पड़ताल में पता चला कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई थी। इन तीनों क्रांतिकारियों को मार्च 1931 को फांसी दी गई थी।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। वैलेंटाइन डे के मौके पर एक बार फिर से भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लेकर एक पोस्ट वायरल हो रही है। इस पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि 14 फरवरी के ही दिन इन तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। कुछ सोशल मीडिया यूजर्स इसे सच मानकर वायरल कर रहे हैं। विश्वास न्यूज ने वायरल पोस्ट की जांच की। दावा पूरी तरह फर्जी साबित हुआ। पड़ताल में पता चला कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई थी। इन तीनों क्रांतिकारियों को मार्च 1931 को फांसी दी गई थी।
फेसबुक यूजर डीके गंगवार ने 14 फरवरी को एक पोस्ट करते हुए दावा किया, ‘आज के ही दिन माँ भारती के सपूत भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जी को अंग्रेजों की न्यायपालिका नें फांसी की सजा सुनाई थी! आज बाबर का जन्मदिन भी है और आज ही वेलनटाइन डे भी है। इतिहास से समझों सनातनियों, अभी भी वक्त है! ऊँ नमः शिवाय।’
पोस्ट को सच मानकर दूसरे यूजर्स भी इसे वायरल कर रहे हैं। इसके आर्काइव वर्जन यहां देखा जा सकता है।
विश्वास न्यूज ने वायरल पोस्ट की जांच के लिए सबसे पहले गूगल ओपन सर्च टूल की मदद ली। संबंधित कीवर्ड से सर्च करने पर हमें बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट मिली। इसमें एम एस गिल की किताब ‘ट्रायल्स दैट चेन्ज्ड हिस्ट्री: फ्रॉम सेक्रेट्स टू सद्दाम हुसैन’ के हवाला से लिखा गया, “स्पेशल ट्राइब्यूनल कोर्ट ने 7 अक्तूबर 1930 को भारतीय दंड संहिता की धारा 121 और 302 और एक्सप्लोसिव सबस्टैंस एक्ट 1908 की धारा 4(बी) और 6(एफ़) के तहत बेहद ठंडी और संजीदा आवाज में जहर उगला और भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की मौत की सजा का एलान किया।”
बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट में ‘हिस्ट्री ऑफ़ सिरसा टाउन’ किताब का भी जिक्र किया गया। इसमें लेखक जुगल किशोर गुप्ता के हवाले से बताया गया, “लाहौर षड्यंत्र मामले में 7 अक्तूबर 1930 को ट्राइब्यूनल ने सजा का एलान किया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।” बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट को यहां पढ़ा जा सकता है।
विश्वास न्यूज ने भगत सिंह पर एजी नूरानी की चर्चित किताब द ट्रायल ऑफ भगत सिंह : पॉलिटिक्स ऑफ जस्टिस को खंगालना शुरू किया। इसके पेज नंबर 21 में भी बताया गया कि इन तीनों को 7 अक्टूबर, 1930 को फांसी की सजा सुनाई गई, जबकि 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।
जांच को आगे बढ़ाते हुए भगत सिंह आर्काइव एंड रिसोर्स सेंटर के प्रोफेसर चमन लाल से संपर्क किया गया। उनके साथ वायरल पोस्ट को शेयर किया। उन्होंने बताया कि हर साल वैलेंटाइन डे पर ऐसी पोस्ट वायरल होने लगती है। कुछ लोग जानबूझकर 14 फरवरी को भगत सिंह की फांसी की तारीख बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह पूरी तरह बकवास है। 7 अक्टूबर 1930 को उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी।
प्रोफेसर चमनलाल ने विश्वास न्यूज के साथ एक फेसबुक पोस्ट भी शेयर की। इसमें उन्होंने विस्तार से इस मामले को लेकर लिखा। इसे यहां पढ़ा जा सकता है।
पिछली पड़ताल के दौरान शहीद भगत सिंह सेन्टेनरी फाउंडेशन के चेयरमैन और भगत सिंह की छोटी बहन अमर कौर के पुत्र प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने कहा था, “यह दावा हर साल वायरल होता है और इसमें कोई सच्चाई नहीं है। लोगों को गुमराह करने के लिए ऐसे पोस्ट शेयर किए जाते हैं। भगत सिंह को फांसी की सज़ा 14 फरवरी 1931 को नहीं, 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई थी।”
विश्वास न्यूज ने वायरल पोस्ट की एक बार पहले भी जांच की थी। उस रिपोर्ट को यहां क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।
पड़ताल के अंत में फर्जी पोस्ट करने वाले यूजर की जांच की गई। फेसबुक यूजर डीके गंगवार एक राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ है। इसे चार हजार से ज्यादा फ्रेंड हैं। यूजर उधम सिंह नगर का रहने वाला है।
निष्कर्ष : विश्वास न्यूज की पड़ताल में पता चला कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई थी। 14 फरवरी की बात पूरी तरह गलत है।
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