स्पैनिश फ्लू के समय भी इस शालिग्राम को निकाला गया था। असल में स्पैनिश फ्लू 1918 में फैला था और उस वक्त शालिग्राम को नहीं निकाला गया था।
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