संसद परिसर में सांसदों के धरना, विरोध प्रदर्शन, उपवास और धार्मिक अनुष्ठान आदि की अनुमति नहीं दिए जाने का सर्कुलर संसदीय प्रक्रिया का हिस्सा है और यह लंबे समय से जारी होता रहा है। यूपीए सरकार के समय में भी संसद सत्र की शुरुआत से पहले इस तरह के सर्कुलर जारी होते रहते हैं।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। संसद के मानसून सत्र की शुरुआत के बाद सोशल मीडिया पर वायरल एक पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि संसद परिसर में अब धरना-प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई है। दावा किया जा रहा है कि मानसून सत्र के दौरान सांसद किसी भी तरह के धरना या विरोध प्रदर्शन के लिए संसद भवन परिसर का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं और यह सब मोदी सरकार के दौरान पहली बार हो रहा है।
विश्वास न्यूज की जांच में यह दावा भ्रामक निकला। मानसून सत्र की शुरुआत से पहले संसद सचिवालय की ओर से जारी सर्कुलर के मुताबिक, संसद भवन परिसर में प्रदर्शन, धरना, भूख-हड़ताल आयोजित नहीं किए जा सकते हैं, लेकिन यह कोई नई बात नहीं है, बल्कि यह लंबे समय से चले आ रहे संसदीय प्रक्रिया का हिस्सा रहा है। इससे पहले की सरकारों के समय में ऐसा सर्कुलर जारी होता रहा है।
फेसबुक यूजर ‘भैयाजी पत्रकार’ ने वायरल पोस्ट (आर्काइव लिंक) को शेयर करते हुए लिखा है, ”संसद भवन में अब सांसद धरना प्रदर्शन नहीं कर सकेंगे इसके लिए आदेश जारी कर दिया गया है। मुझे तो लगता है की विपक्ष को भी अब बैन ही कर देना चाहिए। ना विपक्ष रहेंगे ना ही ऐसा कुछ होगा।”
कई अन्य यूजर्स ने इसे समान और मिलते-जुलते दावे के साथ शेयर किया है।
सोशल मीडिया पर अधिकांश पोस्ट 15 जुलाई को शेयर किए गए हैं और उसके साथ किए गए दावे से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि संसद भवन में धरना, प्रदर्शन या उपवास को लेकर मनाही के निर्देश वाला सर्कुलर पहली बार जारी हुआ है।
सर्च में भी हमें ऐसी कई रिपोर्ट्स मिली, जिसमें इस सर्कुलर के बारे में दी गई जानकारी को ऐसे रिपोर्ट किया गया है, जैसे यह नई बात है। सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर विपक्षी दलों के कई नेताओं ने इस सर्कुलर को जारी करने पर सरकार पर हमला बोला। कांग्रेसी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश समेत अन्य नेताओं ने 14 जुलाई 2022 को जारी सर्कुलर को शेयर करते हुए मोदी सरकार पर हमला बोला, जिसमें लिखा गया है कि संसद के सदस्य किसी भी प्रदर्शन, धरना, हड़ताल, भूख-हड़ताल या किसी भी धार्मिक कार्यों के लिए संसद भवन परिसर का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।
राज्यसभा की वेबसाइट पर हमें 14 जुलाई 2022 को जारी किया गया ओरिजिनल बुलेटिन मिला, जिसमें संसद सदस्यों को संसद परिसर में किसी भी तरह के प्रदर्शन, धरना, हड़ताल या भूख-हड़ताल के लिए संसद भवन परिसर का इस्तेमाल नहीं किए जाने का निर्देश दिया गया है।
इस सर्कुलर को सेक्रेटरी जनरल पी सी मोदी की तरफ से जारी किया गया है और इसके जारी होने के बाद विपक्षी नेताओं ने इसकी कॉपी को शेयर करते हुए मोदी सरकार पर हमला बोल दिया।
दैनिक जागरण की वेबसाइट पर 15 जुलाई को प्रकाशित रिपोर्ट में इस विवाद के बारे में जानकारी दी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘राज्यसभा सचिवालय की ओर से एक सर्कुलर जारी हुआ, जिसमें संसद परिसर के अंदर धरना, विरोध प्रदर्शन, उपवास, धार्मिक अनुष्ठान आदि की अनुमति न होने की बात कही गई थी।’
रिपोर्ट में आगे लिखा गया है, ‘विपक्ष ने छूटते ही इसे ‘लोकतंत्र की आवाज को कुचलने का एक और कदम’ करार दे दिया। मगर संसदीय सचिवालय ने इसे गैर जरूरी विवाद बताते हुए साफ किया कि सत्र से पहले इस तरह के सर्कुलर नियमित रूप से जारी होते रहे हैं। कांग्रेस की यूपीए सरकार के दौरान भी इस तरह के सर्कुलर जारी किए गए थे।’
यानी जिस सर्कुलर को नई परिपाटी बताकर विवाद खड़ा किया जा रहा है, वह पहले भी जारी होता रहा है। राज्यसभा की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों से इसकी पुष्टि होती है। 22 जुलाई 2021 को भी ऐसी ही सर्कुलर जारी किया गया था, जिसमें सांसदों से संसद भवन परिसर के भीतर धरना-प्रदर्शन, हड़ताल और भूख-हड़ताल आदि नहीं करने की अपील की गई थी।
2020 में भी ऐसा ही समान सर्कुलर जारी किया गया था। 2014 में बीजेपी के नेतृत्व में केंद्र में एनडीए सत्ता में आयी और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। इससे पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) की सरकार थी। राज्यसभा की वेबसाइट पर संप्रग सरकार के समय जारी किए गए सर्कुलर को भी अपलोड किया गया है।
पांच मार्च 2012 को भी संसद सुरक्षा कार्यालय की तरफ से समान बुलेटिन जारी किया गया था।
स्पष्ट है कि संसद भवन परिसर में प्रदर्शन, धरना, भूख-हड़ताल आयोजित नहीं किए जाने को लेकर जारी किए जाने वाले निर्देश की परंपरा नई नहीं है। वायरल दावे को लेकर विश्वास न्यूज ने संसद को कवर करने वाले दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता नीलू रंजन से संपर्क किया।
उन्होंने पुष्टि करते हुए बताया कि संसद परिसर के अंदर धरना, विरोध प्रदर्शन, उपवास, धार्मिक अनुष्ठान आदि नहीं करने का सर्कुलर लगातार जारी होता रहा है और यह कोई नई परिपाटी नहीं है। यूपीए के समय में भी ऐसा सर्कुलर जारी होता रहा है और मौजूदा सरकार के कार्यकाल में भी यह जारी होता रहा है।
वायरल सर्कुलर को भ्रामक दावे के साथ शेयर करने वाले यूजर ने अपनी प्रोफाइल में दी गई जानकारी को स्वयं को पत्रकार बताया है।
निष्कर्ष: संसद परिसर में सांसदों के धरना, विरोध प्रदर्शन, उपवास और धार्मिक अनुष्ठान आदि की अनुमति नहीं दिए जाने का सर्कुलर संसदीय प्रक्रिया का हिस्सा है और यह लंबे समय से जारी होता रहा है। यूपीए सरकार के समय में भी संसद सत्र की शुरुआत से पहले इस तरह के सर्कुलर जारी होते रहते हैं।
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