विश्वास न्यूज (नई दिल्ली)। 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह के बाद ट्रैक्टर परेड के दौरान हुए उपद्रव को लेकर सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो और फोटो वायरल हो रहे हैं, जिसमें ऐतिहासिक लाल किला पर खालिस्तानी झंडा लगाए जाने का दावा किया जा रहा है।
विश्वास न्यूज की जांच में यह दावा पूरी तरह से गलत निकला। लाल किला की प्राचीर पर लहराते तिरंगा को हटाकर उसकी जगह खालिस्तानी झंडा लहराए जाने का दावा फर्जी है। लाल किला पर उपद्रवियों ने जिस झंडे को लगाया वह निशान साहिब है, जो सिखों का धार्मिक प्रतीक है। सभी गुरुद्वारों में इस झंडे को प्रतीक चिह्न के तौर पर लगाया जाता है।
ट्विटर यूजर ‘Sumit Kadel’ ने न्यूज एजेंसी ANI के ट्वीट (आर्काइव लिंक) को शेयर करते हुए लिखा है, ”Khalistani Flag hoisted on Red Fort.. BlACK DAY FOR INDIA ..”
सोशल मीडिया पर अनगिनत यूजर्स ने इस वीडियो और इससे मिलते-जुलते फुटेज को समान दावे के साथ शेयर किया है।
वायरल पोस्ट में न्यूज एजेंसी ANI के 26 जनवरी के ट्वीट को रिट्वीट कर लाल किला पर खालिस्तानी झंडा लहराए जाने का दावा किया गया है। सर्च में हमें एएनआई के वेरिफाइड ट्विटर हैंडल से 26 जनवरी को पोस्ट किया गया वह मूल वीडियो मिल गया, जिसका इस्तेमाल कई वायरल पोस्ट में किया गया है।
हमने इस वीडियो को बेहद बारीकी से देखा। एक मिनट तीन सेकेंड के वीडियो में एक व्यक्ति को हाथ में झंडा लेकर लाल किला के प्राचीर के सामने मौजूद खंभे पर लगाते हुए देखा जा सकता है। वीडियो में एक मिनट एक सेकेंड से लेकर एक मिनट तीन सेकेंड के फ्रेम में साफ देखा जा सकता है कि लाल किला की प्राचीर पर हमेशा की तरह लहराने वाल तिरंगा मौजूद है। यानी लाल किला की प्राचीर पर लहराते तिरंगा को हटाकर उसकी जगह कोई झंडा नहीं लगाया गया।
प्राचीर के सामने जिस पोल पर खालिस्तानी झंडे को लगाए जाने का दावा किया जा रहा है, उसकी हमने फिर से बारीकी से पड़ताल की। पीले रंग के झंडे पर मौजूद चिह्न को देखने पर पता चलता है कि यह खालिस्तान का झंडा नहीं, बल्कि निशान साहिब यानी सिखों का धार्मिक प्रतीक है, जो सभी गुरुद्वारों में धार्मिक प्रतीक चिह्न के तौर पर लगा होता है।
इमेज सर्च में हमें अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर की कई तस्वीरें मिली, जिसमें इस झंडे का इस्तेमाल किया गया है। स्वर्ण मंदिर में लगा निशान साहिब केसरी रंग का है, जबकि लाल किले के प्राचीर के सामने खंभे पर फहराए गए झंडे का रंग पीला है।
इसे लेकर हमने हमारे सहयोगी दैनिक जागरण के अमृतसर के प्रभारी और वरिष्ठ संवाददाता अमृतपाल सिंह से संपर्क किया। उन्होंने बताया- ‘लाल किले पर जो झंडा नजर आ रहा है वह निशान साहिब है, न कि खालिस्तानी झंडा।’ सिंह ने आगे बाताया, ‘खालिस्तानी भी अपने झंडे में इस प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उसके नीचे साफ-साफ शब्दों में खालिस्तान लिखा होता है। रही बात रंगों की तो आम तौर पर निशान साहिब केसरी रंग में होता है, लेकिन इसे अलग-अलग रंगों में भी बनाया जाता है। जैसे निहंग सिख आम तौर पर नीले रंग के कपड़े पर निशान साहिब बनाते हैं, जबकि कई जगह पीले और यहां तक कि काले रंग के कपड़े पर भी इसे बनाया जाता है।’
27 जनवरी को प्रकाशित कई न्यूज रिपोर्ट में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की वेबसाइट पर 27 जनवरी को प्रकाशित रिपोर्ट ‘What is Nishan Sahib? It’s found flying atop every gurdwara’ में बताया गया है कि सभी गुरुद्वारों में इसे धार्मिक प्रतीक चिह्न के तौर पर लहराया जाता है। निशान साहिब को सिखों का झंडा के नाम से भी जाना जाता है।
न्यूज सर्च में हमें एएनआई की तरफ से 27 जनवरी को पोस्ट किया गया एक ट्वीट मिला, जिसमें वाशिंगटन डीसी में मौजूदा भारतीय दूतावास के सामने खालिस्तानियों के प्रदर्शन की तस्वीरें हैं। इन तस्वीरों में खालिस्तान का झंडा देखा जा सकता है, जिसमें प्रतीक चिह्न यानी निशान साहिब के नीचे साफ-साफ काले अक्षरों में ‘KHALISTAN’ (खालिस्तान) लिखा हुआ है।
वायरल पोस्ट को गलत दावे के साथ शेयर करने वाले यूजर ने अपनी प्रोफाइल में खुद को फिल्म ट्रेड एनालिस्ट बताया है। उनकी प्रोफाइल को करीब एक लाख लोग फॉलो करते हैं।
निष्कर्ष: लाल किला की प्राचीर पर लहराते तिरंगा को हटाकर उसकी जगह खालिस्तानी झंडा लहराए जाने का दावा फर्जी है। लाल किला पर उपद्रवियों ने जिस झंडे को लगाया वह निशान साहिब है, जो सिखों का धार्मिक प्रतीक है। सभी गुरुद्वारों में इस झंडे को प्रतीक चिह्न के तौर पर लगाया जाता है।
यह फैक्ट चेक रिपोर्ट लाल किला में हुए उपद्रव और वहां लगाए जाने वाले झंडे को लेकर वायरल हुए इस वीडियो की जांच से संबंधित है।
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