2008 में असैन्य परमाणु समझौते की वजह से वाम दलों के बाहरी समर्थन को वापस लिए जाने के बाद समाजवादी पार्टी के तत्कालीन सांसद अतीक अहमद ने विश्वास मत प्रस्ताव के खिलाफ वोट डाला था, न कि उसके पक्ष में, जैसा कि सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है। अहमद समेत समाजवादी पार्टी के छह सांसदों ने पार्टी व्हिप का उल्लंघन करते हुए प्रस्ताव के खिलाफ वोट डाला था।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया पर कई यूजर्स और न्यूज रिपोर्ट्स में इस बात का दावा किया गया है कि माफिया से नेता बने अतीक अहमद ने 2008 में विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट देकर तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार को गिरने से बचाया था। रिपोर्ट्स में इस बात का दावा किया गया है कि जब असैन्य परमाणु समझौते को लेकर वाम दलों ने 2008 में बाहर से दिया गया समर्थन वापस ले लिया था, तब विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट देकर अतीक अहमद ने सरकार को बचाने का काम किया था।
विश्वास न्यूज ने अपनी जांच में इस दावे को गलत पाया। उपलब्ध संसदीय दस्तावेज के मुताबिक, अतीक अहमद उन छह सांसदों में से एक थे, जिन्होंने इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया था। इसके बाद समाजवादी पार्टी ने छहों सांसदों को पार्टी से निष्कासित कर दिया था। विश्वास मत के दौरान समाजवादी पार्टी ने सभी सांसदों को इसके पक्ष में मतदान करने का व्हिप जारी किया था।
‘जनसत्ता’ के फेसबुक पेज से साझा किए गए वीडियो (आर्काइव लिंक) में दावा किया गया है कि जब मनमोहन सिंह की सरकार गिरने वाली थी, तब जेल से निकले अतीक अहमद ने इसे बचा लिया था।
‘डक्कन हेराल्ड’ के फेसबुक पेज भी इस आर्टिकल (आर्काइव लिंक) को शेयर किया है, जो न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट है।
कई अन्य यूजर्स ने भी इस रिपोर्ट को शेयर किया है और सभी में इस बात क दावा किया गया है कि 2008 में अतीक अहमद के बेहद अहम वोट से तत्कालीन यूपीए सरकार गिरने से बच गई थी। ट्विटर पर भी इस रिपोर्ट (आर्काइव लिंक) को व्यापक रूप से शेयर किया है।
न्यूज सर्च में हमें दैनिक जागरण की वेबसाइट पर 16 अप्रैल को इस मामले से संबंधित प्रकाशित रिपोर्ट मिली, जिसे 17 अप्रैल को इस डिस्क्लेमर के साथ अपडेट किया गया है कि यह खबर न्यूज एजेंसी पीटीआई की तरफ से जारी की गई इस खबर को तथ्यात्मक रूप से गलत पाए जाने के बाद अपडेट कर दिया गया है। रिपोर्ट में लिखा गया है, “खबर में बताया गया था कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में अतीक अहमद से सहायता ली गई थी, जो तथ्यात्मक रूप से असत्य जानकारी थी। हमने अपने फैक्टचेक में इस खबर को तथ्यात्मक रूप से गलत एवं भ्रामक पाया और वेबसाइट से हटा दिया है।” यह खबर 17 अप्रैल को दैनिक जागरण अखबार में भी न्यूज एजेंसी पीटीआई के हवाले से प्रकाशित की गई थी।
न्यूज एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) की वेबसाइट से भी इस रिपोर्ट को हटा दिया गया है, जिसके आर्काइव वर्जन को यहां देखा जा सकता है।
चूंकि यह मामले 2008 में विश्वास मत पर हुई वोटिंग का है, इसलिए हमने इस मामले में संसदीय विवरण को खंगाला। संसद.इन की वेबसाइट पर मौजूद विश्वास प्रस्ताव के विवरण के मुताबिक, तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 21 जुलाई 2008 को संसद में विश्वास मत प्रस्ताव पेश किया था, जिस पर लंबी चर्चा के बाद वोटिंग हुई थी और आखिरकार यूपीए सरकार गिरने से बच गई थी।
दस्तावेज में मौजूद जानकारी के मुताबिक, अतीक अहमद ने इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं, बल्कि इसके खिलाफ मत डाला था। सरकार ने यह विश्वास प्रस्ताव 256 के मुकाबले 275 से जीत लिया था।
गौरतलब है कि अतीक अहमद ने यह वोट समाजवादी पार्टी (सपा) की तरफ से जारी व्हिप का उल्लंघन करते हुए डाला था। इसके बाद कार्रवाई करते हुए पार्टी ने अहमद समेत छह अन्य सांसदों को सपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इंडियन एक्सप्रेस की 25 जुलाई 2008 की रिपोर्ट के मुताबिक, समाजवादी पार्टी ने विश्वास मत के दौरान हुई वोटिंग में इसके खिलाफ वोट डालने पर छह सांसदों को पार्टी से निष्कासित कर दिया।
निष्कासित सांसदों में जय प्रकाश (मोहनलालगंज), एस पी सिंह बघेल (जालेसर), राज नारायण बुढ़ोलिया (हमीरपुर), अफजल अंसारी (गाजीपुर), अतीक अहमद (फुलपूर) और मुनव्वर हसन (मुजफ्फरनगर) शामिल थें।
हिंदुस्तान टाइम्स की 2008 की रिपोर्ट में भी इसका जिक्र है। रिपोर्ट के मुताबिक, सपा के कुल 39 सांसदों में से 33 ने पक्ष में और 6 ने विश्वास मत के खिलाफ वोटिंग की थी।
हमारी जांच से स्पष्ट है अतीक अहमद ने 2008 में विश्वास मत प्रस्ताव के दौरान तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ वोट दिया था, न कि उसके समर्थन में और इस वजह से उन्हें पार्टी ने निष्कासित कर दिया था, क्योंकि सपा ने विश्वास मत पर यूपीए सरकार को समर्थन देने का फैसला किया था।
वायल दावे को लेकर हमने लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि विश्वास मत के खिलाफ वोट करने के बाद लखनऊ में उनकी मुलाकात अतीक अहमद से हुई थी। पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अहमद ने इस बारे में बताते हुए कहा था उन्होंने ‘अंतर्मन’ की आवाज पर यूपीए सरकार के खिलाफ वोट दिया था। विश्वास मत अमेरिका के साथ हुई असैन्य परमाणु करार को लेकर था और मुस्लिमों पर अमेरिकी अत्याचार की वजह से उन्होंने ऐसा किया।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में पुलिस हिरासत के दौरान अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ अहमद की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
निष्कर्ष: 2008 में असैन्य परमाणु समझौते की वजह से वाम दलों के बाहरी समर्थन को वापस लिए जाने के बाद समाजवादी पार्टी के तत्कालीन सांसद अतीक अहमद ने विश्वास मत प्रस्ताव के खिलाफ वोट डाला था, न कि उसके पक्ष में, जैसा कि सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है। अहमद समेत समाजवादी पार्टी के छह सांसदों ने पार्टी व्हिप का उल्लंघन करते हुए प्रस्ताव के खिलाफ वोट डाला था।
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