नई दिल्ली (विश्वास टीम)। नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) के राज्यसभा में पारित होने के बाद पूर्वोत्तर राज्यों विशेषकर असम को लेकर कई फर्जी तस्वीरें वायरल हो रही हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक तस्वीर में जिसमें कुछ महिलाएं नजर आ रही हैं। दावा किया जा रहा है कि विरोध प्रदर्शन के दौरान असम पुलिस ने महिलाओं के साथ मारपीट की है।
विश्वास न्यूज की पड़ताल में यह दावा गलत निकला। जो तस्वीरें असम के नाम पर वायरल हो रही हैं, वह वास्तव में उत्तर प्रदेश से जुड़ी हुई हैं।
सोशल मीडिया यूजर मृदुल आर बी मुनु (Mridul R B Munu) ने तस्वीरों को शेयर करते हुए असमिया भाषा में लिखा है, ”এয়ে নেকি চৰকাৰৰ বাহিনী। পুলিচ কেইজনে মনত ৰখা ভাল যে তেওঁ লোকো অসমীয়া।এজন অসমীয়া হৈ কেনেকে আন এজন অসমীয়াৰ ওপৰত অত্যাচাৰ কৰিব পাৰে।অসম পুলিচৰ বেজটোত জনহিতা্থে নিলিখি চৰকাৰে চৰকাৰী হিতাৰথে লিখি দিয়ক।
ফটো (সংগ্ৰহ )।”
हिंदी में इस ऐसे पढ़ा जा सकता है, ”क्या यही सरकार है हमारी। पुलिस वालों को भी याद रहना चाहिए कि वो असमिया ही हैं। ऐसे वह किसी भी असमी भाई-बहन के साथ ऐसे अत्याचार कैसे कर सकते हैं। जो असम पुलिस का बैज है, उसमें लिखा हुआ होता है, ‘जनता के लिए’ और इसे मिटाकर ‘सरकार के लिए’ लिख दो।” (फोटो-संग्रह)
वायरल पोस्ट में चार तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया है, जिसकी बारी-बारी से जांच की गई है। दो तस्वीरों में कुछ पुलिसवालों के साथ एक लड़की हरे रंग के कपड़ों में घायल नजर आ रही है।
पहले यह तस्वीर किसी महिला के साथ उत्तर प्रदेश पुलिस की बर्बरता के दावे के साथ वायरल हुई थी। दावा किया गया था कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने महिला की बर्बरतापूर्वक पिटाई की। हालांकि जांच में पता चला कि तस्वीर 2016 में मैनपुरी में हुई घटना की थी, जिसमें छेड़खानी का विरोध किए जाने पर कुछ दबंगों ने महिला की पिटाई की थी।
मैनपुरी के किशनी थाना क्षेत्र में यह घटना हुई थी और पुलिस अधीक्षक ने इस मामले में किशनी के इंस्पेक्टर को लाइन हाजिर कर दिया था। दैनिक जागरण में 13 जनवरी 2017 को प्रकाशित खबर में इस घटना का विवरण पढ़ा जा सकता है।
घटना के बाद यह तस्वीर सोशल मीडिया पर गलत दावे के साथ वायरल हुई थी, जिसकी पड़ताल विश्वास न्यूज ने की थी। इस पुरानी घटना के वीडियो को यहां देखा जा सकता है।
इसके बाद हमने दो अन्य तस्वीरों की पड़ताल की, जिसे असम पुलिस की मारपीट के दावे के साथ वायरल किया जा रहा है।
रिवर्स इमेज करने पर हमें न्यूज लिंक्स मिले, जिसमें इन दोनों तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया है। फ्री प्रेस जर्नल में 7 दिसंबर 2019 को प्रकाशित खबर में पहली तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है।
खबर के मुताबिक यह तस्वीर उन्नाव रेप कांड के विरोध में एनएसयूआई के विरोध प्रदर्शन की है, जब पुलिस ने एनएसयूआई के सदस्यों पर लाठीचार्ज किया। दूसरी तस्वीर भी इसी घटना की है। अंग्रेजी अखबार में इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर में इसे देखा जा सकता है।
अखबार ने यह तस्वीर यूथ कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से ली है। यूथ कांग्रेस के ट्विटर हैंडल पर भी इस तस्वीर को देखा जा सकता है।
फ्री प्रेस जर्नल पर छपी रिपोर्ट में लगी तस्वीर में पत्रकार कंचन श्रीवास्तव के नाम का जिक्र है। श्रीवास्तव ने अपने वेरिफाइड हैंडल से इन तस्वीरों को ट्वीट भी किया है।
कंचन श्रीवास्तव फिलहाल किसी भी संगठन से जुड़ी नहीं है और बतौर फ्रीलांस पत्रकार काम कर रही हैं। श्रीवास्तव ने विश्वास न्यूज को बताया, ‘दोनों ही तस्वीरें लखनऊ में हुए विरोध प्रदर्शन की है, जब कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उन्नाव में हुए रेप और हत्याकांड को लेकर योगी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था।’
नागरिकता संशोधन विधेयक के संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद सोशल मीडिया पर लगातार अफवाहें फैलाई जा रही हैं। असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने लोगों को इससे बचने की सलाह दी है। उन्होंने कहा, ‘कुछ लोग फर्जी और भ्रामक खबरें फैला कर स्थिति को बिगाड़ना चाहते हैं। उनका कहना है कि असम में 1 करोड़ से 1.5 करोड़ लोगों को नागरिकता मिलने जा रही है, जो फर्जी दुष्प्रचार है।’
निष्कर्ष: महिलाओं के साथ पुलिसिया बर्बरता के दावे के साथ सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीर उत्तर प्रदेश में हुई दो अलग-अलग घटनाओं की है, जिसका असम से कोई संबंध नहीं है।
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