Fact Check : सूरत में हुई हिंसा के 2019 के वीडियो को अब कर्नाटक का बताकर किया गया वायरल

विश्वास न्यूज ने अपने फैक्ट चेक में पाया कि यह दावा गलत है। यह वीडियो कर्नाटक का नहीं, सूरत का है और पुराना है।

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें कुछ लोगों को एक नीले रंग की बस पर हमला कर तोड़फोड़ करते हुए देखा जा सकता है। वीडियो को वायरल करते हुए कुछ सोशल मीडिया यूजर्स दावा कर रहे हैं कि कनार्टक में मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने इस घटना को अंजाम दिया। 

विश्वास न्यूज ने अपने फैक्ट चेक में पाया कि यह दावा गलत है। यह वीडियो कर्नाटक का नहीं है। यह वीडियो सूरत का है। वर्ष 2019 में एक रैली के दौरान भीड़ उग्र हो गई थी। उसी वक्‍त यह तोड़फोड़ की गई थी। गुजरात की पुरानी घटना के वीडियो को अब कर्नाटक का बताकर झूठ फैलाया जा रहा है। 

क्या है वायरल पोस्ट में?

फेसबुक यूजर आई सपोर्ट अन्नामलाई (I support Annamalai) ने 23 सितंबर को तस्वीर पोस्ट की और साथ में लिखा, “कर्नाटक सरकार ने महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा की व्यवस्था की, एक मुस्लिम महिला ने बस रोकने को कहा लेकिन ड्राइवर ने नहीं रोकी और फिर हुआ ये अंजाम। हिंदुओं और सभी दलों के राजनेताओं को भारत में वोटों के लिए मुसलमानों को बढ़ावा देने के खतरे का एहसास होना चाहिए। बहुसंख्यक मुसलमान भारत के लिए सदैव खतरा बने हुए हैं। जब सार्वजनिक संपत्ति क्षतिग्रस्त होती है तो वरिष्ठों के आदेशों की प्रतीक्षा किए बिना देखते ही गोली मारने का आदेश दिया जाना चाहिए। उनका समर्थन मत करो.”

यहां पोस्ट और आर्काइव वर्जन देखें

पड़ताल

इस पोस्ट की पड़ताल करने के लिए हमने सबसे पहले इस वीडियो को ठीक से देखा। वीडियो में एक जगह हमें बस का नंबर प्लेट नज़र आया, जिसमें शुरू में GJ-05 लिखा दिख रहा है। ढूंढ़ने पर हमें पता चला कि यह गुजरात के सूरत RTO का कोड है।

वीडियो में आगे हमें एक होर्डिंग दिखा, जिस पर VENUS लिखा था और साथ में एक फ़ोन नंबर लिखा था। हमने इस फ़ोन नंबर पर क्लिक किया तो हमारी बात मंथन पटेल से हुई। उन्होंने बताया कि वे सूरत स्थित वीनस पब्लिसिटी के मालिक हैं। उन्होंने बताया कि यह होर्डिंग उन्ही की कंपनी का है, जिसे सूरत के चौक बाजार में 2019 में लगाया गया था। उन्होंने यह भी कन्फर्म किया कि वीडियो सूरत का है और 2019 का है।

हमें इस घटना पर एक वीडियो टीवी चैनल टीवी 9 गुजराती के यूट्यूब चैनल पर 5 जुलाई 2019 को अपलोड मिला, जिसमें डिस्क्रिप्शन लिखा था, “सूरत में मॉब लिंचिंग की घटनाओं के खिलाफ रैली हुई हिंसक, पुलिस बल तैनात।”

हमने कीवर्ड्स के साथ ढूंढा तो हमें इस घटना पर एक खबर इंडियन एक्सप्रेस डॉट कॉम पर 5 जुलाई 2019 को छपी मिली। खबर के अनुसार “अनुवादित: तबरेज़ अंसारी की पीट-पीटकर हत्या के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस द्वारा बल प्रयोग किए जाने से सूरत में तनाव फैल गया। नानपुरा में वकील बाबू पठान के नेतृत्व में अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के बिना अनुमति के रैली करने से झड़प हो गई। पुलिस ने व्यवस्था बहाल करने के लिए आंसू गैस और गोलीबारी का सहारा लेते हुए आयोजकों को गिरफ्तार कर लिया।”

हमने इस विषय में दैनिक जागरण के गुजरात रिपोर्टर नरेंद्र अहीर से बात की। उन्होंने बताया कि यह वीडियो 2019 का सूरत का है, जब मॉब लिंचिंग के खिलाफ हुआ एक प्रदर्शन उग्र हो गया था।

अब ये तो साफ था कि वायरल वीडियो सूरत का नहीं है, मगर हमें यह जानना था कि क्या कर्नाटक में ऐसी कोई घटना हुई है? हमें कहीं भी ऐसी किसी घटना की जानकारी नहीं मिली।

अंत में हमने वायरल पोस्ट को शेयर करने वाले फेसबुक पेज I support Annamalai की सोशल साइट की जांच की। हमें पता चला कि पेज को बेंगलुरु से चलाया जाता है और पेज के 51 हजार से ज्यादा फ़ॉलोअर्स हैं।

निष्कर्ष: विश्वास न्यूज ने अपने फैक्ट चेक में पाया कि यह दावा गलत है। यह वीडियो कर्नाटक का नहीं, सूरत का है और पुराना है।

False
Symbols that define nature of fake news
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