सैन्य भर्ती प्रक्रिया के लिए चले आ रहे नियम में कोई बदलाव नहीं किया गया है। व्यक्तिगत जानकारी के लिए पहले भी प्रमाण पत्र मांगे जाते रहे हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। नोटिफिकेशन को भ्रामक दावे के साथ वायरल किया जा रहा है।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया पर सेना में भर्ती को लेकर एक पोस्ट वायरल हो रही है। इसमें सैन्य भर्ती प्रक्रिया के समय मांगे जाने वाले प्रमाण पत्रों के दिशानिर्देशों का नोटिफिकेशन पोस्ट किया जा रहा है। इसे शेयर करके यूजर्स दावा कर रहे हैं कि भारत में पहली बार सेना भर्ती में जाति पूछी जा रही है।
विश्वास न्यूज ने अपनी पड़ताल में दावे को भ्रामक पाया। सेना में भर्ती के समय व्यक्तिगत जानकारी मांगे जाने के नियम में कोई बदलाव नहीं हुआ है। यह व्यवस्था पहले से लागू है।
फेसबुक यूजर Anil tushir (आर्काइव लिंक) ने 19 जुलाई को नोटिफिकेशन पोस्ट करते हुए लिखा,
मोदी सरकार का घटिया चेहरा देश के सामने आ चुका है।
क्या मोदी जी दलितों/पिछड़ों/आदिवासियों को सेना भर्ती के क़ाबिल नही मानते?
भारत के इतिहास में पहली बार “सेना भर्ती “ में जाति पूछी जा रही है।
मोदी जी आपको “अग्निवीर” बनाना है या “जातिवीर”
वायरल दावे की पड़ताल के लिए हमने सबसे पहले कीवर्ड से इसे सर्च किया। 19 जुलाई 2022 को अमर उजाला में छपी खबर के अनुसार, सैन्य भर्ती को लेकर मामला तूल पकड़ने पर सेना के एक अधिकारी ने कहा है कि अग्निपथ योजना के तहत होने वाली सैन्य भर्ती प्रक्रिया में कोई भी बदलाव नहीं किया गया है। इससे पहले भी जाति प्रमाण पत्र मांगे जाते रहे हैं।
19 जुलाई को एनएनआई ने भी इस संबंध में ट्वीट किया है। इसमें सेना के एक अधिकारी से हवाले से कहा गया है कि अग्निवीर भर्ती योजना के तहत सैन्य भर्ती प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
हमें सैन्य भर्ती के कुछ पुराने सर्कुलर मिले। सैन्य भर्ती के 2014, 2017 और 2018 के नोटिफिकेशन में भी जाति प्रमाण पत्र मांगा गया है। 2014 में भोपाल में होने वाली सैन्य भर्ती रैली के लिए निकाले गए नोटिफिकेशन में कलेक्टर अथवा तहसीलदार द्वारा जारी प्रमाणपत्र मांगा गया, जो सभी जातियों के लिए लागू होता है। सामान्य जाति के लोगों को नोटरी से जारी शपथपत्र पर जाति लिखा हुआ और सरपंच की मोहर और प्रतिहस्ताक्षर मांगा गया। वहीं, 2017 के नोटिफिकेशन में तहसीलदार या डिप्टी कमिश्नर द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र मांगा गया।
29 सितंबर 2013 को economictimes में छपी खबर के मुताबिक, रेवाड़ी निवासी डॉ. आईएस यादव ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की थी। इसके जवाब में सेना ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि वे जाति, क्षेत्र और धर्म के आधार पर भर्ती नहीं करते हैं। हलफनामा दाखिल कर सेना ने खंडन किया था कि मराठा रेजिमेंट, राजस्थान राइफल्स, डोगरा रेजिमेंट, जाट जैसी विभिन्न रेजिमेंटों में जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर भर्ती के लिए भेदभावपूर्ण वर्गीकरण किया जाता है। सेना ने कहा था कि सभी नागरिक सेना में नामांकन के लिए पात्र हैं। धर्म, जाति, लिंग, वंश, जन्मस्थान और निवास के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया गया है।
इसकी अधिक जानकारी के लिए हमने रिटायर लेफ्टिनेंट कर्नल अमरदीप त्यागी से बात की। उनका कहना है,’सेना के भर्ती नियमों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। प्रमाणपत्र पहले भी मांगा जाता रहा है। ऐसा कुछ पहली बार नहीं हुआ है।‘
नोटिफिकेशन को भ्रामक दावे के साथ शेयर करने वाले फेसबुक पेज ‘अनिल तुशिर‘ को हमने स्कैन किया। 26 फरवरी 2015 को बने इस पेज को 811 लोग फॉलो करते हैं। यह पेज एक राजनीतिक दल से प्रेरित है।
निष्कर्ष: सैन्य भर्ती प्रक्रिया के लिए चले आ रहे नियम में कोई बदलाव नहीं किया गया है। व्यक्तिगत जानकारी के लिए पहले भी प्रमाण पत्र मांगे जाते रहे हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। नोटिफिकेशन को भ्रामक दावे के साथ वायरल किया जा रहा है।
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