विश्वास न्यूज़ ने अपनी पड़ताल में पाया कि भारत के संविधान में कोई अनुच्छेद 30 (A) नहीं है, जो कि गीता को पढ़ने से रोकता है। यह दावा गलत है।
नई दिल्ली (विश्वास टीम) सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर एक पोस्ट इस दावे के साथ वायरल हो रही है कि “भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30 मदरसों को कुरान पढ़ाने की अनुमति देता है, लेकिन अनुच्छेद 30 (A) कहता है कि भगवद् गीता को स्कूलों में नहीं पढ़ाया जा सकता है।”
विश्वास न्यूज़ ने अपनी पड़ताल में पाया कि वायरल दावा गलत है। भारतीय संविधान में अनुच्छेद-30ए नहीं है। अनुच्छेद-30 अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित और संचालित शिक्षा संस्थानों को लेकर दिए गए अधिकारों के बारे में है। इससे पहले भी इस तरह का दावा वायरल हो चुका है, जिसकी पड़ताल विश्वास न्यूज ने की थी।
रविंदर कुमार शर्मा (Ravinder Kumar Sharma) नाम के फेसबुक यूजर ने वायरल पोस्ट को 4 सितम्बर को शेयर किया, जिसमें लिखा था: “अनुच्छेद 30 मे, मदरसों मे कुरान पढाओ अनुच्छेद 30A मे, विद्यालय मे गीता मत पढाओ ये है हिन्दुस्तान में हिन्दुओ की स्वतंत्रता।”
इस पोस्ट का आर्काइव वर्जन यहाँ पढ़ा जा सकता है।
इस पोस्ट की पड़ताल करने के लिए हमने सबसे पहले कीवर्ड सर्च का सहारा लिया। सर्च में हमें पता चला कि आर्टिकल 30 को तीन भागों में बांटा गया है। आर्टिकल 30(1), 30(1A), 30(2)। लेजिस्लेटिव डॉट जीओवी डॉट इन पर भारतीय संविधान की कॉपी अपलोड है। इसके मुताबिक:
आर्टिकल 30 में लिखा है:
शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों का अधिकार
(1) सभी अल्पसंख्यक, चाहे वे धर्म के आधार पर हों या भाषा के, उन्हें अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
(1 ए) किसी भी अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित और प्रशासित शैक्षणिक संस्थान की किसी भी संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण के लिए प्रदान करने वाले किसी भी कानून को खंड (1) में निर्दिष्ट करने पर, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि इस तरह के कानून के तहत निर्धारित राशि पर दी जाये जो उस खंड के तहत सही हो।
(2) राज्य शैक्षणिक संस्थानों को सहायता देने में, किसी भी शिक्षण संस्थान के खिलाफ इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगा कि वह अल्पसंख्यक के प्रबंधन के अधीन है, चाहे वह धर्म पर आधारित हो या भाषा पर।
हमने इसी दावे की पहले भी पड़ताल की थी उस समय हमने इस विषय में सुप्रीम कोर्ट के वकील स्मरहर सिंह से भी बात की थी। उन्होंने हमें बताया था, “इस पोस्ट का कोई आधार नहीं है। संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों के अधिकार के बारे में उनकी पसंद के शैक्षिक संस्थानों को स्थापित करने के अधिकार की बात करता है, चाहे वह किसी भी धर्म या भाषा का हो। अनुच्छेद 30 ए जैसा कोई आर्टिकल नहीं है। भारतीय संविधान में ऐसा कोई अनुच्छेद नहीं है जो धार्मिक किताबों की पढाई पर किसी भी प्रकार के प्रतिबंध लगाता है। वायरल पोस्ट फर्जी है।”
विश्वास न्यूज़ ने इस बारे में इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रही वकील अशनिका शर्मा से भी बात की थी। उनका कहना था, ‘अनुच्छेद 30 देश में भाषाई या धर्म पर आधारित सभी अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और उनके प्रशासन का अधिकार देता है। वहीं, अनुच्छेद 30(1) अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थानों को स्थापित और संचालित करने, जबकि खंड 1(A) अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित और प्रशासित किसी शिक्षा संस्थान की भूमि अधिग्रहण को लेकर है। खंड (2) अल्पसंख्यकों द्वारा शासित शैक्षणिक संस्थान को आर्थिक सहायता देने में राज्य सरकार को भेदभाव नहीं करने को कहता है।‘
इस मामले में विश्वास न्यूज़ द्वारा किये गए पुराने फैक्ट चेक यहाँ पढ़े जा सकते हैं।
इस पोस्ट को सोशल मीडिया पर कई लोग शेयर कर रहे हैं। इन्हीं में से एक है रविंदर कुमार शर्मा नाम का फेसबुक यूजर। इस यूजर के प्रोफाइल के अनुसार, यह यूजर पंजाब के लुधियाना का रहने वाला है। यूजर के फेसबुक पर 10000 से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं।
निष्कर्ष: विश्वास न्यूज़ ने अपनी पड़ताल में पाया कि भारत के संविधान में कोई अनुच्छेद 30 (A) नहीं है, जो कि गीता को पढ़ने से रोकता है। यह दावा गलत है।
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