नई दिल्ली (विश्वास टीम)। सोशल मीडिया पर बेहद पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट एक तस्वीर को साझा किया जा रहा है। तस्वीर में एक पुलिस अधिकारी (औपनिवेशिक कालीन वर्दी पहने हुए) सिख नौजवान को पीटता हुआ नजर आ रहा है। दावा किया जा रहा है तस्वीर में पुलिस अधिकारी के हाथों पिट रहे सिख नौजवान कोई और नहीं, स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह हैं।
विश्वास न्यूज की जांच में यह दावा गलत निकला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद पंजाब में लगे मार्शल लॉ के दौरान औपनिवेशिक कालीन पुलिसिया अत्याचार को बयां करती तस्वीर को स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह का बताकर वायरल किया जा रहा है।
फेसबुक यूजर ‘Rajesh Bhasin “हिंद का शेर”‘ ने वायरल तस्वीर (आर्काइव लिंक) को शेयर करते हुए लिखा है, ”ये उस समय की फोटो है, जब #भगतसिंह को अंग्रेजो द्वारा #कोड़े मारकर #प्रताड़ना दी जा रही थी …! तात्कालिक समय के #समाचारपत्रों में ये समाचार प्रमुखता से छापा गया था …! और हमारे दिमाग़ों में देश के इतिहास से बस तैमूरलंग महमूद गजनवि बाबर हुमायूँ औरंगज़ेब टीपु गांधी और नेहरु को ठूँसा गया …..।।”
अनगिनत यूजर्स ने इस तस्वीर को भगत सिंह का मानते हुए समान दावे के साथ शेयर किया है।
वायरल हो रही तस्वीर के साथ किए गए दावे की सच्चाई जानने के लिए हमने इसके ओरिजिनल सोर्स को खोजना शुरू किया। गूगल रिवर्स इमेज सर्च में हमें यह तस्वीर ‘Kim A. Wagner’ के ट्विटर प्रोफाइल से किए गए एक पुराने ट्वीट में मिली। 22 मई 2018 को इस प्रोफाइल से किए गए ट्वीट में दो तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें से एक तस्वीर वायरल तस्वीर से हूबहू मेल खाती है।
तस्वीर के साथ दी गई जानकारी में बताया गया है, ‘पंजाब के कसूर में सार्वजनिक रूप से सजा देने (कोड़े मारने) की यह दो तस्वीरें हैं और इन्हें बेंजामिन हॉर्निमैन ने 1920 में भारत से बाहर ले जाकर प्रकाशित किया।’
ट्वीट में किए गए दावे की पुष्टि के लिए हमने न्यूज सर्च की मदद ली। न्यूज सर्च में हमें sabrangindia.in की वेबसाइट पर प्रकाशित आर्टिकल का लिंक मिला, जिसमें इस तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है। ‘100 years after the Jallianwala Bagh, documents recording the repression and resistance remain hidden in the National Archives’ शीर्षक से प्रकाशित आर्टिकल में इस तस्वीर को पंजाब का ही बताया गया है।
तस्वीर के साथ दी गई जानकारी में इसे 1919 का बताया गया है, जब अंग्रेज अधिकारी सड़कों पर लोगों को सरेआम सजा देते थे या उन्हें कोड़े मारते थे। विश्वास न्यूज ने इस तस्वीर की पुष्टि के लिए ‘Shaheed Bhagat Singh Centenary Foundation’ के चेयरमैन और शहीद भगत सिंह की बहन अमर कौर के बेटे प्रोफेसर जगमोहन सिंह से संपर्क किया। सिंह ने बताया, ‘यह तस्वीर अप्रैल 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद 16 अप्रैल 1919 को अमृतसर में लागू हुए मार्शल लॉ के समय की है और इसमें नजर आ रहा सिख नौजवान भगत सिंह नहीं हैं।’
गौतरलब है कि 13 अप्रैल 1919 की तारीख भारत के इतिहास में काली तारीख के रूप में दर्ज है, जब अंग्रेजों के रॉलेट एक्ट के विरोध में लोग जलियांवाला बाग में एकत्रित हुए थे और इस निहत्थी भीड़ पर जनरल डायर ने गोलियां चलवा दी थी।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, भगत सिंह के परिवार का जलियांवाला बाग की घटना से गहरा नाता रहा है। रिपोर्ट में भगत सिंह के भतीजे किरणजीत सिंह संधू के हवाले से लिखा गया है, ‘जलियांवाला नरसंहार पूरे देश को हिला देने वाली घटना थी। भगत सिंह जी को उसी घटना ने प्रेरित किया था कि वो आज़ादी की लड़ाई के लिए लड़ें। भगत सिंह जी स्कूल में पढ़ते थे और काफी छोटे थे। जलियांवाला बाग की घटना के कुछ दिन बाद ही वे चुपचाप अमृतसर गए और वहां से शहीदों के खून से रंगी मिट्टी लेकर आए थे। भगत सिंह जी ने जलियांवाला बाग की मिट्टी एक शीशे में भर कर रखी थी और अपने भाई-बहनों से कहते थे कि इससे प्रेरणा लो।’
प्रोफेसर चमन लाल द्वारा संपादित ‘The Jail Notebook and Other Writings’में भी इस घटना का विस्तार से जिक्र किया गया है। किताब में दी गई जानकारी के मुताबिक, ‘अप्रैल 1919 में 12 साल की उम्र में भगत सिंह जलियांवाला बाग गए और वहां से खून से सनी मिट्टी लेकर घर आए।’
विश्वास न्यूज ने इसे लेकर प्रोफेसर चमन लाल से संपर्क किया। उन्होंने हमें बताया, ‘जलियांवाला बाग हत्याकांड के एक दिन बाद भगत सिंह वहां पहुंचे और खून से सनी मिट्टी वो एक शीशी में भर लाए। इस शीशी को भगत सिंह के पैतृक गांव खटकर कलां स्मृति संग्रहालय में संभालकर रखा गया है।’
प्रोफेसर लाल ने बताया कि 15 अप्रैल को पूरे पंजाब में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया और अमृतसर में जहां लेडी शेरवुड पर हमला हुआ और उन्हें बचाया गया वहां पर लोगों को घुटनों के बल रेंगकर चलने का जनरल डायर ने आदेश दिया। इस दौरान ऐसी कई तस्वीरें सामने आई, जिसमें लोगों को सरेआम मारा और पीटा गया।
भगत सिंह को सरेआम कोड़े मारे जाने के दावे के साथ वायरल हो रही तस्वीर को लेकर किए गए दावे को बेतुका और गलत बताते हुए उन्होंने कहा, ‘उस वक्त भगत सिंह की उम्र करीब 10-12 साल की थी और वह स्कूल में पढ़ रहे थे, जबकि तस्वीर में नजर आ रहा इंसान नौजवान है।’
वायरल तस्वीर को गलत दावे के साथ शेयर करने वाले पेज को फेसबुक पर करीब एक हजार से अधिक लोग फॉलो करते हैं। यह पेज जून 2020 से फेसबुक पर सक्रिय है।
निष्कर्ष: जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद पंजाब में लगे मार्शल लॉ के दौरान पुलिसिया अत्याचार को बयां करती तस्वीर को भगत सिंह का बताकर वायरल किया जा रहा है। भगत सिंह जलियांवाला बाग हत्याकांड से प्रेरित हुए थे, लेकिन पुलिस के हाथों सरेआम सजा पा रहे युवक की वायरल हो रही तस्वीर में नजर आ रहे युवा भगत सिंह नहीं हैं।
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