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Fact Check: मनमोहन के मुकाबले मोदी के कार्यकाल में 38 गुना बढ़े बैंकिंग फ्रॉड वाला पोस्ट भ्रामक

  • By: Abhishek Parashar
  • Published: Jun 10, 2019 at 07:27 PM
  • Updated: Jun 11, 2019 at 06:21 PM

नई दिल्ली (विश्वास टीम)। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि मनमोहन सिंह सरकार के मुकाबले मोदीराज में बैंक घोटाला 38 गुना बढ़ा। सोशल मीडिया पर यह पोस्ट भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से एक आरटीआई पर दिए गए जवाब के बाद वायरल हुआ है।

विश्वास न्यूज की पड़ताल में बैंकिंग धोखाधड़ी को लेकर वायरल हो रहा पोस्ट गुमराह करने वाला साबित होता है।

क्या है वायरल पोस्ट में?

सोशल मीडिया पर शेयर किए गए दावे के साथ एक वेब पोर्टल ”बोलता हिंदुस्तान” का लिंक शेयर किया हुआ है। लिंक पर क्लिक करने से स्टोरी नजर आती है, जिसमें दावा किया गया है, ‘मनमोहन के मुकाबले मोदीराज में 38 गुना बढ़े बैंक घोटाले, 1860 से बढ़कर 71,500 करोड़ हुआ घोटाला।’

खबर में सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मिली जानकारी का हवाला देते हुए दावा किया गया है ‘मनमोहन सरकार की तुलना में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही बैंकों से घोटाला लगभग 38 गुना ज्यादा है। लेकिन मोदी सरकार लगातार इसके मुँह फेरे हुए है।’

पड़ताल

पड़ताल की शुरुआत हमने आंकड़ों की खोज के साथ शुरू की। हमें पता चला कि जिस आरटीआई के आधार पर यह दावा किया जा रहा है, वह न्यूज एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) के एक पत्रकार ने दायर की थी। एजेंसी की इस खबर को देश के लगभग सभी अखबारों ने प्रकाशित किया।

इसी आरटीआई के जवाब में आरबीआई ने बताया था कि 2018-19 में बैंकिंग धोखाधड़ी के कुल 6,800 मामले दर्ज किए गए, जिसमें शामिल राशि 71,500 करोड़ रुपये रही, जो अब तक की सबसे ज्यादा बड़ी रकम है। आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 11 वित्त वर्षों में कुल 2.05 लाख करोड़ रुपये की भारी धनराशि की बैंकिंग धोखाधड़ी के कुल 53,334 मामले दर्ज किए गए।

दैनिक जागरण में 4 जून को बिजनेस पेज पर प्रकाशित खबर

वर्ष 2008-09 से 2018-19 के बीच हुए बैंकिंग फ्रॉड को लेकर आरटीआई में दी गई जानकारी के मुताबिक, पिछले एक साल में धोखाधड़ी में शामिल राशि में 73% का इजाफा हुआ।

स्रोत-आरबीआई

कांग्रेस की अगुआई में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार का गठन 2004 में हुआ था, जिसने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सफलतापूर्वक अपना पहला कार्यकाल 2009 में पूरा किया। इसके बाद का दूसरा कार्यकाल 2009-2014 के बीच रहा और इस दौरान भी मनमोहन सिंह ही प्रधानमंत्री रहे।

यानी आरबीआई ने जो आंकड़ा दिया है, उसमें मनमोहन सिंह सरकार का दूसरा कार्यकाल और नरेंद्र मोदी का पहला कार्यकाल आता है।

ऊपर दिए चार्ट के मुताबिक मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में पांच वित्तीय वर्ष आते हैं, जिसकी शुरुआत 2009-10 से होती है। आरटीआई के मुताबिक-

2009-10 में 1998.94 करोड़ रुपये

2010-11 में 3815.76 करोड़ रुपये

2011-12 में 4501.15 करोड़ रुपये

2012-13 में 8590.86 करोड़ रुपये

2013-2014 में 10,170.81 करोड़ रुपये।

यानी यूपीए-2 में 29,077.52 करोड़ रुपये के बैंकिंग धोखाधड़ी के मामले सामने आए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में पांच वित्तीय वर्ष आते हैं, जिसकी शुरुआत 2014-15 से होती है। आरटीआई के मुताबिक इन पांच सालों में हुए धोखाधड़ी में शामिल कुल रकम-

2014-15 में 19,455.07 करोड़ रुपये

2015-16 में 18,698.82 करोड़ रुपये

2016-17 में 23,933.85 करोड़ रुपये

2017-18 में 41,167.03 करोड़ रुपये

2018-19 में 71,500 करोड़ रुपये।

यानी नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में 1,74,754.77 करोड़ रुपये के बैंकिंग घोटाले सामने आए। यूपीए-2 और एनडीए-1 के दौरान हुए बैंकिंग घोटाले में शामिल रकम की तुलना की जाए तो मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल के मुकाबले नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में इसमें करीब 6 गुने की वृद्धि हुई।

अब आते हैं दोनों कार्यकाल के दौरान धोखाधड़ी के कुल मामलों की संख्या पर। यूपीए-2 में बैंकिंग धोखाधड़ी के कुल 21,837 मामले दर्ज किए गए जबकि, एनडीए-1 में इन मामलों की कुल संख्या 27,071 रही।

एनडीए-1 में यूपीए-2 के मुकाबले बैंकिंग धोखाधड़ी के मामलों में 1.23 गुने का इजाफा हुआ। यानी वायरल स्टोरी में किया गया दावा, ‘मनमोहन के मुकाबले मोदीराज में 38 गुना बढ़े बैंक घोटाले, 1860 से बढ़कर 71500 करोड़ हुआ घोटाला’ गुमराह करने वाला है।

अगर हम मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल के आखिरी वर्ष में दर्ज घोटाले में शामिल रकम और संख्या को आधार बनाते हुए नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के आखिरी वर्ष में घोटाले में शामिल रकम और उसकी संख्या को भी आधार बनाकर तुलना करे, तो यह 38 गुना की बढ़त नहीं दिखाता है।

मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल के आखिरी वर्ष में बैंकिंग धोखाधड़ी के कुल 4306 मामले दर्ज किए गए, जबकि नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के आखिरी वर्ष में ऐसे मामलों की कुल संख्या 6800 रही, जो 2013-14 के मुकाबले 1.57 गुना अधिक है।

अब धोखाधड़ी में शामिल रकम को आधार बनाते हुए तुलना करें तो 2013-14 में बैंकिंग धोखाधड़ी में 10,170.81 करोड़ रुपये की चपत लगी, जबकि 2018-19 में यह रकम बढ़कर 71,500 करोड़ रुपये हो गई। यानी 2013-14 के मुकाबले 2018-19 में बैंकिंग धोखाधड़ी में डूबे रकम की मात्रा में करीब 7 गुने का इजाफा हुआ।

वायरल पोस्ट पीटीआई के आरटीआई पर आरबीआई की तरफ से मिले जवाब को आधार बनाते हुए लिखी गई है, जिसमें अन्य आंकड़े सही हैं, लेकिन तुलनात्मक आधार पर निकाला गया निष्कर्ष भ्रमित करने वाला है।

बैंक बाजार के सीईओ आदिल शेट्टी ने बताया, ‘यह आंकड़ा पिछले दस सालों के दौरान बैंकिंग धोखाधड़ी के मामलों की पहचान और उसे दर्ज करने को लेकर की जा रही आरबीआई की कोशिशों के बारे में बताता है। पहले के मुकाबले आज हमारे पास बैंकिग धोखाधड़ी के मामलों की पहचान का बेहतर तरीका है और हम उम्मीद करते हैं कि आगे इसमें और सुधार होगा क्योंकि यह उपभोक्ताओं के भरोसे को मजबूत करेगा।’

निष्कर्ष: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के मुकाबले मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में हुए बैंकिंग घोटाले में 38 गुना का इजाफा नहीं हुआ। वायरल पोस्ट में किया जा रहा दावा गुमराह करने वाला है।

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