Fact Check: सुप्रीम कोर्ट के EVM पर बैन लगाए जाने का दावा FAKE, 2019 चुनाव से पहले भी हो चुका है समान दावा वायरल

सुप्रीम कोर्ट के ईवीएम पर बैन लगाए जाने का दावा फेक और मनगढ़ंत है। इस दावे के साथ वायरल हो रहा वीडियो इलेक्टोरल बॉन्ड को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से असंवैधानिक दिए जाने के फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकीलों की तरफ से किए गए प्रेस कॉन्फ्रेंस का है। ये वकील ईवीएम हटाओ संयुक्त मोर्चा के भी सदस्य हैं।

Fact Check: सुप्रीम कोर्ट के EVM पर बैन लगाए जाने का दावा FAKE, 2019 चुनाव से पहले भी हो चुका है समान दावा वायरल

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। इलेक्टोरल बॉन्ड को अवैध करार देते हुए उस पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से रोक लगाए जाने के फैसले के बाद सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो क्लिप को शेयर कर दावा किया जा रहा है कि अब सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर भी प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया है।

विश्वास न्यूज ने अपनी जांच में इस दावे को गलत पाया। सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम को लेकर कोई फैसला नहीं दिया है और न ही चुनाव में इसके इस्तेमाल पर किसी तरह की रोक होगी। वायरल वीडियो क्लिप वास्तव में इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कुछ वकीलों की तरफ से किए गए प्रेस कॉन्फ्रेंस का है और इसमें नजर आ रहे लोग ईवीएम हटाओ संयुक्त मोर्चा के सदस्य भी हैं, जो ईवीएम के खिलाफ मुहिम चलाते रहे हैं।

क्या है वायरल?

सोशल मीडिया यूजर ‘Bittu Sherpuria’ ने वायरल वीडियो क्लिप (आर्काइव लिंक) को शेयर किया है, जिस पर लिखा हुआ है, “चुनाव आयोग को लगा तगड़ा झटका सुप्रीम कोर्ट ने लिया बड़ा फैसला….ईवीएम बैन होगी सुप्रीम कोर्ट का फैसला वकीलों की बड़ी जीत।”

कई अन्य यूजर्स ने इस वीडियो को समान और मिलते-जुलते दावे के साथ शेयर किया है।

पड़ताल

वायरल वीडियो क्लिप में सुप्रीम कोर्ट के ईवीएम पर बैन लगाने के फैसले का जिक्र है। हालांकि, किसी भी रिपोर्ट में ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जिससे यह साबित हो कि सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम को प्रतिबंधित करने का फैसला लिया है।

न्यूज सर्च में हमें ऐसी कई रिपोर्ट्स जरूरी मिली, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने का जिक्र था। लाइव लॉ की वेबसाइट पर मौजूद 15 फरवरी 24 की रिपोर्ट के मुताबिक, “सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया।”

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने यह फैसला दिया। कई अन्य रिपोर्ट्स में भी इसका जिक्र है।

हमने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी देखा और इस फैसले में कहीं भी ईवीएम या उसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाए जाने का कोई जिक्र नहीं है।

हमारी जांच से यह स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम के इस्तेमाल पर प्रतिबंध को लगाए जाने का कोई फैसला नहीं दिया है।

जिस वायरल वीडियो क्लिप के साथ यह दावा किया गया है, उसके ऑरिजिनल सोर्स को ढूंढने के लिए हमने की-वर्ड सर्च की मदद ली। सर्च में हमें यह वीडियो ‘Voice News Network’ के यू-ट्यूब चैनल पर मिला, जिसे पांच दिनों पहले अपलोड किया गया है।

https://www.youtube.com/watch?v=fr1VH3ah3d0&t=2s

इस पूरे वीडियो में दर्शकों को संबोधित कर रहे वक्ता पेशे से वकील महमूद प्राचा हैं और उनके साथ बैठे (दाईं तरफ) नजर आ रहे अन्य व्यक्ति भानु प्रताप सिंह हैं, जो पेशे से वकील हैं। इस पूरे वीडियो में वक्ताओं का पैनल इलेक्टोरल बॉन्ड की असंवैधानिकता के बारे में बात करते हुए ईवीएम को भी देश के संविधान के “खिलाफ” बताते हुए जनता से उनकी मुहिम में साथ आने की अपील करता है।

सर्च में हमें ईवीएम हटाओ संयुक्त मोर्चा के नाम से पंजीकृत वेबसाइट भी मिली, जिसके सदस्य के तौर पर भानु प्रताप सिंह (एडवोकेट, बार काउंसिल ऑफ इंडिया), महमूद प्राचा (एडवोकेट, बार काउंसिल ऑफ इंडिया), राजेंद्र पाल गौतम (पूर्व मंत्री, दिल्ली) समेत अन्य के नाम शामिल हैं।

इस वेबसाइट पर हमें एक अन्य वीडियो मिला, जो ईवीएम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के वकीलों की प्रेस कॉन्फ्रेंस का है। इस वीडियो में भी महमूद प्राचा, प्रशांत भूषण, डीसी कपिल समेत अन्य लोगों को देखा जा सकता है।

वायरल वीडियो क्लिप में किए गए दावे को लेकर हमने सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट रुद्र विक्रम सिंह से संपर्क किया। उन्होंने स्पष्ट कि सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम को प्रतिबंधित किए जाने का कोई फैसला नहीं दिया है ।

गौरतलब है कि पिछले आम चुनाव के दौरान देश में ईवीएम की बजाए बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाने की मांग के साथ दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका है।

इकोनॉमिक टाइम्स में 22 नवंबर 2018 को प्रकाशित खबर के मुताबिक, “सुप्रीम कोर्ट ने आगामी विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में ईवीएम के बदले बैलेट पेपर का इस्तेमाल किए जाने की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि कोई भी सिस्टम परफेक्ट नहीं होता। एनजीओ न्याय भूमि की तरफ से ए सुब्बा राव ने यह जनहित याचिका कोर्ट में दायर की थी। उन्होंने कहा था कि ईवीएम का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है और इसलिए इसका इस्तेमाल चुनावों के दौरान नहीं किया जाना चाहिए।”

2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी ऐसा ही दावा वायरल हुआ था, जिसने हमने अपनी जांच में फेक पाया था। संबंधित फैक्ट चेक रिपोर्ट को यहां पढ़ा जा सकता है।

वायरल वीडियो को फेक दावे के साथ शेयर करने वाले यूजर को फेसबुक पर करीब एक हजार से अधिक लोग फॉलो करते हैं।

चुनाव आयोग की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, व्यापक सहमति बनने के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम के इस्तेमाल के लिए संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत दिशानिर्देश जारी किए थे और 19 माई 1982 को पहली बार पायलट आधार पर ईवीए का इस्तेमाल किया गया।

इसके बाद संसद ने दिसंबर 1988 में जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 को संसोधित करते हुए उसमें धारा 61A को जोड़ा, जो चुनाव आयोग को ईवीएम का इस्तेमाल करने का अधिकार देता है। यह संसोधन 15 मार्च 1989 से प्रभाव में आया।

निष्कर्ष:सुप्रीम कोर्ट के ईवीएम पर बैन लगाए जाने का दावा फेक और मनगढ़ंत है। इस दावे के साथ वायरल हो रहा वीडियो इलेक्टोरल बॉन्ड को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से असंवैधानिक दिए जाने के फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकीलों की तरफ से किए गए प्रेस कॉन्फ्रेंस का है। ये वकील ईवीएम हटाओ संयुक्त मोर्चा के भी सदस्य हैं।

False
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