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Fact Check: बैंकों में जमापूंजी डूबने का दावा गलत, 2017 की पुरानी खबर भ्रामक दावे से हो रही वायरल

वायरल पोस्ट में जिस खबर के स्क्रीनशॉट के जरिए बैंकों में जमाकर्ताओं की पूंजी के डूबने की आशंका जताई गई है, वह 2017 की विवादास्पद फाइनेंशियल रिजोल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस (एफआरडीआई) बिल के आधार पर लिखी गई खबर है, जिसमें बेल-इन जैसे विवादित प्रावधानों के विरोध के बाद सरकार ने अगले ही साल यानी 2018 में इस बिल को वापस ले लिया था। 2018 के बाद से इस बिल को दुबारा संसद में पेश नहीं किया गया है।

  • By: Abhishek Parashar
  • Published: Sep 14, 2022 at 06:34 PM
  • Updated: Sep 28, 2022 at 01:30 PM

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया पर हिंदी अखबार में प्रकाशित खबर का स्क्रीनशॉट वायरल हो रहा है, जिसके मुताबिक सरकार संसद में एक ऐसे विधेयक को पेश करने जा रही है, जिससे लोगों की बैंकों में जमा रकम डूब सकती है। दावा किया जा रहा है कि इस विधेयक से सरकार पैसा वापसी गारंटी खत्म करने की योजना बना रही है।

विश्वास न्यूज की जांच में यह दावा गलत और गुमराह करने वाला निकला। वायरल स्क्रीनशॉट में जिस खबर का जिक्र है, वह वास्तव में 2017 की खबर है और यह ‘फाइनेंशियल रेग्युलेशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल, 2017’ से संबंधित है। इस बिल के प्रावधानों का विरोध होने के बाद सरकार ने न केवल इसे 2018 में वापस ले लिया, बल्कि फरवरी 2020 में डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (डीआईसीजीसी) ने बैंकों में जमाकर्ताओं के लिए जमा रकम की बीमा राशि को एक लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दिया।

क्या है वायरल?

फेसबुक यूजर ‘गोदी मीडिया’ ने वायरल खबर (आर्काइव लिंक) के स्क्रीन शॉट को शेयर किया है, जिसकी हेडलाइन इस तरह है –

  1. …तो डूब सकता है बैंक जमा ‘हमारा धन’ पैसा वापसी गांरटी खत्म करने की तैयारी
  2. अब बैंकं में जमापूंजी की कोई गारंटी नहीं.
सोशल मीडिया पर भ्रामक दावे से वायरल खबर

कई अन्य यूजर्स ने भी इसे समान और मिलते-जुलते दावे के साथ शेयर किया है।

पड़ताल

सोशल मीडिया सर्च में कांग्रेस के पूर्व विधायक पुरुषोत्तम डांगी के ट्विटर हैंडल से किया गया ट्वीट मिला, जिसमें वायरल पोस्ट में नजर आ रही खबर को शेयर किया गया है। ट्वीट में ‘प्रदेश टुडे’ अखबार में प्रकाशित खबर का जिक्र है और यहां खबर की हेडलाइन और रिपोर्ट के अन्य हिस्से को साफ-साफ पढ़ा जा सकता है।

वायरल पोस्ट में दो अखबारों में प्रकाशित खबर का स्क्रीनशॉट लगा हुआ है, जिसकी हेडलाइन इस तरह है:

  1. ….तो डूब सकता है बैंक में जमा ‘हमारा धन’ पैसा वापसी गारंटी खत्म करने की तैयारी
  2. अब बैंकों में जमापूंजी की कोई गारंटी नहीं।

इन खबरों की हेडलाइन के सब हेड में लिखा हुआ कि संसद के शीत सत्र में मोदी सरकार पेश कर सकती है फाइनेंशियल रिजोल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल। हाल ही में संसद के मानसून सत्र का समापन हुआ है, जबकि वायरल पोस्ट में नजर आ रही खबर में संसद के शीतकालीन सत्र का जिक्र है। स्पष्ट है कि वायरल खबर हाल की नहीं, बल्कि पुरानी है।

हेडलाइन के आधार (एफआरडीआई बिल) पर कीवर्ड सर्च में हमें ऐसी कई पुरानी खबरें मिली, जो इससे मिलती-जुलती हैं। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की हिंदी वेबसाइट पर आठ दिसंबर 2017 को प्रकाशित खबर में एफआरडीआई बिल का जिक्र है। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘राज्य चुनावों के गहमागहमी के बीच एक नया बिल इस वक्त खूब चर्चा में है, नाम है- FRDI. एफआरडीआई मतलब फाइनेंशियल रिजोल्यूशन एंड डिपोज़िट इंश्योरेंस बिल. इस बिल को लेकर मसौदा तैयार कर लिया गया है. अगर यह बिल पास हो गया है तो बैंकिंग सिस्टम के साथ-साथ ग्राहकों के लिए बहुत सी चीजें बदल जाएगी. एफआरडीआई बिल संसद के इसी शीतकालीन सत्र में रखा जा सकता है.’

फाइनेंशियल टाइम्स की वेबसाइट पर आठ दिसंबर 2017 को प्रकाशित खबर

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘इस बिल के तहत पब्लिक क्षेत्रों के बैंकों को यह अधिकार दिया जा सकता है कि बैंक के डूबने या दिवालिया होने के हालत में बैंक तय करेगा कि जमाकर्ता को कितने पैसे वापस करने हैं. इसका मतलब यह है कि अगर बैंक डूब रहा है तो बैंक के साथ आप भी डूब सकते हैं. कोई भी बैंक, इंश्योरेंस कंपनी और दूसरे वित्तीय संस्थान के दिवालिया होने की स्थिाति में उबारने के लिए यह कानून लाया जा रहा है. इस बिल के बारे में सुनते ही ऑनलाइन पेटीशन की बाढ़ आ गई है. इस नए विधेयक के खिलाफ मुंबई की शिल्पा श्री ने ऑनलाइन सिग्नेचर अभियान छेड़ा है, जिसपर दो दिनों के भीतर करीब 66 हजार सिग्नेचर किए गए हैं. जिसके बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि इस बिल से कम रकम जमा करने वाले ग्राहकों को कोई नुकसान नहीं होगा. जेटली ने कहा कि सरकार इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि वो जमाकर्ताओं के धन की रक्षा करेगी.’

पीआईबी की तरफ से सात दिसंबर 2017 को जारी विज्ञप्ति में फाइनेंशियल रिजोल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल, 2017 के प्रावधानों का जिक्र है। सरकार ने इस विज्ञप्ति के जरिए बिल से जुड़े विवादित प्रावधानों के बारे में सफाई दी है।

सात सितंबर 2017 को पीआईबी की तरफ से एफआरडीआई बिल को लेकर जारी की गई विज्ञप्ति

न्यूज सर्च में हमें 2018 में बिजनस न्यूज वेबसाइट मिंट पर सात अगस्त 2018 को प्रकाशित रिपोर्ट मिली। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘बेल-इन प्रावधान से जुड़ी चिंताओं को देखते हुए एफआरडीआई बिल को वापस ले लिया गया है।’

सात अगस्त 2018 को मिंट की वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट जिसमें विवादास्पद एफआरडीआई बिल को वापस लिए जाने का जिक्र है

बेल-इन क्लॉज इस बात का प्रावधान करता है कि जमाकर्ताओं की जमा रकम का इस्तेमाल डूबती वित्तीय संस्थाओं को बचाने में किया जा सकता है। इसी प्रावधान की वजह से इस बिल का व्यापक रूप से विरोध हुआ। द हिंदू ने भी 10 अगस्त 2018 को लिखे अपने संपादकीय में इस बिल को वापस लिए जाने के फैसले का स्वागत किया है।

एफआरडीआई बिल की वापसी पर लिखा गया द हिंदू का संपादकीय

स्पष्ट है कि जिस बिल के (विवादास्पद बेल इन प्रावधानों) आधार पर बैंकों में जमाकर्ताओं की पूंजी के डूबने की बात की जा रही थी, उसे सरकार ने विवाद और हंगामे के बाद 2018 में वापस ले लिया था।

यह जानने के लिए क्या 2018 के बाद सरकार ने इस बिल को फिर से संसद में पेश किया, सर्च की मदद ली। सर्च में ऑफिस ऑफ अनुराग ठाकुर के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से 27 जुलाई 2020 को किया गया ट्वीट मिला, जो एफआरडीआई बिल को फिर से पेश किए जाने के बारे में है।

https://twitter.com/Anurag_Office/status/1287755277366751233

ट्वीट में वित्त मंत्रालय की तरफ से दिए गए स्पष्टीकरण का जिक्र है, जिसके मुताबिक सरकार ने इस बिल को संसद में फिर से पेश करने के बारे में कोई फैसला नहीं किया है।

न्यूज सर्च में हमें ऐसी कई रिपोर्ट्स मिली, जिसके मुताबिक सरकार ने अभी तक एफआरडीआई बिल को अभी तक संसद में पेश नहीं किया है। 20 दिसंबर 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विवादास्पद एफआरडीआई बिल में सुधार के बाद उसे 2022-23 में पेश करने की तैयारी की जा रही है।

moneylife.in की वेबसाइट पर 28 मार्च 2022 को प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, एफआरडीआई बिल को वापस लिए जाने के बाद सरकार अभी तक वित्तीय संस्थानों के रिजोल्यूशन के बारे में नए बिल को लाने पर कोई फैसला नहीं ले पाई है।

2022 में संसद के किसी भी सत्र में इस बिल को पेश किया गया या नहीं, इससे जानने के लिए loksabhaph.nic.in की वेबसाइट को चेक किया। 2022 में सरकार की तरफ से इस बिल को पेश किए जाने की कोई जानकारी नहीं मिली।

न ही किसी न्यूज सर्च में हमें ऐसी कोई रिपोर्ट्स मिली, जिसमें एफआरडीआई बिल को 2022 में संसद में पेश किए जाने का जिक्र हो।

हमारी अब तक की पड़ताल से स्पष्ट है कि जिस विवादास्पद फाइनेंशियल रिजोल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस (एफआरडीआई) बिल के आधार पर बैंकों में जमाकर्ताओं के पैसे डूबने की आशंका जताने वाली खबर को शेयर किया जा रहा है, वह 2017 की खबर है और बेल-इन जैसे विवादित प्रावधानों के विरोध के बाद सरकार ने अगले ही साल यानी 2018 में इस बिल को वापस ले लिया था। 2018 के बाद से इस बिल को दुबारा संसद में पेश नहीं किया गया है।

पुष्टि के लिए हमने पीटीआई-भाषा के संसद कवर करने वाले पत्रकार दीपक रंजन से संपर्क किया। उन्होंने बताया, ‘2017 में सरकार ने एफआरडीआई बिल को पेश किया था, लेकिन बेल-इन प्रावधान का विरोध होने की वजह से सरकार ने इसे वापस ले लिया। उसके बाद से इस बिल को अभी तक संसद में पेश नहीं किया गया है।’

इस बीच निवशकों और बैंक खाताधारकों के हितों की सुरक्षा के डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट कॉरपोरेशन (संसोधन) विधेयक, 2021 को संसद ने पारित कर दिया। बिल के पारित होने के बाद आरबीआई की पूर्ण सहायक कंपनी डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (डीआईसीजीसी) ने बैंकों में जमा जमाकर्ताओं के बीमा कवर को एक लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दिया है। यह बदलाव 04.02.2020 से प्रभावी हो चुका है।

पीआईबी की तरफ से आठ अगस्त 2022 को जारी विज्ञप्ति

स्पष्ट शब्दों में समझें तो अगर कोई बैंक डूबता या बंद होता है और उसमें अगर किसी खाताधारक का 7 लाख रुपया जमा है तो पहले उसे बैंक के डूबने की स्थिति में मात्र 1 लाख रुपये की रकम मिलती। लेकिन अब ऐसा होने की स्थिति में उसे अधिकतम पांच लाख रुपये मिलेंगे। यानी बैंकों में जमा रकम के मामले में जमाकर्ताओं के लिए बीमा कवर 1 लाख रुपये से बढ़कर पांच लाख रुपये हो चुका है।

निष्कर्ष: वायरल पोस्ट में जिस खबर के स्क्रीनशॉट के जरिए बैंकों में जमाकर्ताओं की पूंजी के डूबने की आशंका जताई गई है, वह 2017 की विवादास्पद फाइनेंशियल रिजोल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस (एफआरडीआई) बिल के आधार पर लिखी गई खबर है, जिसमें बेल-इन जैसे विवादित प्रावधानों के विरोध के बाद सरकार ने अगले ही साल यानी 2018 में इस बिल को वापस ले लिया था। 2018 के बाद से इस बिल को दुबारा संसद में पेश नहीं किया गया है। वहीं दूसरी तरफ बैंकों के डूबने की स्थिति में जमाकर्ताओं को सुरक्षा देने के लिहाज से सरकार ने डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन एक्ट को संशोधित करते हुए बीमा कवर के दायरे को एक लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दिया है। यानी बैंक के बंद होने या डूबने की स्थिति में ग्राहकों की पांच लाख रुपये तक की रकम सुरक्षित रहेगी, जो पहले एक लाख रुपये थी।

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