Fact Check : कर्नाटक की मस्जिद को बाबरी बताकर किया गया वायरल

विश्‍वास न्‍यूज की पड़ताल में बाबरी मस्जिद के नाम पर वायरल दो तस्‍वीरों का कोलाज भ्रामक साबित हुआ। पहली जिस तस्‍वीर को बाबरी मस्जिद का बताकर शेयर किया जा रहा है, असल में वह कर्नाटक की एक मस्जिद है।

नई दिल्‍ली (विश्‍वास न्‍यूज)। अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को हुए बाबरी ढांचा विध्वंस की बरसी पर सोशल मीडिया में कई प्रकार की फर्जी पोस्‍ट सामने आईं है। फेसबुक पर कुछ यूजर्स कनार्टक की एक मस्जिद की पुरानी तस्‍वीर को बाबरी मस्जिद बताकर वायरल करते हुए दिखे। वायरल पोस्‍ट के साथ में बाबरी मस्जिद की एक पुरानी असली तस्‍वीर का भी इस्‍तेमाल किया गया था। विश्‍वास न्‍यूज ने वायरल पोस्‍ट की विस्‍तार से जांच की तो यह भ्रामक साबित हुई। वायरल पोस्‍ट के कोलाज में इस्‍तेमाल की गई तस्‍वीर का अयोध्‍या की बाबरी मस्जिद से कोई संबंध नहीं है। कोलाज की पहली तस्‍वीर गुलबर्गा की जामिया मस्जिद की है।

क्‍या हो रहा है वायरल

फेसबुक यूजर इमत्यिाज अहमद ने 6 दिसंबर को दो तस्‍वीरों का एक कोलाज पोस्‍ट करते हुए लिखा कि बाबरी मस्जिद थी, है और रहेगी। इंशाल्‍लाह ऐसा हमारा माना है। हमारा भी वक्‍त आएगा।

पोस्‍ट के कंटेंट को यहां ज्‍यों का त्‍यों लिखा गया है। पड़ताल किए जाने तक इस कोलाज को बड़ी संख्‍या में लोग वायरल कर चुके थे। सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर कई अन्य यूजर्स ने इस तस्वीर को समान और मिलते-जुलते दावे के साथ शेयर किया। पोस्‍ट का आकाईव्‍ड वर्जन यहां देखें।

पड़ताल

विश्‍वास न्‍यूज ने बाबरी मस्जिद के नाम से वायरल तस्‍वीर की सच्‍चाई जानने के लिए सबसे पहले वायरल कोलाज में इस्‍तेमाल की गई दोनों तस्‍वीरों को अलग-अलग सर्च करना शुरू किया। गूगल रिवर्स इमेज सर्च के दौरान हमें पता चला कि बाबरी मस्जिद के नाम पर वायरल पहली तस्‍वीर कलबुर्गी की जामिया मस्जिद की है। ब्रिटैनिका वेबसाइट पर हमें एक लेख में यह तस्‍वीर मिलीं। इसमें बताया गया कि यह तस्‍वीर कर्नाटक के गुलबर्गा (कलबुर्गी) में स्थित जामिया मस्जिद की है। यहां देखें।

संबंधित कीवर्ड से सर्च करने से पहले इससे मिलती-जुलती तस्‍वीर हमें अलामी डॉट कॉम नाम की एक फोटो वेबसाइट पर भी मिली। इसे यहां देखा जा सकता है।

दूसरी तस्‍वीर हमें कई वेबसाइट पर मिली, जहां इसे बाबरी मस्जिद की ही तस्‍वीर बताया गया था। द हिंदू अखबार की वेबसाइट पर पब्लिश एक खबर में इस तस्‍वीर का इस्‍तेमाल करते हुए फोटो कैप्‍शन में लिखा गया कि 29 अक्‍टूबर 1990 को अयोध्‍या के बाबरी मस्जिद के सामने खड़ा पुलिसकर्मी। इस तस्‍वीर को फोटो एजेंसी एपी के फोटोग्राफर ने लिया था। इसे यहां देखें।

जांच को आगे बढ़ाते हुए विश्‍वास न्‍यूज ने दैनिक जागरण अयोध्‍या के ब्‍यूरो चीफ रमाशरण अवस्‍थी से संपर्क किया। उन्‍होंने बताया कि वायरल पोस्‍ट में इस्‍तेमाल की गई पहली तस्‍वीर अयोध्‍या के बाबरी मस्जिद की नहीं है। हालांकि, दूसरी तस्‍वीर बाबरी की काफी पुरानी तस्‍वीर है।

विश्‍वास न्‍यूज ने पड़ताल के अंत‍रिम चरण में फर्जी पोस्‍ट करने वाले यूजर की जांच की। फेसबुक यूजर इम्तियाज अहमद की सोशल स्‍कैनिंग से पता चला कि यूजर एक राजनीतिक दल से प्रभावित है। यह यूजर बलरामपुर का रहने वाला है।

निष्कर्ष: विश्‍वास न्‍यूज की पड़ताल में बाबरी मस्जिद के नाम पर वायरल दो तस्‍वीरों का कोलाज भ्रामक साबित हुआ। पहली जिस तस्‍वीर को बाबरी मस्जिद का बताकर शेयर किया जा रहा है, असल में वह कर्नाटक की एक मस्जिद है।

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