Fact Check: फेस मास्क पहनने से हो सकती है लेगिनेयर्स नामक बीमारी, ऐसा दावा करने वाला पोस्ट फर्जी

Fact Check: फेस मास्क पहनने से हो सकती है लेगिनेयर्स नामक बीमारी, ऐसा दावा करने वाला पोस्ट फर्जी

नई दिल्ली (विश्वास टीम)। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो रही है, जिसमें कहा जा रहा है कि कोरोनावायरस से बचने के लिए एक महिला ने पूरा दिन मास्क पहन कर रखा, जिससे उसे लेगिनेयर्स नाम की बीमारी हो गई। यह बीमारी उसे मास्क में मौजूद मॉइश्चर व बैक्टीरिया से हुई। विश्वास न्यूज ने इस दावे की पड़ताल की और इस दावे को गलत पाया।

क्या है वायरल पोस्ट में?

फेसबुक यूजर Amber Mccurdy ने यह पोस्ट शेयर की, जिसमें लिखे गए टेक्स्ट का हिंदी अनुवाद है: मास्क पहनने वाले सावधान। एक रेडियो शो के दौरान एक व्यक्ति ने बताया कि उसकी पत्नी हॉस्पिटल में थी और उसे कोविड हुआ था। एक डॉक्टर मित्र ने उसे पत्नी का लेगिनेयर्स बीमारी का टेस्ट करवाने की सलाह दी, क्योंकि वह हर समय एक ही मास्क लंबे समय तक लगा कर रखती थी। टेस्ट के बाद पता चला कि उसे लेगिनेयर्स बीमारी है और यह मास्क में मौजूद मॉइश्चर व बैक्टीरिया के कारण हुई थी। उसे एंटीबायोटिक्स दी गईं और व दो दिन में ठीक हो गई। क्या हो अगर कोविड की स्पाइक्स असल में मास्क पहनने से कुछ और हों? कॉपी-पेस्ट किया हुआ, लेकिन परखा हुआ मैसेज, यह मैसेज सत्य है।

पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है।

पड़ताल

पड़ताल में हमें Legionella.org वेबसाइट मिली, जिस पर लेगिनेयर्स बीमारी के बारे में सारी जानकारी दी गई है। इसके अनुसार, लेगिनेयर्स डिजीज निमोनिया का गंभीर रूप है। यह पोटेबल व नॉन पोटेबल दोनों तरह के वाटर सिस्टम में पाए जाने वाले लेगियोनेला न्यूमोफेला बैक्टीरियम की वजह से होता है। अमेरिका में हर साल 10000 से 18000 लोग इस बीमारी से इन्फेक्टेड होते हैं। यह बीमारी पीने के पानी से फैलती है न कि इन्फेक्टेड व्यक्ति से।

इस रिपोर्ट में यह साफ लिखा गया है कि मास्क पहनने से भी आपको यह बीमारी हो सकती है। यह बैक्टीरिया पीने के पानी या पानी की बूंदों में सांस लेने से फैलता है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट्स से नहीं फैलता न ही यह ड्राय सरफेस पर ठहरता है। आपके मास्क से लेगियोनेला बैक्टीरिया नहीं फैलता।

हमने इस दावे के बारे में और पड़ताल की तो हमें यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) पर एक रिपोर्ट मिली। इस रिपोर्ट में शटडाउन के बाद बिल्डिंग्स को खोलने के लिए गाइडलाइंस दी गई हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इतने लंबे बंद के बाद संभावित माइक्रोबियल खतरों का सामना करना पड़ता है, लिहाजा फिर से ओपनिंग करने से पहले इन पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए। इसमें मोल्ड व लेगियोनेला हो सकते हैं, जिसमें से लेगियोनेला लेगिनेयर्स डिजीज का कारण होते हैं।

हमें Naples Daily News में पब्लिश हुआ एक आर्टिकल मिला, जिसमें यह लिखा गया था कि ऐसी अफवाह फैली है कि मास्क पहनने से चार लोगों को लेगिनेयर्स हुआ है। हालांकि, जिस अस्पताल में इन लोगों को भर्ती करवाने का दावा किया गया है उस अस्पताल के सीईओ ने कहा है कि उन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि उसके अस्पताल में इस बीमारी के मरीज भर्ती हुए हैं या नहीं।

हमें साल 2017 की एक केस स्टडी भी मिली, जिसमें  दावा किया गया था कि कंटीन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (CPAP) मशीन का मास्क, ट्यूबिंग और ह्यूमिडिफायर की सफाई न करने के कारण 67 साल की महिला को लेगिनेयर्स डिजीज हो गई। CPAP मास्क आम मास्क नहीं होते, जिन्हें लोग कोरोनावायरस से बचने के लिए पहनते हैं, आमतौर पर यह सिलिकॉन सील के साथ हार्ड प्लास्टिक का बना होता है।

विश्वास न्यूज ने इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के रेस्पिरेटरी स्पेशलिस्ट डॉ. निखिल मोदी से संपर्क किया। उन्होंने बताया लेगिनेयर्स निमोनिया का गंभीर रूप है इसमें इन्फेक्शन के कारण फेफड़ों में सूजन आ जाती है। यह लेगियोनेला नाम के बैक्टीरियम से होती है। ज्यादातर लोगों को यह बीमारी पानी या मिट्टी से बैक्टीरिया सूंघने से होती है।

फेसबुक पर यह पोस्ट “Amber Mccurdy” नामक यूजर ने साझा की थी। जब हमने इस यूजर की प्रोफाइल को स्कैन किया तो पाया कि यूजर अमेरिका के इदाहो का रहने वाला है।

निष्कर्ष

लेगिनेयर्स डिजीज मास्क पहनने से होती है, ऐसा दावा करने वाली पोस्ट है फर्जी।

Disclaimer: विश्वास न्यूज की कोरोना वायरस (COVID-19) से जुड़ी फैक्ट चेक स्टोरी को पढ़ते या उसे शेयर करते वक्त आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि जिन आंकड़ों या रिसर्च संबंधी डेटा का इस्तेमाल किया गया है, वह परिवर्तनीय है। परिवर्तनीय इसलिए ,क्योंकि इस महामारी से जुड़े आंकड़ें (संक्रमित और ठीक होने वाले मरीजों की संख्या, इससे होने वाली मौतों की संख्या ) में लगातार बदलाव हो रहा है। इसके साथ ही इस बीमारी का वैक्सीन खोजे जाने की दिशा में चल रहे रिसर्च के ठोस परिणाम आने बाकी हैं और इस वजह से इलाज और बचाव को लेकर उपलब्ध आंकड़ों में भी बदलाव हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि स्टोरी में इस्तेमाल किए गए डेटा को उसकी तारीख के संदर्भ में देखा जाए।

False
Symbols that define nature of fake news
पूरा सच जानें...

सब को बताएं, सच जानना आपका अधिकार है। अगर आपको ऐसी किसी भी खबर पर संदेह है जिसका असर आप, समाज और देश पर हो सकता है तो हमें बताएं। हमें यहां जानकारी भेज सकते हैं। हमें contact@vishvasnews.com पर ईमेल कर सकते हैं। इसके साथ ही वॅाट्सऐप (नंबर – 9205270923) के माध्‍यम से भी सूचना दे सकते हैं।

Related Posts
नवीनतम पोस्ट