Fact Check : राजस्थान और कर्नाटक में तोड़े गए मंदिर को बनारस से जोड़ कर किया जा रहा वायरल

विश्‍वास न्‍यूज की पड़ताल में वाराणसी के नाम से वायरल दोनों वीडियो का संबंध वहां से साबित नहीं हुआ। एक वीडियो राजस्‍थान का निकला तो दूसरा कनार्टक का।

नई दिल्‍ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया के विभिन्‍न प्‍लेटफार्म पर मंदिर तोड़ने के दो वीडियो वायरल हो रहे हैं। इन वीडियो को वायरल करते हुए सोशल मीडिया यूजर्स इसे वाराणसी का बता रहे हैं। विश्‍वास न्‍यूज ने वायरल वीडियो की जांच की तो पता चला कि इन वीडियो का वाराणसी से कोई संबंध नहीं है। पहला वीडियो राजस्थान के अलवर के राजगढ़ में एक मंदिर को तोड़े जाने का है तो दूसरा कर्नाटक का पुराना वीडियो है।

क्‍या हो रहा है वायरल?

फेसबुक यूजर Parvinder Sandhu ने 17 सेकेंड के पहले वीडियो को शेयर करते हुए लिखा है, “खबरों की माने तो काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनाने के लिए तक़रीबन 200 मंदिर/शिवलिंग तोड़नी पड़ी थी। एक भारत माता मंदिर थी जो लगभग 5000 साल पुरानी थी। मकान तोड़े गए उसमें से मंदिर निकले। बात बनारस की है। बनारस को वाराणसी भी कहते हैं। मोदी वाराणसी के सांसद हैं!”

ट्विटर यूजर नूर इलाहाबादी ने भी 19 सेकंड के दूसरे वीडियो को शेयर करते हुए यही दावा किया है।

https://twitter.com/ProfNoor_/status/1517496706845216770

फैक्ट चेक के उद्देश्य से पोस्ट के कंटेंट को को हूबहू लिखा गया है। इसके आर्काइव वर्जन को यहां और यहां देखा जा सकता है। दूसरे यूजर्स भी वायरल वीडियो को वाराणसी का समझकर वायरल कर रहे हैं।

पड़ताल –

पहला वीडियो –

विश्‍वास न्‍यूज ने वायरल वीडियोज की जांच के लिए क्रमवार पड़ताल की। सबसे पहले हमने पहले वीडियो को जांचा। इनविड टूल का इस्तेमाल करते हुए वीडियो के कई ग्रैब्‍स निकाले और उन्हें गूगल रिवर्स इमेज के जरिए सर्च किया। इस दौरान हमें पहले वायरल वीडियो से जुड़ी एक रिपोर्ट दैनिक जागरण की वेबसाइट पर 22 अप्रैल को प्रकाशित मिली। खबर के अनुसार, राजस्थान के अलवर में 300 साल पुराने शिव मंदिर को अतिक्रमण के दायरे के अंदर आने के कारण बुलडोजर के जरिए ध्वस्त कर दिया गया था। द फ्री प्रेस जर्नल, लाइव हिन्दुस्तान, और इंडिया टुडे ने भी इस खबर को प्रकाशित किया है।

सर्च के दौरान हमें वायरल वीडियो से जुड़ी एक वीडियो रिपोर्ट हिन्दुस्तान टाइम्स के यूट्यूब चैनल पर भी 22 अप्रैल 2022 को अपलोड मिली। रिपोर्ट में दी गई जानकारी के अनुसार, राजस्थान के अलवर में भगवान शिव के मंदिर को बुलडोजर के जरिए तोड़ा गया था।


दूसरा वीडियो –

दूसरे वायरल वीडियो की सच्चाई जानने के लिए हमने एक बार फिर इनविड टूल का इस्तेमाल करते हुए वीडियो के कई ग्रैब्स निकाले और उन्हें गूगल रिवर्स इमेज के जरिए सर्च किया। इस प्रक्रिया में हमें वायरल वीडियो से जुड़ी एक रिपोर्ट हिंदुस्तान टाइम्स की वेबसाइट पर 19 सितंबर 2021 को प्रकाशित मिली। रिपोर्ट में टूटे हुए मंदिर की तस्वीर को प्रकाशित करते हुए बताया गया है कि कर्नाटक हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अतिक्रमण हटाने के आदेश के बाद मैसूर के पास बने मंदिर को कैमूर प्रशासन ने तोड़ दिया था।

प्राप्त जानकारी के आधार पर हमने यूट्यूब पर कुछ कीवर्ड्स के जरिए सर्च करना शुरू किया। हमें वायरल वीडियो से संबंधित खबर 15 सितंबर 2021 को इंडिया टुडे न्यूज चैनल पर अपलोड मिला। वीडियो में वायरल वीडियो वाले दृश्य को साफ तौर पर देखा जा सकता है और यहां पर भी इस घटना को कर्नाटक के मैसूर का बताया गया है।

कर्नाटक के पूर्व सीएम सिद्धारमैया ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से 11 अप्रैल 2021 को इस वीडियो को शेयर करते हुए इस घटना की आलोचना की थी।

अब तक की पड़ताल से यह साबित हो गया था कि दोनों वायरल वीडियो का वाराणसी से किसी प्रकार का संबंध नहीं है। इसके बाद हमने वीडियो के साथ किए गए दावों की जांच की। जनवरी 2019 में आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने भी यही आरोप लगाए थे। फरवरी 2019 की न्यूज़ लॉन्ड्री की रिपोर्ट में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि इस क्षेत्र का कोई भी मंदिर सत्रहवीं शताब्दी से पुराना नहीं है।

22 दिसंबर, 2018 को द टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, वाराणसी में फेंके गए मलबे से 126 टूटे हुए शिवलिंग बरामद हुए थे। जिसके बाद राजनीतिक नेताओं ने दावा किया था कि शिवलिंग काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के लिए ध्वस्त किए गए मंदिर के थे। हालांकि, पुलिस ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा कि ये शिवलिंग तत्कालीन प्रस्तावित गलियारे से करीब दो किलोमीटर दूर एक जीर्णशीर्ण मंदिर के थे।

एनडीटीवी पर 13 दिसंबर 2021 को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को लागू करने के लिए 300 से अधिक संपत्तियों का अधिग्रहण किया गया था। काशी कॉरिडोर को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से जारी बयान के मुताबिक, क्षेत्र के पुराने मंदिरों को नया रूप दिया गया है, मूल संरचना में बिना कोई बदलाव किए हुए।

खबर को पुष्टि करने के लिए हमने बनारस के दैनिक जागरण के पत्रकार शाश्वत मिश्रा से संपर्क किया। उनके साथ हमने दोनों वायरल पोस्ट और दावे को वॉट्सऐप के माध्यम से साझा किया। उन्होंने हमें बताया कि दोनों वायरल वीडियो का बनारस से कोई संबंध नहीं है।

पड़ताल के अंत में हमने फर्जी वीडियो को शेयर करने वाले यूजर की जांच की। फेसबुक यूजर परविंदर संधू के सोशल स्कैनिंग से हमें पता चला कि यूजर उत्तराखंड के रामनगर का रहने वाला है। 34 हजार से ज्यादा लोग इसे फॉलो करते हैं। वहीं, ट्विटर यूजर नूर इलाहाबादी को 10 हजार से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं।

निष्कर्ष: विश्‍वास न्‍यूज की पड़ताल में वाराणसी के नाम से वायरल दोनों वीडियो का संबंध वहां से साबित नहीं हुआ। एक वीडियो राजस्‍थान का निकला तो दूसरा कनार्टक का।

Misleading
Symbols that define nature of fake news
पूरा सच जानें...

सब को बताएं, सच जानना आपका अधिकार है। अगर आपको ऐसी किसी भी खबर पर संदेह है जिसका असर आप, समाज और देश पर हो सकता है तो हमें बताएं। हमें यहां जानकारी भेज सकते हैं। हमें contact@vishvasnews.com पर ईमेल कर सकते हैं। इसके साथ ही वॅाट्सऐप (नंबर – 9205270923) के माध्‍यम से भी सूचना दे सकते हैं।

Related Posts
नवीनतम पोस्ट