सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा यह दावा पूरी तरह से गलत और बेबुनियाद है कि भारत में केवल हिंदू मंदिरों या न्यासों को टैक्स का भुगतान करना होता है और अन्य धर्म के ट्रस्ट्स या न्यासों या धार्मिक स्थलों को टैक्स के दायरे से बाहर रखा गया है।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया पर वायरल मैसेज में दावा किया जा रहा है धर्मनिरपेक्ष देश होने के बावजूद भारत में हिंदू मंदिरों को टैक्स या करों का भुगतान करना पड़ता है, जबकि अन्य धर्म के मंदिरों या संस्थाओं को किसी तरह के टैक्स का भुगतान नहीं करना पड़ता है।
विश्वास न्यूज की जांच में यह दावा गलत निकला। वायरल मैसेज में किया गया दावा सच्चाई से परे है। देश में लागू नई कर व्यवस्था जीएसटी में धर्म के आधार पर कर को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया गया है। किसी भी धर्मविशेष को कर के दायरे से बाहर नहीं रखा गया है।
सोशल मीडिया पेज ‘Glorious History’ ने वायरल पोस्ट (आर्काइव लिंक) को शेयर करते हुए लिखा है, ”In a country where everyone enjoys religious freedom, why only Hindu temples have to pay taxes? #FreeTemples” (”वैसा देश जहां सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है, वहां केवल हिंदू मंदिरो को ही कर का भुगतान क्यों करना चाहिए?”)
सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर कई अन्य यूजर्स ने इस दावे को सच मानते हुए अपनी प्रोफाइल से शेयर किया है।
एक जुलाई 2017 से देश में नई एकीकृत कर व्यवस्था जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स एक्ट) लागू हुई, जिसमें कई करों को एक साथ समाहित कर दिया गया। cbic.gov.in की वेबसाइट पर जीएसटी के दायरे में आने वाली वस्तुओं और सेवाओं के बारे में जानकारी दी गई।
चैप्टर 39 में परोपकारी और धार्मिक न्यासों या ट्रस्ट्स पर लगने वाले कर का जिक्र है। इसके मुताबिक, ‘जीएसटी कानून में परोपरकारी संस्थाओं और धार्मिक न्यासों पर लगाने वाले कर के सभी प्रावधान पूर्व के सर्विस टैक्स के प्रावधानों से लिए गए हैं। ऐसी किसी भी संस्था या ईकाई की तरफ से मुहैया कराई जाने वाली सेवाओं को कर मुक्त नहीं रखा गया है। इन संस्थाओं की तरफ से मुहैया कराई जाने वाली कई सेवाएं जीएसटी के दायरे में होंगी।’
एक्ट के मुताबिक, ‘परोपकारी और धार्मिक न्यासों की तरफ से मुहैया कराई जाने वाली जिन सेवाओं को जीएसटी छूट के दायरे में रखा गया है, उसका विवरण 28 जून 2017 को जारी अधिसूचना संख्या 12/2017 में क्रमांक संख्या 1, 13 और 80 में दिया गया है।’
सोशल मीडिया पर यह दावा समय-समय पर वायरल होते रहता है। इससे पहले जब यह दावा वायरल हुआ था, तब वित्त मंत्रालय के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इसका खंडन करते हुए बताया गया था, ‘सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे कुछ संदेशों में यह कहा जा रहा है कि मंदिर ट्रस्ट्स को जीएसटी का भुगतान करना पड़ता है, जबकि चर्च और मस्जिद को इससे छूट मिली हुई है।’
ट्वीट के मुताबिक, ‘ऐसा दावा पूरी तरह से बेबुनियाद है, क्योंकि जीएसटी कानून में धर्म के आधार पर ऐसा कोई फर्क नहीं किया गया है।’
इस मामले को लेकर हमने टैक्स और इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट एवं अपना पैसा के चीफ एडिटर बलवंत जैन से संपर्क किया। वायरल दावे का खंडन करते हुए उन्होंने कहा, ‘जीएसटी में धर्म के आधार पर कोई छूट नहीं दी गई है। कानून में कुछ अनुपालन का जिक्र है, जिसका इस्तेमाल कर टैक्स छूट का लाभ लिया जा सकता है, लेकिन यह भी किसी धर्म विशेष के लिए सीमित नहीं है।’
वायरल दावे को शेयर करने वाले पेज को फेसबुक पर करीब एक हजार से अधिक लोग फॉलो करते हैं।
निष्कर्ष: सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा यह दावा पूरी तरह से गलत और बेबुनियाद है कि भारत में केवल हिंदू मंदिरों या न्यासों को टैक्स का भुगतान करना होता है और अन्य धर्म के ट्रस्ट्स या न्यासों या धार्मिक स्थलों को टैक्स के दायरे से बाहर रखा गया है।
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