Fact Check: संदिग्ध वोटर्स को लेकर असम में सात साल पहले हुए प्रदर्शन का वीडियो अलग देश की मांग के फर्जी दावे से वायरल

असम के गोलपारा जिले में करीब सात साल पहले डी-वोटर के मुद्दे को लेकर लोगों ने प्रदर्शन किया था। प्रदर्शनकारियों को हाईवे ब्लॉक करने से रोकने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया था। उस पुराने वीडियो को भ्रामक दावे के साथ शेयर किया जा रहा है।

Fact Check: संदिग्ध वोटर्स को लेकर असम में सात साल पहले हुए प्रदर्शन का वीडियो अलग देश की मांग के फर्जी दावे से वायरल

नई दिल्‍ली (विश्‍वास न्‍यूज)। असम के नाम से एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इसमें कुछ लोगों को प्रदर्शन करते हुए और पुलिस कर्मियों को उन पर लाठियां फटकारते हुए देखा जा सकता है। वीडियो को शेयर कर कुछ यूजर्स दावा कर रहे हैं कि असम में अवैध बांग्लादेशियों के एक समूह ने रैली निकालकर अलग देश की मांग की। इसके बाद असम पुलिस ने लाठीचार्ज कर उन्हें खदेड़ा।

विश्‍वास न्‍यूज ने अपनी जांच में पाया कि असम का यह वायरल वीडियो करीब सात साल पुराना है। दरअसल, जुलाई 2017 में असम के गोलपारा जिले में डी वोटर्स के उत्पीड़न का आरोप लगाकर लोगों ने प्रदर्शन किया था। प्रदर्शनकारियों को हाईवे जाम करने से रोकने के दौरान पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया था। उस वीडियो को अब भ्रामक दावे के साथ शेयर किया जा रहा है।

क्या है वायरल पोस्ट

एक्स यूजर @ajaychauhan41 (आर्काइव लिंक) ने 29 जून को वीडियो शेयर करते हुए इसे असम का बताया। उन्होंने लिखा,

असम में अवैध बांग्लादेशियो के एक समूह ने एक रैली निकालकर अलग देश की मांग की

उन्होंने ‘आज़ादी’ के नारे भी लगाए

असम पुलिस द्वारा उनका तत्काल उपचार किया गया

बांग्लादेशी समूह के अधिकांश लोग अपने ‘आजादी नारे’ के साथ बिना सिर वाले मुर्गे की तरह वापस भाग गए।”

फेसबुक यूजर अतुल शुक्ला ने भी इस वीडियो को इसी तरह के दावे के साथ पोस्ट (आर्काइव लिंक) किया।

पड़ताल

वायरल वीडियो की जांच के लिए हमने कीफ्रेम निकालकर उसे गूगल लेंस की मदद से सर्च किया। 2 जुलाई 2017 को न्यूजक्लिक की वेबसाइट पर छपी खबर में वीडियो के कीफ्रेम का इस्तेमाल किया गया है। खबर के अनुसार, “असम के गोलपारा जिले के खरबोजा गांव में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में याकूब अली की मौत हो गई। प्रदर्शनकारी सीमा पुलिस और विदेशी न्यायाधिकरणों द्वारा डी (संदिग्ध) मतदाताओं के कथित उत्पीड़न के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग-37 की ओर मार्च कर रहे थे। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, लगभग 100 विदेशी न्यायाधिकरण डी-मतदाताओं की सूची की समीक्षा कर रहे हैं। चुनाव आयोग ने पहचाने गए डी-मतदाताओं को चुनाव आयोग द्वारा उचित नागरिकता प्रमाण-पत्रों की कमी बताते हुए उस सूची में डाल दिया था और इस तरह उनके नाम हटा दिए गए थे। गोलपाड़ा के एसपी अमिताव सिन्हा ने कहा कि जब पुलिस और सीआरपीएफ कर्मियों ने प्रदर्शनकारियों को हाईवे ब्लॉक करने से रोका तो उन्होंने पुलिस पर और वहां से गुजर रहे वाहनों पर पथराव शुरू कर दिया। इस पर सुरक्षाकर्मियों को लाठीचार्ज करना पड़ा और कुछ राउंड हवा में गोलियां चलानी पड़ीं।”

2 जुलाई 2017 को TIMES OF DHUBRI यूट्यूब चैनल पर इस वीडियो क्लिप के लंबे वर्जन को अपलोड किया गया है।  

इससे पहले भी यह वीडियो समान दावे के साथ वायरल हो चुका है। उस समय विश्‍वास न्‍यूज ने असम के स्थानीय पत्रकार किशोर गोस्वामी से संपर्क किया था। उन्होंने कहा था कि यह वीडियो गोलपारा जिले में 2017 में हुई घटना का है। यह प्रदर्शन डी-वोटर और एनआरसी विवाद को लेकर था।

वीडियो को भ्रामक दावे के साथ शेयर करने वाले एक्स यूजर की प्रोफाइल को हमने स्कैन किया। एक विचारधारा से प्रभावित यूजर के 85 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं।

निष्कर्ष: असम के गोलपारा जिले में करीब सात साल पहले डी-वोटर के मुद्दे को लेकर लोगों ने प्रदर्शन किया था। प्रदर्शनकारियों को हाईवे ब्लॉक करने से रोकने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया था। उस पुराने वीडियो को भ्रामक दावे के साथ शेयर किया जा रहा है।

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