Fact Check : रोहिंग्या मुस्लिमों और कश्मीरी पंडितों पर वायरल हो रही पोस्ट भ्रामक

Fact Check : रोहिंग्या मुस्लिमों और कश्मीरी पंडितों पर वायरल हो रही पोस्ट भ्रामक

नई दिल्ली (विश्वास टीम)। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो रहा है, जिसमें दो अलग-अलग मामलों का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के कथित दोहरे बर्ताव को लेकर टिप्पणी की गई है। पोस्ट में कहा गया है, ‘आखिर इस देश की सर्वोच्च न्यायपालिका सुप्रीम कोर्ट है या शरिया कोर्ट।’

विश्वास न्यूज की पड़ताल में यह पोस्ट गुमराह करने वाला साबित होता है, जिसमें तथ्यों को गलत संदर्भ में पेश किया गया है।

क्या है फेसबुक पोस्ट में ?

फेसबुक पर शेयर किए गए पोस्ट में दो अलग-अलग मामलों का जिक्र है। पहला मामला रोहिंग्या मुसलमानों और दूसरा मामला कश्मीरी पंडितों के पलायन का है।

पड़ताल किए जाने तक इस पोस्ट को 1000 से अधिक बार शेयर किया जा चुका है, जबकि 1600 से अधिक लोगों ने इसे लाइक किया है।

पड़ताल

चूंकि पोस्ट में दो मामले थे, इसलिए हमने इस दावे की अलग-अलग पड़ताल की। पहला मामला रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर है। पोस्ट में दावा किया गया है, ‘दो रोहिंग्याओं ने 40,000 शरणार्थियों को म्यांमार ले जाने के खिलाफ दायर की याचिका। सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई।’

न्यूज एजेंसी पीटीआई की खबर के मुताबिक, केंद्र सरकार ने अवैध रूप से भारत में रह रहे रोहिंग्याओं को म्यांमार भेजने का फैसला लिया है, जिसके खिलाफ दी गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट अगस्त महीने में सुनवाई करेगा।

खबर के मुताबिक, म्यांमार से भाग कर आए करीब 40,000 रोहिंग्या जम्मू, हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान में रह रहे हैं, जिन्हें सरकार के वापस भेजने का फैसला लिया है।

सरकार के इसी फैसले के खिलाफ दो रोहिंग्या मुस्लिम मोहम्मद सलीमुल्लाह और मोहम्मद शाकिर ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दोनों ही रोहिंग्या मुस्लिमों को यूनाइटेड नेशंस हाई कमीशन ऑफ रिफ्यूजीज (यूएनएससीआर) के तहत रिफ्यूजी का दर्जा मिला हुआ है। 

9 जुलाई 2019 को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट सरकार के पक्ष पर विचार करने को तैयार हो गया, जिसमें कहा गया है, ‘पहले यह तय किया जाए कि वह (रोहिंग्या) शरणार्थी हैं या नहीं। क्या अवैध रूप से आने वाले को शरणार्थियों का दर्जा दिया जा सकता है…यह एक अहम सवाल है।’ मिंट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की इस दलील पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा कि वह इस ‘अहम सवाल’ पर गौर करेगी।

गौरतलब है कि भारत अक्टूबर 2018 में सात रोहिंग्याओं को म्यांमार वापस भेज चुका है, जो भारत में अवैध रूप से रह रहे थे।  न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने भी इन सातों रोहिंग्याओं को वापस भेजे से इनकार कर दिया था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया था, ‘हम केंद्र के फैसले में दखल नहीं देते।’

पोस्ट में दूसरा दावा कश्मीरी पंडितों की याचिका को लेकर है। कहा गया है, ‘जबकि हाल ही में कश्मीरी पंडितों के पलायन की याचिका को यह कह कर टाल दिया था कि ‘ये काफी पुराना मुद्दा है।’’

न्यूज सर्च में हमें पता चला कि यह मामला भी करीब दो साल पुराना है, जब जून 2017 में ‘रूट्स इन कश्मीर’ की याचिका को खारिज कर दिया था।  कोर्ट ने कहा, ‘हम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस याचिका को खारिज करते हैं क्योंकि जो याचिका पेश की गई है, वह साल 1989-90 से जुड़ी हुई है, जो 27 साल पुराना है। इस समय कोई सबूत मिलने की संभावना न के बराबर है और ऐसा करने का कोई मतलब नहीं होगा।’

कोर्ट ने कहा, ‘यह दिल दहलाने वाला मामला है…लेकिन आप इस मामले को लेकर पिछले 27 सालों तक चुप रहे। अब आप हमें बताएं कि सबूत कहां से आएगा।’

इसे लेकर जब हमने सुशील पंडित से संपर्क किया तो उन्होंने बताया 1990 के दशक में कश्मीर में पंडितों की हत्या, लूट और बलात्कार के सैंकड़ों मामलों की जांच को लेकर याचिका दायर की गई थी। उन्होंने बताया, ‘हमने उन मामलों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें प्राथमिकी दर्ज की गई है और जिन लोगों को नामजद किया गया है, उनके खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।’

सुशील पंडित ने कहा, ‘पलायन नाम का कोई अपराध नहीं होता है। याचिका कश्मीरी पंडितों के सुनियोजित नरसंहार से जुड़े हुए मामलों की जांच को लेकर था, जिसकी वजह से कश्मीर से बड़े पैमाने पर कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ।’

उन्होंने हमें बताया कि याचिका के खारिज होने के बाद अक्टूबर 2017 में हमने फिर से रिव्यू पिटीशन दाखिल किया, लेकिन वह भी स्वीकार नहीं हो पाई।

न्यूज रिपोर्ट्स से इसकी पुष्टि होती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ‘सुप्रीम कोर्ट ने 1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर में 700 से अधिक पंडितों की हत्या से जुड़े 215 मामलों की फिर से जांच किए जाने की याचिका को नामंजूर कर दिया। याचिकाकर्ता ने यासीन मलिक और बिट्टा कराटे के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराए जाने की मांग की थी। ’

निष्कर्ष: रोहिंग्या और कश्मीरी पंडितों को लेकर वायरल हो रहा पोस्ट गुमराह करने वाला है। सुप्रीम कोर्ट में 1990 के दशक में पंडितों की हत्या के मामले की फिर से जांच के लिए याचिका दाखिल की गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए जांच का आदेश देने से इनकार कर दिया था, वहीं 7 रोहिंग्याओं को म्यांमार भेजे जाने के सरकार के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इनकार कर दिया था। हालांकि, दो रोहिंग्या शरणार्थियों की तरफ से दायर की गई याचिका पर अभी भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है, जो भारत में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्याओं को उनके देश म्यांमार भेजे जाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ की गई अपील है।

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