Fact Check: यंग मैथमेटिशियन फॉर रामानुजन प्राइज को जीतने वाली पहली भारतीय नहीं हैं नीना गुप्ता, भ्रामक है दावा

हमने अपनी पड़ताल में पाया कि यह दावा भ्रामक है, प्रोफेसर नीना गुप्ता पहली भारतीय नहीं है, जिन्हें ये प्राइज मिला है, इससे पहले भी 3 भारतीयों को अवॉर्ड मिल चुका है।

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज़)- हाल ही में गणित के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक रामानुजन प्राइज फॉर यंग मैथमेटिशियन से भारत की प्रोफेसर नीना गुप्ता को सम्मानित किया गया है। अब इसी से जुडी एक भ्रामक खबर सोशल मीडिया पर फैल रही है और यूजर शेयर करते हुए यह दावा कर रहे हैं कि प्रोफेसर नीना गुप्ता पहली भारतीय हैं, जिन्हें यह पुरस्कार हासिल हुआ है। हमने अपनी पड़ताल में पाया कि यह दावा भ्रामक है, प्रोफेसर नीना गुप्ता पहली भारतीय नहीं है, जिन्हें ये प्राइज मिला है। इस प्राइज को जीतने वाली पहली भारतीय सुजाता रामदोरै थी जिन्होंने इसे 2006 में जीता किया था।

क्या है वायरल पोस्ट में ?

फेसबुक यूजर ने वायरल पोस्ट को शेयर किया, जिसमें नीना गुप्ता की तस्वीर बनी है और साथ में लिखा है, हिंदी अनुवाद, ‘नीना गुप्ता ने गणित में ‘ज़ारिस्की कैंसलेशन प्रॉब्लम’ के लिए प्रतिष्ठित रामानुजन प्राइज जीता है। मैम इस पुरस्कार को जीतने वाली पहली भारतीय हैं और कोई खबर नहीं है और एक लड़की जो रैंडम सवालों का उत्तर देती है और मिस वर्ल्ड जीतती है वह हेडलाइंस में है #विश्व गुरु।”

पोस्ट के आर्काइव वर्जन को यहाँ देखें

पड़ताल

जागरण जोश की खबर के मुताबिक, कोलकाता स्थित इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट की प्रोफेसर नीना गुप्ता को गणित के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक रामानुजन प्राइज फॉर यंग मैथमेटिशियन से सम्मानित किया गया है। प्रोफेसर नीना गुप्ता कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान में गणितज्ञ हैं। उन्हें ‘एफाइन अलजबरिस जोमेट्री’ और ‘कम्यूटेटिव प्रॉपर्टी’ में उत्कृष्ट कार्य के लिये सम्मानित किया गया है।

रामानुजन प्राइज फॉर यंग मैथमेटिशियन हर साल विकासशील देशो में युवा गणितज्ञों को दिया जाता है, जो 45 वर्ष से कम आयु के हैं। यह पुरस्कार श्रीनिवास रामानुजन की स्मृति में प्रदान किया जाता है और इस प्राइज को इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरेटिकल फ़िज़िक्स रामानुजन पुरस्कार भी कहा जाता है।

आईसीटीपी की ऑफिशियल वेबसाइट पर विजेताओं की सूची में हमें हर विनर के नाम के आगे देश का नाम भी नज़र आया और साफ़ देखा जा सकता है कि नीना गुप्ता से पहले 2006 में सुजाथा रामदोरई, 2015 में अमलेंदु कृष्णा और 2018 में ऋतब्रत मुंशी भी इस प्राइज को जीत चुके हैं।

पड़ताल से जुड़ी पुष्टि के लिए हमने हमारे साथी दैनिक जागरण में एजुकेशन और इससे जुड़ी फीचर स्टोरीज को कवर करने वाली कॉरेस्पॉन्डेंट रितिका मिश्रा से संपर्क किया और उन्होंने हमें बताया कि यह वायरल पोस्ट पूरी तरह सच नहीं है। नीना गुप्ता पहली भारतीय नहीं हैं, जिसको यह प्राइज मिला। इससे पहले भी तीन और भारतीयों को यह अवॉर्ड मिल चुका है।

भ्रामक खबर को शेयर करने वाले फेसबुक यूजर की सोशल स्कैनिंग में हमने पाया कि यूजर का ताल्लुक गुजरात से है।

निष्कर्ष: हमने अपनी पड़ताल में पाया कि यह दावा भ्रामक है, प्रोफेसर नीना गुप्ता पहली भारतीय नहीं है, जिन्हें ये प्राइज मिला है, इससे पहले भी 3 भारतीयों को अवॉर्ड मिल चुका है।

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