Quick Fact Check: भारतीय सेना में मुस्लिम रेजिमेंट के होने का दावा फर्जी और मनगढ़ंत, सेना में कभी नहीं थी ऐसी रेजिमेंट

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि भारतीय सेना में कभी मुस्लिम रेजिमेंट हुआ करती थी, जिसे इस वजह से प्रतिबंधित कर दिया गया, क्योंकि उसने भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय लड़ने से मना कर दिया था।

विश्वास न्यूज की पड़ताल में यह दावा गलत निकला। भारतीय सेना में कभी भी मुस्लिम रेजिमेंट नहीं थी, इसलिए ऐसे किसी रेजिमेंट को भंग किए जाने का दावा करना फर्जी है। हमारी जांच में यह समुदाय विशेष के खिलाफ दुष्प्रचार साबित हुआ।

क्या है वायरल पोस्ट में?

ट्विटर यूजर ‘विराथू यति नरसिंहानन्द सरस्वती जी महाराज समर्थक’ ने पोस्ट (आर्काइव लिंक) करते हुए लिखा है, ”मुस्लिम रेजिमेंट जिसने भारत पाक युद्ध के समय लडने से मना कर दिया था. क्या आपको लगता है ये IAS/IPS  बनकर देश सेवा कर सकते हैं ???”

कई अन्य यूजर्स ने इस दावे को सही मानते हुए इसे समान और मिलते-जुलते दावे के साथ शेयर किया है।

पड़ताल

यह पहली बार नहीं है, जब सेना में इस तरह के रेजिमेंट के अस्तित्व को लेकर अफवाह उड़ाई गई हो। इससे पहले भी यह अफवाह सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी, तब विश्वास न्यूज ने इस दावे की पड़ताल की थी। हमारी पड़ताल में यह दावा फर्जी और मनगढ़ंत साबित हुआ था। वास्तव में सेना में कभी ऐसी कोई रेजिमेंट थी ही नहीं और भारतीय सेना में धर्म के आधार पर किसी रेजिमेंट का निर्माण ही नहीं होता है। हमारी रिपोर्ट को यहां पढ़ा जा सकता है।

भारतीय सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल और फिलहाल नैशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के सदस्य सैयद अता हसनैन के लिखे आर्टिकल ‘The ‘missing’ muslim regiment: Without comprehensive rebuttal, Pakistani propaganda dupes the gullible across the board’ में इस मामले को पाकिस्तान के इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) का दुष्प्रचार बताया गया है। उन्होंने लिखा है, ‘1965 की जिस लड़ाई में काल्पनिक और फर्जी मुस्लिम रेजिमेंट के लड़ने से मना किए जाने का दावा किया जा रहा है, उस युद्ध में मुस्लिम सैनिकों (जो अलग-अलग रेजिमेंट में शामिल थे) की वीरता और शहादत की अनगिनत मिसालें हैं। अब्दुल हमीद को मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया था। इसके अलावा मेजर (जनरल) मोहम्मद जकी (वीर चक्र) और मेजर अब्दुल रफी खान (मरणोपरांत वीर चक्र), जिन्होंने अपने चाचा मेजर जनरल साहिबजादा याकूब खान, जो पाकिस्तानी डिविजन को कमांड कर रहे थे, के साथ जंग लड़ी। 1965 की लड़ाई में मुस्लिम योद्धाओं की ऐसी मिसालें मौजूद हैं। 1971 की लड़ाई में भी यही हुआ।’

ToI के प्रिंट संस्करण में सैयद अता हसनैन का प्रकाशित आर्टिकल

इससे पहले जब इस दावे की पड़ताल कर रहे थे तब विश्वास न्यूज ने इस दावे की सच्चाई और सेना में रेजिमेंट सिस्टम को समझने के लिए सेना के कर्नल (रिटायर्ड) विजय आचार्य से संपर्क किया था।

उन्होंने बातचीत की शुरुआत में ही इसे पाकिस्तानी सेना का दुष्प्रचार करार दिया था। उन्होंने कहा कि 1965 की लड़ाई में मुस्लिमों की बगावत और मुस्लिम रेजिमेंट की मौजूदगी के दावे को पाकिस्तान का प्रोपेगैंडा बताते हुए उन्होंने कहा कि भारत के खिलाफ पाकिस्तानी सेना की लड़ाई का एक बड़ा हथियार दुष्प्रचार है और यह काम पाकिस्तानी सेना की विंग ISPR के जरिए संस्थागत तरीके से किया जाता है। उन्होंने हमें यह भी बताया था कि भारतीय सेना में कभी ऐसा कोई वाकया भी सामने नहीं आया, जब सैनिकों ने युद्ध के दौरान लड़ाई में जाने से इनकार कर दिया।

उन्होंने बताया, ‘भारतीय सेना में सिख रेजिमेंट की मौजूदगी है और यह इकलौता रेजिमेंट जिसका नाम किसी धर्म विशेष के आधार पर है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इस रेजिमेंट में केवल सिख धर्म के लोग ही रिक्रूट होते हैं। ठीक ऐसे ही बिहार रेजिमेंट कहने का मतलब यह नहीं है कि उसमें केवल बिहार के लोग ही भर्ती होंगे।’

सोशल मीडिया पर इस दावे को शेयर करने वाले यूजर ‘विराथू यति नरसिंहानन्द सरस्वती जी महाराज समर्थक’ के पेज को करीब 16 हजार से अधिक लोग फॉलो करते हैं। यह प्रोफाइल अप्रैल 2020 से सक्रिय है।

निष्कर्ष: 1965 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई के दौरान मुस्लिम सैनिकों के पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध नहीं लड़ने के दावे के साथ वायरल हो रही पोस्ट फर्जी है। भारतीय सेना में कभी भी मुस्लिम रेजिमेंट नहीं थी, जिसे 1965 की लड़ाई के बाद भंग किए जाने का दावा किया जा रहा है।

False
Symbols that define nature of fake news
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