Fact Check: महात्मा गांधी के अंतिम संस्कार और अस्थि विसर्जन को लेकर किया जा रहा दावा फर्जी

नई दिल्ली (विश्वास टीम)। सोशल मीडिया पर महात्मा गांधी से जुड़ी एक पोस्ट वायरल हो रही है। दावा किया जा रहा है कि गांधी की चिता को उनके बेटे ने अग्नि नहीं दी थी और उनके दाह संस्कार के बाद उनकी अस्थियों को गंगा नदी में विसर्जित करने की बजाए रामपुर के तत्कालीन नवाब रजा अली खां को सौंप दिया गया। पोस्ट में गांधी जी की धार्मिक पहचान को लेकर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि उनकी अस्थियों को चुपचाप मुस्लिम तरीके से दफना दिया गया।

विश्वास न्यूज की पड़ताल में यह दावा विशुद्ध रूप से गलत और मनगढ़ंत निकला। पोस्ट में किए गए दावे पूरी तरह से फर्जी हैं, जिसका सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है।

क्या है वायरल पोस्ट में?

फेसबुक यूजर ‘सुशान्त गोयल’ ने वायरल पोस्ट (आर्काइव लिंक) को शेयर करते हुए लिखा है, ”कांग्रेस द्वारा देश से बहुत कुछ छुपाया गया है***अपने आपको गाँधीजी का भक्त बताने वाले कितने लोगों को पता है कि- गांधीजी की अस्थियों को गंगा में विसर्जित नहीं किया गया था बल्कि उनकी अस्थियों को रामपुर के नबाब “नवाब रजा अली खां” को सौंप दिया गया था..नवाब रजा अली खां ने उनकी अस्थियों को रामपुर ले जाकर दफनाकर वहां एक स्मारक बना दिया था उत्तर प्रदेश में सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे मोहम्मद आजम खां ने इसका सौंदर्यीकरण करवाया था. मैं इस घटना को लेकर कुछ प्रश्न पूंछना चाहता हूँ कि – गांधी जी की चिता को अग्नि किसने दी थी ? गांधीजी के चार (उस समय तीन) पुत्र थे उनमे से कोई उनकी अस्थियों को लेकर गंगाजी में विसर्जित करने क्यों नहीं गया ? उनकी अस्थियां उनके पुत्रों के बजाय रामपुर के नबाब रजा अली खान को क्यों दी गई ?? देश की आम जनता को इस बात का पता क्यों नहीं ?? अगर गाँधी जी की समाधी रामपुर में है तो दिल्ली में क्या है ?? कहीं ऐसा तो नहीं की वे धर्म परिवर्तन कर चुके थे लेकिन हिन्दुओं से इस बात को छुपाने के लिए उनका अंतिम (अग्नि) संस्कार किया गया और उनकी अस्थियों को चुपचाप मुस्लिम तरीके से दफनाना गया हो ??”

फेसबुक पर गलत दावे के साथ वायरल हो रही पोस्ट

सोशल मीडिया पर कई अन्य यूजर्स ने इस दावे को सच मानते हुए अपनी प्रोफाइल से शेयर किया है।

पड़ताल

महात्मा गांधी को लेकर सोशल मीडिया पर समय-समय पर भ्रामक और गलत जानकारियां साझा की जाती रही हैं। वायरल पोस्ट उन्हीं में से एक है। चूंकि वायरल पोस्ट में कई दावे किए गए हैं, इसलिए हमने उन सभी की बारी-बारी से पड़ताल की।

पहला दावा

वायरल पोस्ट में दावा किया गया है, ”महात्मा गांधी की अस्थियों को रामपुर के नबाब “नवाब रजा अली खां” को सौंप दिया गया था। नवाब रजा अली खां ने उनकी अस्थियों को रामपुर ले जाकर दफनाकर वहां एक स्मारक बना दिया था। अगर गाँधी जी की समाधी रामपुर में है तो दिल्ली में क्या है ?? कहीं ऐसा तो नहीं की वे धर्म परिवर्तन कर चुके थे लेकिन हिन्दुओं से इस बात को छुपाने के लिए उनका अंतिम (अग्नि) संस्कार किया गया और उनकी अस्थियों को चुपचाप मुस्लिम तरीके से दफनाना गया हो ??”

जांच

मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, ‘राजघाट स्थित महात्मा गांधी की समाधि स्थल के संचालन और उसके रख-रखाव के लिए राजघाट समाधि एक्ट, 1951 के तहत राजघाट समाधि समिति का गठन किया गया।’

दिल्ली सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने भी यमुना नदी के किनारे स्थित दिल्ली में मौजूद जिन दर्शनीय संग्रहालयों की जानकारी दी है, उसमें भी राजघाट का जिक्र महात्मा गांधी की समाधि स्थल के तौर पर किया गया है।

30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या होने के बाद दिल्ली के राजघाट में 31 जनवरी 1948 को उनका अंतिम संस्कार किया गया, जो उनका समाधि स्थल बना।

हिंदू विधि से दिल्ली के राजघाट में हुई महात्मा गांधी के शव के दाह संस्कार की तस्वीर (Source-gandhiheritageportal.org)

इसके बाद 11 फरवरी 1948 को गांधी के अस्थि कलश को विसर्जन के लिए विशेष ट्रेन से इलाहाबाद ले जाया गया। gandhiheritageportal.org पर मौजूद तस्वीरों से इसकी पुष्टि होती है। 12 फरवरी को यह विशेष ट्रेन इलाहाबाद (अब प्रयागराज) पहुंची और फिर अस्थि कलश को जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेताओं की मौजूदगी में संगम में विसर्जित किया गया। इस दौरान संगम घाट पर असंख्य लोगों का हुजूम मौजूद था।

इलाहाबाद में 12 फरवरी 1948 में महात्मा गांधी की अस्थि कलश यात्रा की तस्वीर (Source-
gandhiheritageportal.org)

gandhiheritageportal.org पर मौजूद तस्वीरों में जवाहर लाल नेहरू के साथ नाव पर बैठे हुए गांधी के पुत्र देवदास गांधी के साथ अन्य लोगों को देखा जा सकता है, जिन्होंने गांधी की अस्थियों को संगम में विसर्जित किया।


इलाहाबाद में 12 फरवरी 1948 में महात्मा गांधी की अस्थि कलश विसर्जन के दौरान नाव पर बैठे देवदास गांधी के साथ जवाहर लाल नेहरू (Source-
gandhiheritageportal.org)

‘उसने गांधी को क्यों मारा’ पुस्तक के लेखक अशोक कुमार पांडेय बताते हैं, ‘गांधी की हिंदू आस्था को लेकर इतने प्रमाण मौजूद है कि कोई व्यक्ति इस पर सवाल उठाने के बारे में नहीं सोच सकता। रही बात उनकी समाधियों को लेकर तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि उनकी समाधि कई जगहों पर है।’

अब तक की हमारी पड़ताल में यह साबित हुआ कि महात्मा गांधी की समाधि स्थल दिल्ली स्थित राजघाट है, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया था और फिर उनकी अस्थियों को वहां से विशेष ट्रेन से इलाहाबाद ले जाकर संगम में उन्हें विसर्जित किया गया था।

जबकि वायरल पोस्ट में दावा किया गया है कि महात्मा गांधी की अस्थियों को विसर्जित करने की बजाए रामपुर के नबाब “नवाब रजा अली खां” को सौंप दिया गया था और फिर उन्होंने गांधी की अस्थियों को रामपुर ले जाकर दफनाकर वहां एक स्मारक बना दिया था।

दूसरा दावा

”गांधी जी की चिता को अग्नि किसने दी थी ? गांधीजी के चार (उस समय तीन) पुत्र थे उनमे से कोई उनकी अस्थियों को लेकर गंगाजी में विसर्जित करने क्यों नहीं गया ? उनकी अस्थियां उनके पुत्रों के बजाय रामपुर के नबाब रजा अली खान को क्यों दी गई ?? देश की आम जनता को इस बात का पता क्यों नहीं ??”

जांच

रॉबर्ट पायने लिखित ”द लाइफ एंड डेथ ऑफ महात्मा गांधी” पुस्तक में गांधी की अंतिम यात्रा को लेकर विस्तार से लिखा गया है। पृष्ठ संख्या 598 पर लिखे गए विवरण के मुताबिक, ‘रामदास गांधी ने (महात्मा गांधी) की चिता को अग्नि दी। इसके बाद वहां मौजूद लोगों ने महात्मा जी अमर हो गए, गगनभेदी नारा लगाया।’


Source- द लाइफ एंड डेथ ऑफ महात्मा गांधी  (पृष्ठ संख्या -598)

gandhiashramsabarmati.org की वेबसाइट पर महात्मा गांधी के वंशवृक्ष को देखा जा सकता है, जिसके मुताबिक उनके चार बेटे थे और उनका नाम क्रमश: हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास था। महात्मा गांधी की चिता को रामदास गांधी ने ही अग्नि दी थी।

महात्मा गांधी का वंश वृक्ष (Source-gandhiashramsabarmati.org)

किताब में पृष्ठ संख्या 599 पर गांधी के अस्थि विसर्जन को लेकर भी जानकारी दी गई है, जिसका जिक्र पहले दावे की पड़ताल के दौरान किया गया है।

पुस्तक में दी गई जानकारी के मुताबिक, ‘कुछ लोग चाहते थे कि उनकी अस्थियों को किसी विशाल संग्रहालय में रखा जाए, ताकि आने वाली पीढ़ी उसे देख सके। लेकिन एक बार फिर से प्यारेलाल (गांधी के सचिव) ने कहा गांधी जी ने किसी भी संग्रहालय को बनाए जाने का विरोध किया था। वह नहीं चाहते थे कि उन्हें कोई विशेष सम्मान दिया जाए। फिर यह तय किया गया कि उनकी अस्थियों को इलाहाबाद में त्रिवेणी में विसर्जित किया जाए। इसके साथ ही अस्थियों को अलग-अलग किया गया और सभी प्रांतों के गवर्नर को इसे भेजा गया। इसके अलावा अस्थियों की थोड़ी-थोड़ी मात्रा को भारत की सभी पवित्र नदियों में प्रवाहित किया गया। दाह संस्कार के तेरह दिन बाद उनकी अस्थियों को जमा किया गया और उसे तांबे के कलश में रखा गया। इसके बाद इसे विशेष ट्रेन से इलाहाबाद ले जाया गया। इलाहाबाद पहुंचने के बाद इसे संगम तक लाए जाने के दौरान वाहन में इस तरह से रखा गया था, ताकि लोग इसके अंतिम दर्शन कर सकें। इसके बाद इसे नाव से ले जाकर नदी में प्रवाहित किया गया। नाव में नेहरू, मौलाना आजाद, रामदास और देवदास गांधी मौजूद थे और वह सभी अस्थियों को नदी के जल में समाहित होने तक उसे निहारते रहें।’

Source- द लाइफ एंड डेथ ऑफ महात्मा गांधी  (पृष्ठ संख्या -599)

रामपुर जिला प्रशासन की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, ‘राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि दिल्ली के राजघाट के अलावा रामपुर में भी है। 11 फरवरी 1948 को बापू की अस्थियां रामपुर लाई गई थीं। बापू की अस्थियों का कुछ हिस्सा कोसी नदी में विसर्जित कर दिया गया। शेष अस्थियों को चांदी के कलश में रखकर दफन कर दिया गया था। यहां पर आज शानदार गांधी समाधि है।’

Source-rampur district administration website

न्यूज सर्च में हमें ‘दैनिक जागरण’ में प्रकाशित आर्टिकल मिला, जिसमें भी रामपुर में महात्मा गांधी की समाधि स्थल का जिक्र है। आर्टिकल में दी गई जानकारी के मुताबिक, ‘दिल्ली के अलावा रामपुर में भी महात्मा गांधी की समाधि स्थल है, जहां उनकी अस्थियां दफन है और यह अस्थियां रामपुर के नवाब ने मंगाई थी। रामपुर लाए जाने के बाद इन अस्थियों को चांदी के कलश में रखकर दफन कर दिया गया।’

दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर

‘रामपुर का इतिहास’ लिखने वाले इतिहासकार शौकत अली खां ने विश्वास न्यूज को बताया, ‘रामपुर के नवाब रजा अली खां कई अन्य सहयोगियों के साथ बापू के अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे। राजघाट पर दाह संस्कार के बाद रजा अली खां गांधी जी के बेटे के घर गए और उन्होंने कुछ अस्थि अंश दिए जाने की मांग की। उनकी इस मांग पर कुछ लोगों ने आपत्ति की, क्योंकि उनके मुताबिक किसी हिंदू व्यक्ति का अस्थि कलश किसी मुस्लिम को कैसे दिया जा सकता था।’

उन्होंने बताया कि रामपुर के नवाब अपने साथ कैबिनेट के मंत्रियों और पुरोहितों के साथ वहां पहुंचे थे। नवाब के साथ मौजूद पुरोहितों और दिल्ली में मौजूद पुरोहित और अन्य लोगों के बीच विचार विमर्श हुआ और फिर सहमति बनी कि अस्थियों का एक अंश को रामपुर के नवाब को सौंपा जा सकता है। शौकत अली खां ने कहा, ‘नवाब रजी अली खां अपने साथ अष्टधातु का कलश भी लेकर गए थे, जिसमें वह अस्थि लेकर रामपुर लौटे। इसके बाद इस अस्थि के एक हिस्से को कोसी नदी में विसर्जित किया और बचे हुए हिस्से को चांदी के कलश में रखकर दफनाया गया, जहां गांधी समाधि स्थल का निर्माण किया गया। फिलहाल यह रामपुर के दर्शनीय स्थलों में से एक है।’ शौकत अली खां ने बताया, ‘इस दौरान नवाब ने समाधि स्थल के नीचे अस्थि कलश के साथ एक टाइम कैप्सूल भी रखा, जिसमें रामपुर का इतिहास दर्ज है।’

वायरल पोस्ट को शेयर करने पेज पर शेयर किए गए पोस्ट के विश्लेषण से इसके विचारधारा विशेष से प्रेरित होने का पता चलता है। यह पेज जनवरी 2018 से सक्रिय है, जिसे फेसबुक पर करीब 2800 लोग फॉलो करते हैं।

निष्कर्ष: यह कहना गलत है कि गांधी की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित नहीं कर उसे रामपुर के तत्कालीन नवाब रजा अली खां को सौंप दिया गया। गांधी की अस्थियों को उनके बेटे ने इलाहाबाद के संगम में विसर्जित किया। गांधी की अस्थियों को कई हिस्सों में विभाजित कर उसे सभी प्रांतों के गवर्नरों को भेजे जाने के साथ अस्थियों की थोड़ी-थोड़ी मात्रा को देश की सभी पवित्र नदियों में भी प्रवाहित किया गया था। इन्हीं में से एक हिस्सा रामपुर के तत्कालीन नवाब रजा अली खां को भी मिला था, जिसका एक हिस्सा उन्होंने कोसी नदी में विसर्जित किया और बचे हुए हिस्से को चांदी के कलश में रखकर दफनाया, जहां आज रामपुर का गांधी समाधि स्थल मौजूद है।

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