Fact Check: नया संविधान लागू करने की फर्जी खबर के बहाने RSS के खिलाफ दुष्प्रचार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे के मुताबिक, देश में नए संविधान को लागू किए जाने के दावे के साथ वायरल हो रही पोस्ट मनगढ़ंत और झूठी है।

Fact Check: नया संविधान लागू करने की फर्जी खबर के बहाने RSS के खिलाफ दुष्प्रचार

नई दिल्ली (विश्वास टीम)। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) के एजेंडे के मुताबिक, देश में नया संविधान 21 मार्च 2020 से लागू होगा, जो हिंदू कैलेंडर के मुताबिक नया वर्ष होगा। विश्वास न्यूज की पड़ताल में यह दावा गलत निकला। देश में किसी भी नए संविधान के लागू होने की खबर झूठी है।

क्या है वायरल पोस्ट में?

फेसबुक यूजर लकी आर्या (Luck Arya) ने भारत के नए संविधान के दावे को लेकर लिखा है, ”संघ का एजेंडा नया संविधान, लेकिन मैं इसको अपनाना तो दूर @#@#@ ही पसंद करता हूं। मैं सिर्फ भारत के संविधान को मानता हूं। जय भीम, जय संविधान।”

फेसबुक पोस्ट का आर्काइव लिंक

फेसबुक पर वायरल हो रही फर्जी पोस्ट

वायरल पोस्ट में कई मनगढ़ंत बातों का जिक्र करते हुए लिखा गया है, ‘यह नए संविधान का संक्षिप्त रूप है। विस्तृत संविधान तैयार हो रहा है। इस पर जनता अपने विचार और सुझाव 15 मार्च 2020 से पहले प्रधानमंत्री कार्यालय, नई दिल्ली में भेज सकती है। उसकी एक कॉपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) कार्यालय नागपुर, महाराष्ट्र में भेजनी होगी।’

पड़ताल

भारत सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय (कानून मंत्रालय) की वेबसाइट पर हिंदी और अंग्रेजी के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं में संविधान की अद्यतन प्रति को देखा और पढ़ा जा सकता है। कानून मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूदा संविधान 1 अप्रैल 2019 तक अपडेटेड है।


भारतीय संविधान की प्रति (Source-legislative.gov.in)

भारतीय संविधान को संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया था और इसे 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया। इसी वजह से 26 जनवरी को सालाना गणतंत्र दिवस मनाया जाता है।

वायरल पोस्ट में वोटिंग और शिक्षा के अधिकार, बोलने की आजादी, घूमने-फिरने की आजादी के अधिकार, सूचना का अधिकार, संपत्ति का अधिकार और सरकारी सेवाओं के अधिकार को जाति विशेष तक सीमित करने का दावा किया गया है, जबकि भारतीय संविधान में समतामूलक और न्याय आधारित व्यवस्था का जिक्र किया गया है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में इन्हें साफ-साफ पढ़ा जा सकता है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Source-legislative.gov.in)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिल्ली प्रांत के प्रवक्ता राजीव तुली ने कहा कि संघ एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है। संघ के एजेंडे के मुताबिक नया संविधान लिखे जाने को लेकर किए जा रहे दावे को दुष्प्रचार बताते हुए उन्होंने कहा, ‘यह सरासर झूठ है। जो देश का संविधान है, वह सर्वोपरि है और उसका अक्षरश: पालन होना चाहिए। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सिद्धांत और दर्शन एवं भारतीय संविधान के बीच किसी तरह का टकराव नहीं है।’

नई दिल्ली के विज्ञान भवन में ”भविष्य का भारत” कार्यक्रम में बोलते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था, ‘हमारी प्रजातांत्रिक देश में हमने एक संविधान को स्वीकार किया है। संविधान को हमारे लोगों ने तैयार किया है। अपना संविधान अपने देश की सर्व सहमति है। इसलिए उस संविधान के अनुशासन का पालन करना हमारा कर्तव्य है। संघ इसको पहले से मानता है।’

वीडियो में 1.25.51 से लेकर 1.27.50 के फ्रेम में उन्हें इस बारे में बात करते हुए सुना जा सकता है। इस दौरान मोहन भागवत ने संविधान की प्रस्तावना का पाठ भी किया था।

इस बैठक में मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर भी बयान दिया था। उन्होंने कहा था, ‘सामाजिक विषमता को हटाकर समाज में सबके लिए अवसरों की बराबरी प्राप्त हो, इसलिए सामाजिक आरक्षण का प्रावधान संविधान में किया है। संविधान सम्मत सभी आरक्षण को संघ का पूरा समर्थन है।’

दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर सुनील के चौधरी ने बताया कि नए संविधान की गुंजाइश नए राष्ट्र के गठन के समय होती है और भारत के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं है। भारत का अपना एक संविधान है, जिसे 1950 में लागू किया गया और वह पूरी तरह से सफलतापूर्वक और कार्यशील है।

उन्होंने बताया, ‘भारतीय संविधान में समय-समय पर सामान्य और संवैधानिक संशोधनों के जरिए बदलाव होते रहे हैं और यही इसकी खूबी भी है, लेकिन कोई भी सरकार संविधान में आमूल-चूल परिवर्तन तक नहीं कर सकती। संसद को इसकी इजाजत नहीं है।’

प्रोफेसर चौधरी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती मामले में अपने ही पुराने फैसले (गोलकनाथ मामले) को पलटते हुए साफ कर दिया था कि संसद के पास संविधान को संशोधित करने की शक्ति है, लेकिन उसमें आमूल-चूल परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि संविधान के मूलभूत ढांचे (जिसे बेसिक स्ट्रक्चर कहा जाता है) में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने कहा, ‘ऐसे में नए संविधान को लागू किए जाने का कोई मतलब नहीं है। यह जनमानस को भ्रमित करने का प्रयास है।’

24 अप्रैल 1973 को ‘केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ केरल’ के मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान में बदलाव हो सकता है लेकिन आधारभूत ढांचे में कोई बदलाव नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आधारभूत ढांचे को संविधान की बुनियाद बताया था।


‘केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ केरल’ में सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Source- indiankanoon.org)

वायरल पोस्ट में दावा किया गया है कि देश का ‘नया’ संविधान हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, नए साल यानी 21 मार्च 2020 से लागू होगा। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पंडित राजीव शर्मा ने हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, नव वर्ष की शुरुआत चैत शुक्ल प्रतिपदा से होती है और इस साल यह तारीख 25 मार्च है। दृकपंचांग डॉट कॉम पर मौजूद हिंदू कैलेंडर में भी इसी तारीख का जिक्र किया गया है।

प्रोफाइल स्कैनिंग में फर्जी पोस्ट शेयर करने वाले फेसबुक यूजर का विचारधारा विशेष के प्रति जुड़ाव दिखा।

निष्कर्ष: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे के मुताबिक, देश में नए संविधान को लागू किए जाने के दावे के साथ वायरल हो रही पोस्ट मनगढ़ंत और झूठी है।

False
Symbols that define nature of fake news
पूरा सच जानें...

सब को बताएं, सच जानना आपका अधिकार है। अगर आपको ऐसी किसी भी खबर पर संदेह है जिसका असर आप, समाज और देश पर हो सकता है तो हमें बताएं। हमें यहां जानकारी भेज सकते हैं। हमें contact@vishvasnews.com पर ईमेल कर सकते हैं। इसके साथ ही वॅाट्सऐप (नंबर – 9205270923) के माध्‍यम से भी सूचना दे सकते हैं।

Related Posts
नवीनतम पोस्ट