Explainer:: श्रीलंका की तरह भारत के डिफॉल्ट का दावा निराधार, जानें क्या कहते हैं आंकड़ें ?
भारत के ऊपर कुल विदेशी कर्ज 620.7 अरब डॉलर है और इसमें केंद्र सरकार की हिस्सेदारी मात्र 130.8 अरब डॉलर की है, जो कुल कर्ज का 21 फीसदी है। एक साल के भीतर कुल 267 अरब डॉलर के कर्ज का पुनर्भुगतान किया जाना है, लेकिन इसमें केंद्र की हिस्सेदारी मात्र 7.7 अरब डॉलर है, जो कुल भुगतान के 3 फीसदी से भी कम है। इसलिए यह कहना कि भारत श्रीलंका के रास्त पर जा रहा है, पूरी तरह से भ्रामक और गुमराह करने वाली स्थिति है।
- By: Abhishek Parashar
- Published: Jul 18, 2022 at 12:38 PM
- Updated: Aug 2, 2024 at 04:00 PM
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। अपने इतिहास के सबसे बुरे वित्तीय संकट का सामना करने के बाद 19 मई 2022 को श्रीलंका डिफॉल्ट कर गया। इसके बाद भारत के सोशल मीडिया भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पर सवालिया निशान उठाते हुए कई तरह के दावों को शेयर किया जाने लगा। इन्हीं में से एक दावा यह किया गया कि भारत अब श्रीलंका की राह पर चल पड़ा है क्योंकि उसे अगले नौ महीनों के भीतर कुल 267 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज या एक्सटरनल डेट का भुगतान करना है और यह रकम भारत के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 44% है। यानी भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बेहद कमजोर स्थिति में चला जाएगा और देश में कर्ज संकट की शुरुआत हो सकती है, जिसकी परिणति श्रीलंका जैसी होगी।
विश्वास न्यूज ने इस वायरल दावे की जांच की और हमने पाया कि यह दावा निराधार है और इसमें इस्तेमाल किए गए आंकड़ों को गलत संदर्भ में पेश किया जा रहा है। भारत पर कुल विदेशी कर्ज 620.7 अरब डॉलर है, लेकिन उसमें भारत सरकार की हिस्सेदारी महज 130.8 अरब डॉलर ही है, जो कुल कर्ज का 21 फीसदी है। इसमें एसडीआर यानी विदेश आहरण अधिकार भी शामिल है।
गौरतलब है कि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में स्वर्ण भंडार, विदेशी मुद्रा संपत्ति और रिजर्व ट्रेंच के अलावा अन्य विशेष आहरण अधिकार यानी एसडीआर भी शामिल है।
अब आते है कर्ज भुगतान के बारे में किए गए दावे को लेकर। वायरल पोस्ट में दावा किया गया है कि भारत के कुल विदेशी कर्ज में 267 अरब डॉलर का भुगतान अगले नौ महीनों में किया जाना है, जो कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 44% हिस्सा है। यह दावा भी भ्रामक है। यह सही है कि एक साल के भीतर कुल 267.7 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज का भुगतान किया जाना है, लेकिन इसमें केंद्र की हिस्सेदारी महज 7.7 अरब डॉलर है, जो कुल भुगतान के 3% से भी कम है। यानी विदेशी कर्ज के मामले में भारत अपेक्षाकृत ज्यादा सुरक्षित स्थिति में है।
क्या है वायरल?
फेसबुक यूजर ‘Sakir Ahmed’ ने वायरल इन्फोग्राफिक्स (आर्काइव लिंक) को शेयर किया है, जिसमें लिखा हुआ है, ”भारत श्रीलंका की तरह दुर्गति के रास्ते पर जा सकता है!”
सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर कई अन्य यूजर्स ने इस इन्फोग्राफिक्स को समान और मिलते-जुलते दावे के साथ शेयर किया है।
पड़ताल
वायरल पोस्ट में किए गए दावे की पड़ताल से पहले विदेशी कर्ज का मतलब समझते हैं। विदेशी कर्ज या एक्सटरनल डेट किसी भी देश के कर्ज का वह हिस्सा होता है, जिसे विदेशी कर्जदाताओं से लिया जाता है। विदेशी कर्जदाताओं में सरकारें, वाणिज्यिक बैंक और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान शामिल हैं। इस कर्ज के साथ एक शर्त होती है कि इसे जिस मुद्रा में लिया जाता है, उसी मुद्रा में उसे चुकाना भी होता है। (आम तौर पर यह भुगतान डॉलर में किया जाता है।)
अगर कोई देश अपने विदेशी कर्ज का भुगतान नहीं कर पाता है तो उसे सॉवरेन डिफॉल्ट कहा जाता है। आम तौर पर ऐसी स्थिति तब आती है, जब देश की अर्थव्यवस्था कमजोर हालत में होती है। देशों के केंद्रीय बैंकों के अलावा आईएमएफ और विश्व बैंक जैस संस्थाएं देशों के विदेशी कर्ज के आंकड़ों को नियमित अंतराल पर प्रकाशित करती रहती हैं। कंपनियां भी विदेशी कर्ज लेती हैं, लेकिन अगर वह भुगतान करने में विफल होती है तो उसे सॉवरेन डिफॉल्ट नहीं कहा जाता है।
सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर इस दावे के वायरल होने के बाद सरकार की तरफ से इस मामले में स्पष्टीकरण दिया गया, जिसे सभी न्यूज प्लेटफॉर्म पर प्रमुखता से प्रकाशित किया गया।
न्यूज रिपोर्ट्स के मुताबिक केंद्र सरकार ने भारत के विदेशी कर्ज से जुड़ी आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा है कि भारत के ऊपर कुल विदेश कर्ज 620.7 अरब डॉलर का है, लेकिन इसमें केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 130.8 अरब डॉलर है, जो कुल देनदारी का महज 21% हिस्सा है।
इस रकम में भारत का एसडीआर आवंटन भी शामिल है। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘केंद्र सरकार के कर्ज के बोझ से दबे होने की अफवाह आधारहीन है और कुल विदेशी कर्ज में 40% से अधिक की हिस्सेदारी गैर वित्तीय कंपनियों की है।’
रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल के भीतर कुल 267.7 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज का भुगतान किया जाना है, लेकिन इसमें केंद्र की देनदारी 7.7 अरब डॉलर की है, जो कुल कर्ज का महज 3 फीसदी हिस्सा है।
आरबीआई हर साल मार्च महीने में भारत के विदेशी कर्ज की स्थिति के बारे में जानकारी जारी करता है। 30 जून को आरबीआई की तरफ से दी गई जानकारी में मार्च 2022 तक भारत के विदेश कर्ज के बारे में जानकारी दी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2022 के अंत तक भारत का कुल विदेशी कर्ज 620.7 अरब डॉलर है, जो मार्च 2021 के मुकाबले 47.1 अरब डॉलर अधिक है। नीचे दी गई तालिका में इसे देखा जा सकता है।
तालिका में दी गई जानकारी के मुताबिक, 2022 के मार्च अंत तक कुल विदेशी कर्ज 620.7 अरब डॉलर है, जिसमें सरकार की हिस्सेदारी 130.8 अरब डॉलर की है। जबकि केंद्रीय बैंक को छोड़कर जमा लेने वाले निगमों की हिस्सेदारी 158.7 अरब डॉलर और सबसे ज्यादा हिस्सेदारी (303.5 अरब डॉलर) अन्य क्षेत्रों की है, जिसमें अन्य वित्तीय निगम, गैर वित्तीय कंपनियां, एनपीआईएसएच शामिल हैं। वहीं डायरेक्ट इवेस्टमेंट की हिस्सेदारी 27.7 अरब डॉलर है।
आरबीआई ने इन कर्ज के भुगतान को लेकर भी जानकारी दी है। दी गई जानकारी के मुताबिक, सरकार की तरफ से महज 7.7 अरब डॉलर के शॉर्ट टर्म डेट (एक साल की अवधि के भीतर भुगतान किया जाने वाला) का भुगतान किया जाना है।
वहीं, केंद्रीय बैंक को छोड़कर अन्य जमा लेने वाली निगमों को शॉर्ट टर्म में 96.8 अरब डॉलर, अन्य क्षेत्रों को 157.4 अरब डॉलर और डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट को 5.7 अरब डॉलर का भुगतान करना है। इस तरह एक साल की अवधि के भीतर कुल 267.7 अरब डॉलर का भुगतान किया जाना है, जिसमें केंद्र सरकार की हिस्सेदारी मात्र 7.7 अरब डॉलर की है।
RBI की रिपोर्ट यह भी बताती है कि मार्च 2021 के मुकाबले मार्च 2022 में विदेशी कर्ज बनाम जीडीपी अनुपात में गिरावट आई है। मार्च 2021 में यह अनुपात 21.2 फीसदी था, जो मार्च 2022 में घट कर 19.9 फीसदी हो गया है। आरबीआई का डेटा यह भी बताता है कि वित्त वर्ष 2013-14 के अंत में जीडीपी के मुकाबले विदेशी कर्ज की हिस्सेदारी 52.12 फीसदी थी, जो वित्त वर्ष 19-20 में कम होकर 51.8 फीसदी हो गई।
हालांकि, कोविड की वजह से वित्त वर्ष 21 में इसमें करीब 10% का इजाफा हुआ है। रही बात भारत के कुल सकल सार्वजनिक कर्ज की तो वह अन्य देशों के मुकाबले इस मामले में भी बेहतर स्थिति में है। न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का सार्वजनिक कर्ज जीडीपी के मुकाबले 86.9 फीसदी है, जो अधिक है लेकिन यह ब्रिटेन (125.6 फीसदी), फ्रांस (112.6 फीसदी), कनाडा (101.8 फीसदी), ब्राजील (91.9 फीसदी) और ब्रिटेन (87.8 फीसदी) के मुकाबले ज्यादा बेहतर स्थिति में है।
ऊपर इस बात का जिक्र किया गया था कि भारत पर कुल विदेशी कर्ज 620.7 अरब डॉलर है, लेकिन उसमें भारत सरकार की हिस्सेदारी महज 130.8 अरब डॉलर ही है, जो कुल कर्ज का 21 फीसदी है और इसमें एसडीआर यानी विदेश आहरण अधिकार भी शामिल है।
गौरतलब है कि किसी भी देश/अर्थव्यवस्था के पास उपलब्ध कुल विदेशी मुद्रा उस देश का विदेशी मुद्रा भंडार कहा जाता है और इसमें शामिल होते हैं-
. विदेशी परिसंपत्तियां (विदेशी कंपनियों के शेयर, डिबेंचर, बॉन्ड इत्यादि विदेशी मुद्रा में)
. स्वर्ण भंडार
. आईएमएफ के पास रिजर्व कोष, और
. विशेष आहरण अधिकार.
विशेष आहरण अधिकार को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में 1969 में अपने सदस्य देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय आरक्षित संपत्ति के रूप में बनाया था, ताकि सदस्य देशों के रिजर्व को मदद दी जा सके। हालांकि, यह समझना जरूरी है कि यह न तो कोई मुद्रा है और न ही इसे लेकर आईएमएफ पर दावा किया जा सकता है।
एसडीआर का मूल्य आईएमएफ के करेंसी बास्केट (अमेरिकी डॉलर, यूरो, रेन्मिबी, येन और पाउंड) के औसत भार के आधार पर किया जाता है।
वायरल पोस्ट में भारत के विदेशी कर्ज के आंकड़ों और उसके आधार पर किए गए दावों को लेकर विश्वास न्यूज भारत के मशहूर अर्थशास्त्री अरुण कुमार से संपर्क किया। जेएनयू में तीन दशकों से अधिक समय तक अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले कुमार ने कहा, ‘अभी के हालात में यह कहना गलत है कि भारत श्रीलंका के रास्ते पर जा रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था उस तरह से आयात पर निर्भर नहीं है, जैसा कि श्रीलंका के मामले में था। भारत के पास अभी जो विदेशी मुद्रा भंडार है, वह सुविधाजनक स्तर पर है और कर्ज भुगतान को लेकर कोई समस्या नहीं है।’
उन्होंने कहा, ‘रिजर्व पर्याप्त है और ऐसे में कर्ज संकट या सॉवरेन डिफॉल्ट की आशंका बेमानी है। लेकिन हमें रुपये की कीमत को लेकर ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इसमें तेजी से गिरावट न आए और यहां पर आरबीआई का हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है और वह ऐसा कर भी रहे हैं।’
15 जुलाई तक के आंकड़ों के मुताबिक, भारत का कुल विदेशी मुद्रा भंडार 580 अरब डॉलर का है और इस स्तर पर भारत अपने विदेशी कर्ज के भुगतान के मामले में बेहद आरामदायक स्थिति में मौजूद है।
निष्कर्ष: भारत के ऊपर कुल विदेशी कर्ज 620.7 अरब डॉलर है और इसमें केंद्र सरकार की हिस्सेदारी मात्र 130.8 अरब डॉलर की है, जो कुल कर्ज का 21 फीसदी है। एक साल के भीतर कुल 267 अरब डॉलर के कर्ज का पुनर्भुगतान किया जाना है, लेकिन इसमें केंद्र की हिस्सेदारी मात्र 7.7 अरब डॉलर है, जो कुल भुगतान के 3 फीसदी से भी कम है। इसलिए यह कहना कि भारत श्रीलंका के रास्त पर जा रहा है, पूरी तरह से भ्रामक और गुमराह करने वाली स्थिति है। 15 जुलाई तक के आंकड़ों के मुताबिक, भारत का कुल विदेशी मुद्रा भंडार 580 अरब डॉलर का है और भारत अपने विदेशी कर्ज के भुगतान के मामले में बेहद आरामदायक स्थिति में मौजूद है। ऐसे में श्रीलंका की तरह कर्ज भुगतान संकट या सॉवरेन डिफॉल्ट को लेकर किया जा रहा दावा भ्रामक है।
- Claim Review : श्रीलंका की तरह कर्ज जाल में फंस सकता है भारत
- Claimed By : FB User-Sakir Ahmed
- Fact Check : भ्रामक
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