Fact Check: महात्मा गांधी के ‘मुस्लिम’ व रामपुर में ‘मजार’ होने का दावा FAKE और सियासी दुष्प्रचार

यह कहना गलत है कि गांधी की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित नहीं कर उसे रामपुर के तत्कालीन नवाब रजा अली खां को सौंप दिया गया। गांधी की अस्थियों को उनके बेटे ने प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) के संगम में विसर्जित किया। गांधी की अस्थियों को कई हिस्सों में विभाजित कर उसे सभी प्रांतों के गवर्नरों को भेजे जाने के साथ अस्थियों की थोड़ी-थोड़ी मात्रा को देश की सभी पवित्र नदियों में भी प्रवाहित किया गया था। इन्हीं में से एक हिस्सा रामपुर के तत्कालीन नवाब रजा अली खां को भी मिला था, जिसका एक हिस्सा उन्होंने कोसी नदी में विसर्जित किया और बचे हुए हिस्से को चांदी के कलश में रखकर दफनाया, जहां आज रामपुर का गांधी समाधि स्थल मौजूद है।

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया पर वायरल एक मैसेज में महात्मा गांधी की धार्मिक पहचान पर सवाल उठाते हुए दावा किया जा रहा है कि वह मुस्लिम थे और इसलिए उनकी मृत्यु के बाद उनकी अस्थियों को विसर्जित करने की बजाए रामपुर के तत्कालीन नवाब रजा अली खां को सौंप दिया, जिन्होंने उसे चांदी की सुराही में भरकर मुस्लिम तरीके से दफनाते हुए रामपुर में गांधी की मजार बना दी।

विश्वास न्यूज की जांच में यह दावा गलत और मनगढ़ंत साबित हुआ। गांधी की धार्मिक पहचान को लेकर पोस्ट में किया जा रहा दावा तथ्यों से परे और दुष्प्रचार है, जिसका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है।

क्या है वायरल?

विश्वास न्यूज के वॉट्सऐप टिपलाइन नंबर +91 9599299372 पर यूजर ने इस वीडियो को भेजकर इनकी सच्चाई बताने का अनुरोध किया है।

विश्वास न्यूज के Whatsapp टिपलाइन पर भेजा गया अनुरोध।

पड़ताल

सोशल मीडिया पर यह दावा पहले भी वायरल हुआ था और तब विश्वास न्यूज ने वायरल पोस्ट में किए गए प्रत्येक दावे की सिलसिलेवार जांच की थी, जिसे यहां पढ़ा जा सकता है।

पाठकों की सुविधा के लिए हम वायरल पोस्ट में किए गए अलग-अलग दावों की सच्चाई उपरोक्त फैक्ट चेक रिपोर्ट के आधार पर एक बार फिर से सामने रख रहे हैं।

दावा:

“30 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या हुई 31जनवरी 1948 दिल्ली में यमुना नदी पर दाहसंस्कार किया गया था परन्तु अस्थिओं का विसर्जन नहीं हुआ कांग्रेसियों ने उन अस्थिओं को रामपुर के शासक (नबाब रजा अली खां) को सौंप दिया रजा अली उन अस्थिओं को 11 फरवरी 1948 को स्पेशल ट्रेन से रामपुर ले गया अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने के बजाय मुस्लिम तरीके से चांदी की सुराही में भरकर मुस्लिम तरीके से दफन कर मजार बना दी,और तीन दिन का राजकीय शोक घोषित कर दिया क्योंकि उस समय तक रामपुर रियासत का विलय भारत में नहीं हुआ था सालों बाद उसे गांधी स्मारक घोषित कर दिया आजादी के बाद 30 जून 1949 को रामपुर रियासत सरदार पटेल की सख्ती के कारण भारत में विलय हो गया”

जांच

मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, “राजघाट स्थित महात्मा गांधी की समाधि स्थल के संचालन और उसके रख-रखाव के लिए राजघाट समाधि एक्ट, 1951 के तहत राजघाट समाधि समिति का गठन किया गया।”

30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या होने के बाद दिल्ली के राजघाट में 31 जनवरी 1948 को उनका दाह संस्कार किया गया, जो उनका समाधि स्थल बना।

हिंदू विधि से दिल्ली के राजघाट में हुई महात्मा गांधी के शव के दाह संस्कार की तस्वीर (Source-gandhiheritageportal.org)

इसके बाद 11 फरवरी 1948 को गांधी के अस्थि कलश को विसर्जन के लिए विशेष ट्रेन से प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) ले जाया गया। gandhiheritageportal.org पर मौजूद तस्वीरों से इसकी पुष्टि होती है। 12 फरवरी को यह विशेष ट्रेन प्रयागराज पहुंची और फिर अस्थि कलश को जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेताओं की मौजूदगी में संगम में विसर्जित किया गया। इस दौरान संगम घाट पर असंख्य लोगों का हुजूम मौजूद था।

इलाहाबाद में 12 फरवरी 1948 में महात्मा गांधी की अस्थि कलश यात्रा की तस्वीर (Source-
gandhiheritageportal.org)

gandhiheritageportal.org पर मौजूद तस्वीरों में जवाहर लाल नेहरू के साथ नाव पर बैठे हुए गांधी के पुत्र देवदास गांधी के साथ अन्य लोगों को देखा जा सकता है, जिन्होंने गांधी की अस्थियों को संगम में विसर्जित किया।

इलाहाबाद में 12 फरवरी 1948 में महात्मा गांधी की अस्थि कलश विसर्जन के दौरान नाव पर बैठे देवदास गांधी के साथ जवाहर लाल नेहरू (Source-
gandhiheritageportal.org)

इससे स्पष्ट है कि महात्मा गांधी की समाधि स्थल दिल्ली स्थित राजघाट है और गांधी की मृत्यु के बाद उनका दाह संस्कार किया गया और फिर उनकी अस्थियों को विशेष ट्रेन से प्रयागराज ले जाकर संगम में विसर्जित किया गया, जो उनकी हिंदू पहचान की पुष्टि करता है।

दावा

कांग्रेसियों ने देश से छिपाई गांधी की असलियत))राजघाट दिल्ली में जो बना है वह है (गांधी स्मारक) और रामपुर (उत्तर प्रदेश) में जो बना है वह है गांधी की मजार (कब्र) बापू की अस्थियों को लेकर बहस छिड़ी थी कि गांधी हिंदू हैं. इसलिए उनकी अस्थियों का विसर्जन भी हिंदू ही करेंगे परन्तु कांग्रेसियों और रामपुर के नबाब रजा अली खां जानते थे कि बापू इस्माईली मुसलमान हैं अत: दिल्ली में रामपुर के नवाब रजा अली और दरबारी कांग्रेसियों की मिटिंग हुई जिसमें निर्णय हुआ कि बापू की अस्थियां नवाब रजा अली खान को दे दी जायें नवाब रजा अली गांधी परिवार से अस्थियाँ स्पेशल ट्रेन से रामपुर ले गया और अस्थियों को चांदी की सुराही में भरकर मुस्लिम तरीके से दफनाकर गांधी की मजार बना दी

जांच

रामपुर जिला प्रशासन की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, “राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि दिल्ली के राजघाट के अलावा रामपुर में भी है। 11 फरवरी 1948 को बापू की अस्थियां रामपुर लाई गई थीं। बापू की अस्थियों का कुछ हिस्सा कोसी नदी में विसर्जित कर दिया गया। शेष अस्थियों को चांदी के कलश में रखकर दफन कर दिया गया था। यहां पर आज शानदार गांधी समाधि है।”

Source-rampur district administration website

‘रामपुर का इतिहास’ लिखने वाले इतिहासकार शौकत अली खां ने विश्वास न्यूज को बताया, “रामपुर के नवाब रजा अली खां कई अन्य सहयोगियों के साथ बापू के अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे। राजघाट पर दाह संस्कार के बाद रजा अली खां गांधी जी के बेटे के घर गए और उन्होंने कुछ अस्थि अंश दिए जाने की मांग की। उनकी इस मांग पर कुछ लोगों ने आपत्ति की, क्योंकि उनके मुताबिक किसी हिंदू व्यक्ति का अस्थि कलश किसी मुस्लिम को कैसे दिया जा सकता था।”

उन्होंने बताया कि रामपुर के नवाब अपने साथ कैबिनेट के मंत्रियों और पुरोहितों के साथ वहां पहुंचे थे। नवाब के साथ मौजूद पुरोहितों और दिल्ली में मौजूद पुरोहित और अन्य लोगों के बीच विचार-विमर्श हुआ और फिर सहमति बनी कि अस्थियों का एक अंश को रामपुर के नवाब को सौंपा जा सकता है। शौकत अली खां ने कहा, “नवाब राजा अली खां अपने साथ अष्टधातु का कलश भी लेकर गए थे, जिसमें वह अस्थि लेकर रामपुर लौटे। इसके बाद इस अस्थि के एक हिस्से को कोसी नदी में विसर्जित किया और बचे हुए हिस्से को चांदी के कलश में रखकर दफनाया गया, जहां गांधी समाधि स्थल का निर्माण किया गया। फिलहाल यह रामपुर के दर्शनीय स्थलों में से एक है।” शौकत अली खां ने बताया, “इस दौरान नवाब ने समाधि स्थल के नीचे अस्थि कलश के साथ एक टाइम कैप्सूल भी रखा, जिसमें रामपुर का इतिहास दर्ज है।”

निष्कर्ष: यह कहना गलत है कि गांधी की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित नहीं कर उसे रामपुर के तत्कालीन नवाब रजा अली खां को सौंप दिया गया। गांधी की अस्थियों को उनके बेटे ने प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) के संगम में विसर्जित किया। गांधी की अस्थियों को कई हिस्सों में विभाजित कर उसे सभी प्रांतों के गवर्नरों को भेजे जाने के साथ अस्थियों की थोड़ी-थोड़ी मात्रा को देश की सभी पवित्र नदियों में भी प्रवाहित किया गया था। इन्हीं में से एक हिस्सा रामपुर के तत्कालीन नवाब रजा अली खां को भी मिला था, जिसका एक हिस्सा उन्होंने कोसी नदी में विसर्जित किया और बचे हुए हिस्से को चांदी के कलश में रखकर दफनाया, जहां आज रामपुर का गांधी समाधि स्थल मौजूद है।

False
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