Quick Fact Check : जियो गेहूं के नाम पर फिर से वायरल हुई फर्जी पोस्ट

विश्‍वास न्‍यूज ने एक बार पहले भी वायरल पोस्‍ट की जांच की थी। जांच में वायरल पोस्‍ट फर्जी साबित हुई।

नई दिल्‍ली (विश्‍वास न्‍यूज)। देश में किसान आंदोलन के बीच एक बार फिर सोशल मीडिया में कुछ बोरियों की तस्‍वीरों को वायरल करते हुए भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है। इन बोरियों के ऊपर जियो लिखा हुआ है। यूजर्स इन तस्‍वीरों को सोशल मीडिया में वायरल करते हुए दावा कर रहे हैं कि जियो गेहूं का संबंध मुकेश अंबानी की कंपनी से है। विश्‍वास न्‍यूज ने एक बार पहले भी वायरल पोस्‍ट की जांच की थी। हमारी जांच में वायरल पोस्‍ट फर्जी साबित हुई। जियो के वरिष्‍ठ अफसरों से बात की। उन्‍होंने वायरल पोस्‍ट के दावों को झूठा बताया।

क्‍या हो रहा है वायरल

फेसबुक यूजर दाऊ चौहान ने 29 सितंबर को वायरल तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा है, ‘JIO गेहूँ सीधे आपके #खेतों से 17 रुपये किलो से #ख़रीद कर 50 रुपये किलो में ! बस इसे समझ जाओ #कृषि_क़ानून समझ आजाएगा ! कृषि क़ानून इसी वजह से वापिस नहीं हो रहा है!’

फैक्ट चेक के उद्देश्य से इस पोस्ट में लिखी गई बातों को यहां ज्यों का त्यों पेश किया गया है। इस पोस्ट के आर्काइव्ड वर्जन को यहां क्लिक कर देखा जा सकता है।

पड़ताल

विश्‍वास न्‍यूज एक बार पहले भी वायरल दावे की जांच कर चुका है। रिलायंस इंडस्ट्री और जियो की वेबसाइट को खंगालने पर हमें पता चला कि रिलायंस जियो मार्ट के माध्‍यम से ऑनलाइन ग्रोसरी शॉपिंग का कारोबार करता है। इसके अलावा रिलायंस फ्रेश स्‍टोर्स भी इसमें सक्रिय है।

पड़ताल के अगले चरण में विश्‍वास न्‍यूज ने रिलायंस इंडस्‍ट्रीज और जियो कंपनी के आला अधिकारियों से संपर्क किया। रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड में कॉरपोरेट कम्युनिकेशन के वाइस-प्रेसिडेंट तुषार पानिया ने वायरल पोस्‍ट को फेक बताते हुआ कहा कि यह पूरी तरह झूठ है। इस पर भरोसा न करें। वहीं, रिलायंस जियो के फ्रैंको विलियम ने विश्‍वास न्‍यूज को बताया कि कुछ लोग हमारे ब्रांड का दुरुपयोग कर रहे हैं। यह पोस्‍ट झूठी है।

पिछली पड़ताल को विस्‍तार से आप क्रमश: हिंदी और अंग्रेजी में यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

विश्वास न्यूज ने इस वायरल दावे को शेयर करने वाले फेसबुक यूजर की प्रोफाइल को स्कैन किया। यूजर यूपी के रहने वाले हैं और एक पार्टी विशेष से जुड़े हुए हैं। दाऊ चौहान के अकाउंट को अगस्‍त 2009 को बनाया गया था।

निष्कर्ष: विश्‍वास न्‍यूज ने एक बार पहले भी वायरल पोस्‍ट की जांच की थी। जांच में वायरल पोस्‍ट फर्जी साबित हुई।

False
Symbols that define nature of fake news
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