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Explainer: तीन दशकों में स्टॉक मार्केट स्कैम की जांच के लिए बनी दो JPC, जानें क्या है यह समिति, जिसकी फिर से उठी मांग!

यह पहली बार नहीं है, जब शेयर बाजार स्कैम के मामले में जेपीसी का मुद्दा उठा हो। इससे पहले भी संसद की यह समिति दो मौकों पर स्टॉक मार्केट स्कैम की जांच कर चुकी है। स्टॉक मार्केट स्कैम पर पहली जेपीसी 1993 में गठित हुई और इसके बाद वर्ष 2002 में एक बार फिर से स्टॉक मार्केट स्कैम को लेकर जेपीसी का गठन हुआ। 1993 के स्कैम को हर्षद मेहता स्कैम के नाम से जाना जाता है, वहीं 2002 के स्कैम को केतन पारेख स्कैम के नाम से जाना जाता है।

  • By: Abhishek Parashar
  • Published: Jun 11, 2024 at 01:19 PM
  • Updated: Aug 2, 2024 at 03:59 PM

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। कुल सात चरणों में हुए लोकसभा चुनाव के बाद चार जून को वोटों की गिनती से पहले एक जून को आखिरी चरण के मतदान के बाद शाम 6.30 बजे देश के टीवी न्यूज चैनलों पर अलग-अलग एजेंसियों के एग्जिट पोल सामने आए, जिसमें बीजेपी को अकेले अपने दम पर स्पष्ट बहुमत मिलने का दावा किया गया। पोल ऑफ द पोल्स (आर्काइव लिंक) आंकड़ों के मुताबिक एनडीए को औसतन 350 से अधिक सीटें मिलने का अनुमान जताया गया।

शनिवार (एक जून शाम 6.30 बजे) को एग्जिट पोल के आंकड़े आए और अगले दिन रविवार होने की वजह से शेयर बाजार पर इस पोल का कोई भी रिएक्शन देखने को नहीं मिला।

सोमवार यानी तीन जून (मतगणना से एक दिन पहले) को बाजार की दमदार शुरुआत हुई और बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का सेंसेक्स ऐतिहासिक उच्चतम स्तर 76,738.89 को छूते हुए अंतत: 76,468.78 पर बंद हुआ। 31 मई को सेंसेक्स 73,961.31 पर बंद हुआ था यानी एग्जिट पोल के आंकड़ों के बाद बाजार पिछले ट्रेडिंग सेशन के मुकाबले करीब 2,500 से अधिक अंकों की मजबूत उछाल के साथ बंद हुआ।

ग्राफ में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि तीन जून को रिकॉर्ड बढ़त के साथ बंद हुआ बीएसई सेसेंक्स चार जून को भारी गिरावट के साथ बंद हुआ। (Source-BSE)

लेकिन चार जून यानी मतगणना के दिन यह ट्रेंड रिवर्स होता दिखा और बाजार की कमजोर शुरुआत हुई। सेंसेक्स 76,285.78 (तीन मई को 76,468.78 के मुकाबले) पर खुला और 240 सीटों के साथ बीजेपी के बहुमत हासिल नहीं कर पाने की वजह से अंतत: 72,079.05 पर करीब चार हजार अंकों से अधिक की भारी गिरावट के साथ बंद हुआ।

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे, जिसके मुताबिक बीजेपी अपने दम पर बहुमत के आंकड़ों को हासिल न कर पाई और उसे 240 सीटों पर संतोष करना पड़ा। लोकसभा में स्पष्ट बहुमत का आंकड़ा 272 है। (Source-ECI)

इसके बाद छह जून शाम पांच बजे एआईसीसी मुख्यालय, दिल्ली में राहुल गांधी की कान्फ्रेंस (आर्काइव लिंक) हुई और उन्होंने चार जून को बाजार में आई भारी गिरावट का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर शेयर बाजार को प्रभावित करने का आरोप लगाते हुए इस गिरावट को स्टॉक मार्केट ‘स्कैम’ करार देते हुए जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) से जांच कराए जाने की मांग की।

चार जून को करीब चार हजार अंकों की गिरावट के साथ सेंसेक्स 76,285.78 के स्तर से फिसलकर 72,079.05 पर बंद हुआ था लेकिन अगले तीन दिनों के ट्रेडिंग सेशंस के दौरान सेंसेक्स तीन जून की रिकॉर्ड ऊंचाई को वापस छूने में सफल रहा है और सात जून को यह 76,693.26 पर बंद हुआ।

31 मई से सात जून के बीच बीएसई सेंसेक्स (Source-BSE)

हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब शेयर बाजार स्कैम के मामले में जेपीसी का मुद्दा उठा हो। इससे पहले भी संसद की यह समिति दो मौकों पर स्टॉक मार्केट स्कैम की जांच कर चुकी है। स्टॉक मार्केट स्कैम पर पहली जेपीसी 1993 में गठित हुई और इसके बाद वर्ष 2002 में एक बार फिर से स्टॉक मार्केट स्कैम को लेकर जेपीसी का गठन हुआ।

यह जानना दिलचस्प है कि 1988 से 2008 के बीच कुल छह जेपीसी का गठन हुआ, जिसमें सर्वाधिक दो बार इस समिति का गठन स्टॉक मार्केट स्कैम की जांच के लिए किया गया। पहला वाकया 1993 का है, जब जेपीसी का गठन हर्षद मेहता स्कैम की जांच के लिए किया गया, वहीं दूसरी बार 2002 में केतन पारेख स्कैम की जांच के लिए इसका गठन किया गया।

क्या है जेपीसी?

भारत जैसे गतिशील और लगातार परिपक्व होते लोकतंत्र में संसद की भूमिका बेहद अहम होती है। संसद का बहुत सारा काम इसकी समितियों के द्वारा पूरा किया जा रहा है और इन्हीं समितियों को संसदीय समितियां कहते हैं। संसद.इन की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, ये स्थायी समितियां होती हैं, जिनका गठन समय-समय पर संसदीय अधिनियमों के तहत किया जाता है और ये लगातार अपना काम करते रहती हैं। मिसाल के तौर पर वित्तीय समितियां, विभागों से संबद्ध समितियां आदि।

वहीं, विशिष्ट मौकों या विशिष्ट प्रयोजनों के लिए जब किसी समिति की गठन किया जाता है, तो उन्हें अस्थायी या तदर्थ समितियां कहा जाता है। संबंधित कार्य के समाप्त होने के बाद ये समितियां खत्म हो जाती हैं, क्योंकि इनका गठन एक निश्चित कार्यकाल के लिए ही होता है। संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी इसी श्रेणी के अंतर्गत आती है।

मिसाल के तौर पर प्रत्येक जेपीसी की रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख होता है। मसलन हर्षद मेहता स्कैम की जांच के लिए बनी जेपीसी का गठन छह अगस्त 1992 को लोकसभा में आए प्रस्ताव के बाद हुआ था, जिसे राज्यसभा ने सात अगस्त 1992 को मंजूरी दी। इस समिति के चेयरमैन की नियुक्ति 10 अगस्त 1992 को लोकसभा स्पीकर के जरिए की गई और इसके जांच के दायरे टर्म ऑफ रेफरेंस में किया गया था।

हर्षद मेहता स्कैम की जांच के लिए 1992 में गठित जेपीसी का टर्म्स ऑफ रेफरेंस (Source-JPC Report)

कैसे होता है गठन?

prsindia.org पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, संयुक्त समितियों की स्थापना संसद के एक सदन द्वारा पारित प्रस्ताव और दूसरे सदन की तरफ से इस पर सहमति मिलने के बाद होती है। साथ ही इस समिति की सदस्यता और इसके अधिकार क्षेत्र को भी संसद ही तय व निर्धारित करती है।

वर्ष 1992 में गठित सिक्योरिटीज एंड बैकिंग लेन-देन में अनियिमितता की जांच (हर्षद मेहता स्टॉक स्कैम) के लिए गठित जेपीसी में लोकसभा के 20 और राज्यसभा के 10 सदस्यों समेत कुल 30 सांसद शामिल थे, जिसकी रिपोर्ट 21 दिसंबर 1993 को लोकसभा में पेश की गई।

वहीं, 2001 में गठित स्टॉक मार्केट स्कैम (केतन पारेख स्टॉक मार्केट स्कैम) की जांच के लिए गठित जेपीसी में कुल 30 सदस्य शामिल थे, जिसमें लोकसभा के 20 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल थे। इस जेपीसी ने अपनी जांच रिपोर्ट 19 दिसंबर 2002 को लोकसभा के समक्ष पेश किया।

जबकि, सॉफ्ट ड्रिंक्स में कीटनाशकों की मौजूदगी के मामले की जांच के लिए गठित जेपीसी में कुल 15 सदस्य थे, जिसमें 10 लोकसभा और 5 राज्यसभा के सदस्य थे।

1988 के बाद से देश में अब तक कुल छह जेपीसी गठित हुई हैं, जिसमें दो स्टॉक मार्केट स्कैम की जांच के लिए गठित हुई थीं। वहीं 1988 में जेपीसी का गठन बोफोर्स कॉन्ट्रैक्ट की जांच के लिए हुआ था और सबसे हालिया जेपीसी का गठन 2013 में 2जी ‘स्कैम’ की जांच के लिए हुआ था।

1988 के बाद से लेकर अब तक गठित जेपीसी की सूची (Source-https://eparlib.nic.in/)

जेपीसी बनाम पीएसी

जेपीसी के साथ ही एक अन्य समिति के नाम का जिक्र सामने आता है, जिसे पीएसी या लोक लेखा समिति कहा जाता है।  लेकिन यह जेपीसी से इस मामले में अलग होती है कि इसका गठन प्रत्येक साल किया जाता है और इसका मुख्य काम इस बात का पता लगाना होता है कि संसद द्वारा अनुमोदित राशि यानी बजट को किस तरह से खर्च किया गया है।

पीएस वास्तव में एक अन्य संवैधानिक संस्था सीएजी (नियंत्रक व महालेखापरीक्षक) की ऑडिट रिपोर्ट को संसद में पेश किए जाने के बाद उसकी जांच करती है।

लोक लेखा समिति या पीएसी के गठन का विवरण (Source-https://cag.gov.in/)

सरकार का कोई मंत्री इस समिति का सदस्य नहीं हो सकता है और इसकी सदस्य संख्या 22 से अधिक नहीं हो सकती है, जिसमें 15 लोकसभा सदस्य और राज्यसभा के अधिकतम सदस्यों की संख्या 7 होती है।

हालांकि, लोक लेखा समिति (PAC) का गठन हर साल किया जाता है। इसका मुख्य कर्तव्य यह पता लगाना है कि संसद द्वारा दी गई राशि (बजट) को सरकार ने किस तरह खर्च किया है। PAC, CAG रिपोर्ट के आधार पर सरकार के खातों की जांच करती है। इस समिति के चेयरपर्सन की नियुक्ति लोकसभा स्पीकर द्वारा की जाती है।

जेपीसी और पीएसी के बीच का मूलभूत फर्क

पीएसी की जांच का दायरा मुख्य तौर पर सीएजी की रिपोर्ट होती है। यह समिति सामान्य पॉलिसी पर कोई टीका टिप्पणी नहीं सकती है, लेकिन यह केवल इस बात को बताने के लिए अधिकृत है कि क्या इस पॉलिसी की वजह से कोई वित्तीय नुकसान हुआ है।

वहीं, जेपीसी का क्षेत्राधिकार इस बात पर निर्भर करता है कि उसके गठन का प्रस्ताव लाते वक्त संसद ने उसका दायरा क्या तय रखा है।

कितनी प्रभावी है जेपीसी?

जेपीसी यानी संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिशें महत्वपूर्ण होती हैं, लेकिन सरकार इस रिपोर्ट के आधार पर कोई कार्रवाई करने के लिए बाध्य नहीं होती है।

सरकार इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर नए जांच की सिफारिश कर सकती है, लेकिन यह विशेषाधिकार सरकार का होता है। सरकार जेपीसी और अन्य समितियों की सिफारिशों के आधार पर सरकार को यह बताना होता है कि उसने इन सिफारिशों के आधार पर क्या कार्रवाई की। इसके बाद समिति सरकार के जवाब के आधार पर संसद में ‘एक्शन टेकन रिपोर्ट्स’सौंपती है।  इन रिपोर्ट्स पर संसद में चर्चा होती है और सरकार से इस पर सवाल पूछे जा सकते हैं।

केतन पारेख स्कैम और जेपीसी (2001)

केतन पारेख स्कैम की जांच के लिए गठित जेपीसी ने इस बात पर विचार किया था कि आखिर क्यों बार-बार (1992 का हर्षद मेहता स्कैम) इस तरह का स्कैम हो रहा है और समिति ने पााया पिछली जेपीसी की रिपोर्ट जिसे 21.12.1993 को सौंपा गया था, वह प्रभावी नहीं थी। इस जेपीसी के आधार पर पहला एटीआर यानी एक्शन टेकन रिपोर्ट जुलाई 1994 को संसद को सौंपा गया और दूसरा दूसरा दिसंबर 1994 में संसद के समक्ष पेश किया गया। पहले एटीआर में जहां 273 सिफारिशें की गई थी, वहीं दूसरी एटीआर रिपोर्ट में 147 अनुशंसाएं की गई थी।

घटनाक्रम

जेपीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इन सबकी शुरुआत 1999 में हुई, जब सेंसेक्स जुलाई 1999 से मार्च 2000 तक बेतहाशा बढ़ा, जो भारतीय मानकों के मुताबिक नहीं था।

31 मार्च 1999 को सेंसेक्स 3740 के स्तर पर था, जो 31 मार्च 2000 तक बढ़कर 5001 के स्तर पर चला गया और इसके बाद 30 मार्च 2001 को गिरकर 3604 के स्तर पर आ गया। 2000 के मध्य में शेयरों की कीतों में गिराटव का ट्रेंड जारी था, जो लगातार लेकिन स्थिर तरीके से गिर रहा था। लेकिन मार्च 2001 के बाद से सेंसेक्स में तेज गिरावट आई, जिसे क्रैश कहा गया।

जेपीसी ने अपनी जांच (रिपोर्ट) में पाया कि केतन पारेख की इस स्कैम में महत्वपूर्ण भूमिका थी, जिसे बैंकों और कॉरपोरेट कंपनियों से भारी मात्रा में पूंजी मिली, जब सेंसेक्स लगातार नीचे गिर रहा था। केतन पारेखन कुल 23 कंपनियों के जरिए शेयरों की कीमतों में उतार-चढ़ाव ला रहा था।

हर्षद मेहता स्कैम और जेपीसी (1993)

नवंबर और दिसंबर 1991 में शेयरों की कीमतों में धीमी वृद्धि देखने को मिली, लेकिन जनवरी 1992 के बाद से शेयरों की कीमतों में अचानक से भारी वृद्धि हुई। बीएसई सेंसेक्स में 1992 की पहली तिमाही में भारी वृद्धि हुई और इंडेक्स जनवरी 1992 में 2302.5 से बढ़कर फरवरी 1992 में 3047.68 और मार्च 1992 में अंतत: 4467.32 पर जा पहुंचा।

1 अप्रैल 1991 से 21 अगस्त 1992 के बीच बीएसई सेंसेक्स की रफ्तार को दर्शाता ग्राफ (Source-JPC Report 1993)

शेयरों की कीमतों में हुई असामान्य वृद्धि को लेकर संसद में सवाल उठे और इसके बाद वित्त मंत्री ने स्टॉक एक्सचेंज और सेबी के चेयरमैन के साथ 28 मार्च 1992 को बैठक की।

इसके बाद वित्त मंत्री ने आठ जुलाई 1992 को राज्यसभा में जानकीरमन समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए माना कि कुछ बैंक अधिकारियों की मिलीभगत के जरिए “बेईमान ब्रोकर्स” ने बैंकों की सिक्योरिटी लेनदेन और वित्तीय संस्थाओं के साथ खिलवाड़ किया। इसके बाद इस मामले की जेपीसी से जांच कराए जाने की मांग उठी और फिर 9 जुलाई 1992 को तत्कालीन प्रधानमंत्री ने संसद में इस मामले की जेपीसी से जांच कराए जाने की घोषणा की, जिसकी रिपोर्ट को यहां पढ़ा जा सकता है।

2G ‘स्कैम’ की जांच के लिए बनी थी JPC

सबसे हालिया जेपीसी का गठन  2जी ‘स्कैम’ की जांच के लिए गठित हुआ था, जिसने अपनी जांच रिपोर्ट अक्टूबर 2013 में लोकसभा स्पीकर को सौंप दी थी।

सीएजी की रिपोर्ट के बाद विपक्ष इस मुद्दे को लेकर संसद नहीं चलने दे रहा था, जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को संसद में इस मामले की जेपीसी जांच कराए जाने की घोषणा करनी पड़ी थी। यूपीए सरकार के 2004 में सत्ता में आने के बाद यह पहली जेपीसी थी।

बताते चलें कि नरेंद्र मोदी सरकार के दोनों कार्यकाल (2014-2024) में किसी जेपीसी का गठन नहीं हुआ है। इस जेपीसी का गठन चार मार्च 2011 को हुआ था और इसे 2011 के मानसून सत्र के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया था। हालांकि, इस समिति को पांच विस्तार मिला और अंतत: 2013 में इसने अपनी रिपोर्ट सौंपी।

1988 के बाद से लेकर अब तक गठित कुल छह जेपीसी की रिपोर्ट को यहां पढ़ा जा सकता है। अन्य मुद्दों से संबंधित एक्सप्लेनर आर्टिकल को विश्वास न्यूज की वेबसाइट पर पढ़ा जा सकता है।

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