देश की आबादी में 0.4 फीसदी की हिस्सेदारी होने के बावजूद कुल टैक्स संग्रह में जैन समुदाय 24 फीसदी से अधिक का योगदान दिए जाने का दावा गलत और मनगढ़ंत हैं। सरकार धार्मिक आधार पर टैक्स रिटर्न भरने वालों का कोई डेटा एकत्र नहीं करती है। 2018-19 की इनकम टैक्स रिटर्न स्टैटिस्टिक्स असेसमेंट रिपोर्ट के मुताबिक, कुल छह श्रेणियों में टैक्स संग्रह का आंकड़ा लिया जाता है, जिसमें व्यक्तिगत, एचयूएफ, फर्म, एओपी/बीओआई, कंपनियां और अन्य (ट्रस्ट और सहकारी समितियां समेत अन्य) शामिल हैं।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित तीर्थस्थल सम्मेद शिखर को लेकर हुए विवाद के बाद सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि भारत की कुल आबादी में जैन समुदाय की आबादी केवल 0.4 फीसदी है, वहीं कुल कर संग्रह में इस समुदाय का योगदान 24% है।
विश्वास न्यूज ने अपनी जांच में पाया कि यह दावा पूरी तरह से मनगढ़ंत और फेक है, जिसका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है। धर्म के आधार पर संग्रह का कोई आंकड़ा देश में मौजूद नहीं है और न ही कर अदा करते समय किसी को अपने धर्म के बारे में जानकारी देनी होती है।
फेसबुक यूजर ‘Mohit Jain’ ने वायरल पोस्ट (आर्काइव लिंक) को शेयर करते हुए लिखा है, ”The Jain community forms less than 0.4% of India’s population, however, they contribute more than 24% to personal tax. Jains own more than 28% Indian property & has the highest literacy rate at 94.1%. This is what we get in return!!!” (”भारत की कुल आबादी में जैन समुदाय की हिस्सेदारी 0.4 फीसदी से भी कम है। हालांकि, पर्सनल टैक्स में इनका योगदान 24 फीसदी से भी अधिक है। जैन की भारतीय संपत्ति में 28 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी है और इनकी साक्षरता दर 94.1 फीसदी से अधिक है। और हमें बदले में यह (सम्मेद शिखर विवाद) मिलता है।”)
ट्विटर पर भी कई यूजर्स ने इस दावे को सच मानते हुए शेयर किया है।
वायरल पोस्ट में दावा किया गया है कि भारत की कुल आबादी में जैन समुदाय की हिस्सेदारी 0.4 फीसदी से भी कम है। 2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, भारत की कुल आबादी में छह प्रमुख धार्मिक समुदायों की हिस्सेदारी है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, भारत की कुल आबादी 121.09 करोड़ रुपये है और इसमें हिंदुओं की आबादी 96.63 करोड़ (79.8 फीसदी), मुस्लिम 17.22 करोड़ (14.2 फीसदी), ईसाई 2.78 करोड़ (2.3 फीसदी), सिख 2.08 करोड़ (1.7 फीसदी), बौद्ध 0.84 करोड़ (0.7 फीसदी) और जैन 0.45 करोड़ (0.4 फीसदी) है।
यानी वायरल पोस्ट में जैन आबादी को लेकर जो दावा किया गया है, वह सही है। इसके बाद हमने टैक्स में उनकी हिस्सेदारी संबंधी दावे की जांच की। इनकम टैक्स की वेबसाइट पर मौजूद 2018-19 की असेसमेंट रिपोर्ट में रिटर्न जमा करने वालों का स्टेटस आधारित विवरण मौजूद है।
इसमें रिटर्न देने वालों की जो श्रेणी है, वह छह प्रकार की है, जिसमें व्यक्तिगत, एचयूएफ, फर्म, एओपी/बीओआई, कंपनियां और अन्य शामिल हैं। अन्य में ट्रस्ट्स, को-ऑपरेटिव सोसाइटीज, एलएलपी, स्थानीय प्राधिकरण और आर्टिफिशिएल ज्यूरिडिशियल पर्सन हैं। नीचे दिए चार्ट में इस विवरण को देखा जा सकता है।
इनकम टैक्स की वेबसाइट पर मौजूद एचयूएफ (हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली) को इनकम टैक्स की धारा 2 (31) के तहत ”पर्सन या व्यक्ति” के तौर पर देखा जाता है और इसमें स्वाभाविक परिवार (अविवाहित बेटी) शामिल होता है, क्योंकि इसे किसी अनुबंध के तहत निर्मित नहीं किया जाता है, बल्कि यह हिंदू परिवार में स्वत: ही निर्मित हो जाता है।
आयकर अधिनियम के मुताबिक- हालांकि, जैन और सिख समुदाय हिंदू कानून से संचालित नहीं है, लेकिन उन्हें इस एक्ट के तहत एचयूएफ के तौर पर देखा जाता है।
हमारी जांच से यह स्पष्ट है कि जैन समुदाय के टैक्स रिटर्न का कोई आंकड़ा सरकार के पास मौजूद नहीं है, क्योंकि धर्म के आधार पर टैक्स रिटर्न का आंकड़ा सरकार जमा ही नहीं करती है। वायरल दावे को लेकर हमने टैक्स और इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट एवं अपना पैसा के चीफ एडिटर बलवंत जैन से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि एचयूएफ श्रेणी में हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय आते हैं, जबकि मुस्लिम, पारसी और ईसाई इसके अंतर्गत नहीं आते हैं। उन्होंने कहा कि टैक्स फॉर्म में धर्म का कोई कॉलम नहीं होता है, इसलिए धार्मिक समुदायों के कर में हिस्सेदारी संबंधी आंकड़ों का सवाल ही पैदा नहीं होता है।
जैन ने कहा कि जहां तक एचयूएफ का सवाल है तो इसे टैक्स कानून में व्यक्ति की तरह ही ट्रीट किया जाता है और जैसे किसी व्यक्ति विशेष को 2.5 लाख रुपये तक की आय पर कर छूट मिली हुई है, वैसे ही एचयूएफ को भी यह सुविधा हासिल है।
वायरल पोस्ट को गलत दावे के साथ शेयर करने वाले यूजर ने फेसबुक पर स्वयं को जैन समुदाय का बताया है और यह प्रोफाइल फेसबुक पर जून 2019 से सक्रिय है।
निष्कर्ष: देश की आबादी में 0.4 फीसदी की हिस्सेदारी होने के बावजूद कुल टैक्स संग्रह में जैन समुदाय 24 फीसदी से अधिक का योगदान दिए जाने का दावा गलत और मनगढ़ंत हैं। सरकार धार्मिक आधार पर टैक्स रिटर्न भरने वालों का कोई डेटा एकत्र नहीं करती है। 2018-19 की इनकम टैक्स रिटर्न स्टैटिस्टिक्स असेसमेंट रिपोर्ट के मुताबिक, कुल छह श्रेणियों में टैक्स संग्रह का आंकड़ा लिया जाता है, जिसमें व्यक्तिगत, एचयूएफ, फर्म, एओपी/बीओआई, कंपनियां और अन्य (ट्रस्ट और सहकारी समितियां समेत अन्य) शामिल हैं।
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