निष्कर्ष: विश्वास न्यूज़ ने अपनी पड़ताल में पाया की नोबेलिस्ट ल्यूक मोन्टैग्नियर ने ना ही यह कहा की वक्सीनशन करवाने वालों की दो साल के अंदर मौत हो जाएगी और ना ही यह दावा सही है। ल्यूक मोन्टैग्नियर के ज़रिये उनके इंटरव्यू में किये गए दावे ‘कोरोना के नए वेरिएंट्स वैक्सीन की वजह से आए हैं’ और ‘यह वायरस द्वारा बनाई गयी एंटीबॉडीज़ हैं, जो इन्फेक्शन को मजबूत बनने में कारगर बनाते हैं’ भी गलत हैं। वैक्सीन के कारण वायरस के म्यूटेशन या वेरिएंट नहीं बनते हैं। शरीर के एंटीबॉडीज की वजह से वायरस अपना स्वरूप बदल सकता है लेकिन शरीर में एंटीबॉडीज केवल वैक्सीन से नहीं बनता है। इसलिए यह दावा पूरी तरह से निराधार है कि किसी भी वैक्सीन की वजह से वायरस के वेरिएंट्स बनते हैं या उसमें म्यूटेशंस होता है.
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज़)। फ्रेंच नोबेलिस्ट ल्यूक मोन्टैग्नियर के नाम से एक पोस्ट वायरल हो रही है। पोस्ट में दावा किया गया है कि रेयर फाउंडेशन यूएसए द्वारा अनुवादित और प्रकाशित एक इंटरव्यू में मोन्टैग्नियर ने कहा कि जिन लोगों ने भी कोरोना वायरस की वैक्सीन लगवाई है उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं है और दो साल के अंदर ही मौत हो जाएगी। पोस्ट के साथ एक खबर और ल्यूक मोन्टैग्नियर के विकिपीडिया पेज के लिंक को भी देखा जा सकता है। विश्वास न्यूज़ ने ल्यूक मोन्टैग्नियर के ज़रिये इंटरव्यू में किये गए दावों की भी पड़ताल की। उन्होंने दावा किया, ‘कोरोना के नए वेरिएंट्स वैक्सीन की वजह से आए हैं’ और ‘यह वायरस द्वारा बनाई गयी एंटीबॉडीज़ हैं, जो इन्फेक्शन को मजबूत बनने में कारगर बनाते हैं’। विश्वास न्यूज़ ने अपनी पड़ताल में पाया कि यह तमाम दावे बेबुनियाद हैं।
नोबेलिस्ट ल्यूक मोन्टैग्नियर ने ना ही यह कहा कि टीकाकरण करवाने वालों की दो साल के अंदर मौत हो जाएगी और ना ही यह दावा सही है। वायरल पोस्ट के साथ lifesitenews.com की जिस खबर का लिंक दिया गया है, वहां भी हमें यह बयान नहीं मिला। इसके अलावा ल्यूक मोन्टैग्नियर के इंटरव्यू में किये गए दावे भी बेबुनियाद हैं। शरीर के एंटीबॉडीज की वजह से वायरस अपना स्वरूप बदल सकता है, लेकिन शरीर में एंटीबॉडीज केवल वैक्सीन से नहीं बनता है। WHO ने भी वायरल दावे को गलत बताते हुए खंडन किया है।
सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म्स पर बहुत से यूजर इस पोस्ट को शेयर कर रहे हैं। उन्हीं में से एक यूजर सुब्रता चटर्जी ने इसी पोस्ट को शेयर किया, जिसमें लिखा था, अनुवादित: ”सभी टीके लगाने वाले 2 साल के अंदर मर जाएंगे’ नोबेल पुरस्कार विजेता ल्यूक मॉन्टैग्नियर ने पुष्टि की है कि जिन लोगों को वैक्सीन का कोई रूप मिला है, उनके बचने की कोई संभावना नहीं है। चौंकाने वाले साक्षात्कार में, दुनिया के शीर्ष वायरोलॉजिस्ट ने स्पष्ट रूप से कहा: “उन लोगों के लिए कोई उम्मीद नहीं है, और उनके लिए कोई संभावित इलाज नहीं है। हमें शवों को भस्म करने के लिए तैयार रहना चाहिए।” वैक्सीन के घटकों का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिक प्रतिभा ने अन्य प्रमुख वायरोलॉजिस्ट के दावों का समर्थन किया। “वे सभी एंटीबॉडी निर्भर वृद्धि से मर जाएंगे और कुछ नहीं कहा जा सकता है।” “यह एक बहुत बड़ी गलती है, है ना? एक वैज्ञानिक त्रुटि के साथ-साथ एक चिकित्सा त्रुटि भी। यह एक अस्वीकार्य गलती है, ”मॉन्टैग्नियर ने कल रेयर फाउंडेशन यूएसए द्वारा अनुवादित और प्रकाशित एक साक्षात्कार में कहा। “इतिहास की किताबें इसे दिखाएंगी, क्योंकि यह टीकाकरण है, जो वेरिएंट बना रहा है।” कई महामारी विज्ञानी इसे जानते हैं और “एंटीबॉडी-निर्भर वृद्धि” के रूप में जानी जाने वाली समस्या के बारे में “चुप” हैं।”
पोस्ट के आर्काइव वर्जन को यहाँ देखें।
वायरल की जा रही इस पोस्ट की पड़ताल विश्वास न्यूज़ ने दो भागों में की है। पहले भाग में वायरल पोस्ट की पड़ताल है, जिसमें फ्रेंच नोबेलिस्ट ल्यूक मोन्टैग्नियर के हवाले से दावा किया जा रहा है की वैक्सीन लगवाने वाले सभी लोग दो साल के अंदर मर जायेंगे। वहीँ, पड़ताल के दूसरे भाग में हमने ल्यूक मोन्टैग्नियर के उस इंटरव्यू के हिस्से की पड़ताल की है, जिसे अब वायरल किया जा रहा है।
पोस्ट के साथ lifesitenews.com का लिंक है और पोस्ट में लिखा गया है कि ल्यूक मोन्टैग्नियर ने अपने इंटरव्यू में कहा, ‘जिन लोगों ने कोविड वैक्सीन लगवाई है उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं है, वैक्सीन लगवाने वालों की दो साल के अंदर हो जाएगी मौत”।
फ्रेंच लैंग्वेज में हुए ल्यूक मोन्टैग्नियर के इंटरव्यू के एक हिस्से को यूएसए की रेयर फाउंडेशन ने अनुवाद किया था और 18 मई 2021 को आर्टिकल पब्लिश किया था। इसी इंटरव्यू की बुनियाद पर यह दावा किया जा रहा है, लेकिन हमें पूरे इंटरव्यू में वायरल दावे जैसा कोई बयान नहीं मिला। इंटरव्यू में नोबेलिस्ट ने कहा था, ‘वैक्सीन से वेरिएंट बन रहा है और इसी वजह से जिन देशों में वैक्सीन लगाई गयी है, वहां ज़्यादा मौतें हुई हैं।’ इसी बयान को फ़र्ज़ी रूप दिया गया है। रेयर फाउंडेशन के पूरे आर्टिकल को यहाँ पढ़ सकते हैं।
वायरल पोस्ट के साथ lifesitenews.com का न्यूज़ लिंक दिया गया है। हालांकि, हमें यहां पर भी ‘दो साल के अंदर मौत हो जाने’ जैसा वायरल किया जा रहा बयान नहीं मिला। 25 मई 2021 को रेयर फाउंडेशन ने आर्टिकल पब्लिश करते हुए इस बात का खंडन किया की नोबलिस्ट मोन्टैग्नियर ने दो साल में मौत से जुड़ा कोई बयान नहीं दिया है।
विश्वास न्यूज़ ने पुष्टि के लिए रेयर फाउंडेशन की फाउंडर एमी मेक से ट्विटर के ज़रिये संपर्क किया और उन्होंने हमें बताया की ल्यूक मोन्टैग्नियर के नाम से जिस बयान को वायरल किया रहा है, वो गलत है। उन्होंने हमारे साथ रेयर फाउंडेशन के इसी मामले पर खंडन का ट्वीट और आर्टिकल भी शेयर किया।
वहीं, डब्लूएचओ ने भी इस बारे में संज्ञान लेते हुए विश्वास न्यूज़ को बताया की यह बिल्कल गलत है और वर्तमान वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित नहीं है। वैक्सीन ने 25 से अधिक बीमारियों को रोककर लाखों लोगों की जान बचाई है।
पड़ताल के दूसरे हिस्से में हमनें ल्यूक मोन्टैग्नियर के ज़रिये इंटरव्यू में किये गए दावों की पड़ताल की। उन्होंने पहला दावा किया, ”कोरोना के नए वेरिएंट्स वैक्सीन की वजह से आए हैं और यह वेरिएंट्स वैक्सीन के लिए प्रतिरोधी हैं”।
भारत में पहली वैक्सीन 16 जनवरी 2021 को लगी, जबकि मिनिस्ट्री ऑफ़ बायोटेक्नोलॉजी की वेबसाइट पर दी गयी जानकारी की मुताबिक, इंडिया में म्यूटेंट हुए इस वायरस के B.1.617 का पहला मामला महाराष्ट्र में 7 दिसंबर 2020 को रजिस्टर किया गया।
इस दावे की पुष्टि के लिए हमनें अशोका यूनिवर्सिटी, त्रिवेदी स्कूल ऑफ़ बायोसाइंस के डायरेक्टर वायरोलॉजिस्ट डॉक्टर शाहिद जमील से संपर्क किया। उन्होंने हमें बताया की ल्यूक मोन्टैग्नियर के इसी इंटरव्यू पर उन्होंने thewire.in के लिए एक आर्टिकल लिखा है और वहां से सभी जानकारी हासिल की जा सकती हैं। 27 मई 2021 को पब्लिश हुए इस आर्टिकल में साफ़ तौर पर लिखा गया है, ‘वायरस समेत तमाम जीवों में म्यूटेशंस होते हैं। यह आरएनए वायरस जैसे कोरोना वायरस, इन्फ्लूएंजा वायरस इत्यादि के लिए विशेष रूप से सच है। इसलिए म्यूटेशन के हर दौर के साथ रेप्लिकेशन जमा होते हैं। इम्यून प्रतिक्रिया एक मजबूत सिलेक्शन फाॅर्स है, जो केवल SARS-CoV-2 ही नहीं, बल्कि सभी वायरस के डेवेलपमेंट को इवैलुएट करता है।” वहीं, B.1.617 वेरिएंट की टाइम लाइन को बताते हुए लिखा गया है, ‘यह टाइम लाइन इस एप्रोच को नकारती है कि वैक्सीन की वजह से नए वेरिएंट्स उत्पन हुए हैं।” पूरा आर्टिकल यहां पढ़ सकते हैं।
जागरण न्यू मीडिया के Senior Editor Pratyush Ranjan ने ल्यूक मॉन्टैग्नियर द्वारा किए गए दावों पर आईसीएमआर के डॉ. अरुण शर्मा से बात की। डॉ. अरुण शर्मा आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इम्प्लीमेंटेशन रिसर्च ऑन नॉन कम्युनिकेबल डिज़ीज़ (जोधपुर) के डायरेक्टर हैं। वह कम्युनिटी मेडिसिन एक्सपर्ट भी हैं। वायरल पोस्ट में किये गए दावे पर डॉक्टर शर्मा ने यह जवाब दिया।
प्रश्न्: वैक्सीेन ही वेरिएंट तैयार कर रही है। नए प्रकार के वेरियंट वैक्सीन के कारण की बनते हैं
उत्तर: यह एक निराधार दावा है। इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
प्रश्न्: वायरस वेरिएंट बना सकते हैं, जो वैक्सीन प्रतिरोधी हो सकते हैं।
उत्तर: यह संभव है और वायरस अपना वेरियंट बनाता है। हालांकि, यह कहना सही नहीं है कि यह वैक्सीन या वैक्सीनशन के कारण होता है।
प्रश्न्: यह वायरस/ वैक्सीन द्वारा निर्मित एंटीबॉडी हैं जो संक्रमण को बढाती है। अगर हम कोविड-19 वैक्सीन की बात करें तो यह कितना सही है?
उत्तर: यह बिल्कुल निराधार दावा है, और यह अभी तक कोविड -19 वैक्सीनशन के मामले में ऐसा कुछ देखा नहीं गया है। कोविड-19 और इसके वेरिएंट्स से लड़ने के लिए और खुद को सुरक्षित रखने के लिए वैक्सीनेशन सबसे महत्वपूर्ण कदम है। सभी को बिना किसी हिचकिचाहट के टीकाकरण के लिए जाना चाहिए और दोनों डोजेज़ को आवश्यकतानुसार पूरा करना चाहिए और वैक्सीनशन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी कोविड की सभी गाइडलाइन्स का पालन करते रहना चाहिए।
आप डॉ. शर्मा के साथ कोविड-19 और वैक्सीन के ऊपर जागरण डायलॉग की एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू यहाँ देख सकते हैं।
पड़ताल के अगले चरण में हमने ज़्यादा जानकारी हासिल करने के लिए न्यूज़ सर्च किया और हमें 16 मार्च 2021 को medpagetoday की वेबसाइट पर पब्लिश हुआ एक आर्टिकल मिला। इसमें डेरेक लोव, पीएचडी होल्डर के साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन ब्लॉग “इन द पाइपलाइन” में लिखी गयी जानकारी का हवाला देते हुए लिखा गया, ‘COVID-19 वैक्सीन की डेवलपमेंट के शुरुआती चरणों से ही वैज्ञानिकों ने SARS-CoV-2 प्रोटीन को टारगेट करने की मांग की थी, जिससे ADE होने की संभावना कम थी। उदाहरण के तौर पर, जब उन्हें पता चला कि SARS-CoV-2 के न्यूक्लियोप्रोटीन को टारगेट करने से ADE हो सकता है, तो उन्होंने तुरंत इस एप्रोच को छोड़ दिया। सबसे सुरक्षित तरीका स्पाइक प्रोटीन के S2 सबयूनिट को टारगेट करना नज़र आ रहा था और उन्होंने इसी एप्रोच को आगे बढ़ाया गया”।
”वैज्ञानिकों ने एडीई की खोज के लिए जानवरों पर अध्ययन किया। उन्होंने इसकी तलाश ह्यूमन ट्रेल्स के ज़रिये भी की और वह इमरजेंसी ऑथोराइज़ेशन के साथ कोविड वैक्सीन के रियल वर्ल्ड के डेटा की तलाश कर रहे हैं। हालांकि, उन्हें अभी तक इसके लक्षण नहीं देखे हैं। वास्तव में इसके विपरीत हो रहा है”। पूरा आर्टिकल यहाँ पढ़ें।
ल्यूक मॉन्टैग्नियर को Françoise Barré-Sinoussi and Harald Zur Hausen के साथ साल 2008 में ह्यूमन इम्युनोडिफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) की खोज के लिए फिजियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार मिला था। मॉन्टैग्नियर अक्सर कन्ट्रोवर्सीज का हिस्सा रहते हैं। अप्रैल 2020 में उन्होंने यह कहा था था की चाइना की वुहान लैब में कोरोना वायरस तैयार किया गया है। खबर यहाँ पढ़ें
निष्कर्ष: निष्कर्ष: विश्वास न्यूज़ ने अपनी पड़ताल में पाया की नोबेलिस्ट ल्यूक मोन्टैग्नियर ने ना ही यह कहा की वक्सीनशन करवाने वालों की दो साल के अंदर मौत हो जाएगी और ना ही यह दावा सही है। ल्यूक मोन्टैग्नियर के ज़रिये उनके इंटरव्यू में किये गए दावे ‘कोरोना के नए वेरिएंट्स वैक्सीन की वजह से आए हैं’ और ‘यह वायरस द्वारा बनाई गयी एंटीबॉडीज़ हैं, जो इन्फेक्शन को मजबूत बनने में कारगर बनाते हैं’ भी गलत हैं। वैक्सीन के कारण वायरस के म्यूटेशन या वेरिएंट नहीं बनते हैं। शरीर के एंटीबॉडीज की वजह से वायरस अपना स्वरूप बदल सकता है लेकिन शरीर में एंटीबॉडीज केवल वैक्सीन से नहीं बनता है। इसलिए यह दावा पूरी तरह से निराधार है कि किसी भी वैक्सीन की वजह से वायरस के वेरिएंट्स बनते हैं या उसमें म्यूटेशंस होता है.
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