नई दिल्ली (विश्वास टीम)। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो रहा है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि नवी मुंबई के बवकालेश्वर मंदिर को ”मोदी-फडनवीस की हिंदू सरकार” ने तोड़ दिया है। फेसबुक पर शेयर किए गए पोस्ट में बवकालेश्वर मंदिर की तस्वीर को साझा करते हुए कहा गया है कि विकास के नाम पर इस मंदिर को तोड़ा गया।
विश्वास न्यूज की पड़ताल में यह दावा गलत साबित होता है। जिस मंदिर को विकास के नाम पर तोड़े जाने का दावा किया जा रहा है, वह सरकारी जमीन पर किया गया अवैध अतिक्रमण था, जिसे कोर्ट के आदेश के बाद हटाया गया।
फेसबुक यूजर लवी भारद्वाज सावरकर की तरफ से शेयर किए गए पोस्ट में एक मंदिर की तस्वीर लगी हुई है। उन्होंने लिखा है, ‘‘इस कठमुल्ले विकास की जद में अब तक कोई मस्जिद भी आई है क्या ????
वैसे कुल 1500 मन्दिरो को तोड़ने की अधिसूचना पिछले वर्ष नागपुर नगर निगम द्वारा जारी भी की गई थी।
पहुंचाओ तुम #घर_घर_पठान
तुम्हारे मन्दिर तुम्हारे ही वोटों से तोड़े जाएंगे
और तुम तो उफ्फ भी नही कर पाओगे… क्योंकि एक भक्ति नाम की नस होती है दिमाग मे… उसका खतना कर दिया गया है।
भक्त रूपी मानसिक कठमुल्लों… को समर्पित।’’
पड़ताल किए जाने तक इस पोस्ट को करीब 50 बार शेयर किया जा चुका है और 130 से अधिक लोगों ने पसंद किया है।
पड़ताल की शुरुआत हमने फेसबुक पोस्ट में नजर आ रही तस्वीर से की। गूगल रिवर्स इमेज में हमें पता चला कि संबंधित तस्वीर नवी मुंबई के बवकालेश्वर मंदिर की है, जिसे 21 नवंबर 2018 को नवी मुंबई पुलिस और एमआईडीसी के अधिकारियों की मौजूदगी में गिरा दिया गया। मंदिर को गिराने की कार्रवाई से पहले उसमें मौजूद देवी-देवताओं की मूर्ति को हटाया गया और फिर इसके ढांचे को गिराने की शुरुआत हुई।
अंग्रेजी अखबार ‘’द इंडियन एक्सप्रेस’’ में इस कार्रवाई की तस्वीर को देखा जा सकता है। 21 नवंबर 2018 को प्रकाशित खबर के मुताबिक, करीब आठ सालों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अदालत ने ढांचे को अवैध घोषित किया। बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी अपील की गई, लेकिन कोर्ट ने अपील करने वाले पक्ष को राहत नहीं देते हुए याचिका को खारिज कर दिया।
खबर के मुताबिक, ‘हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (एमआईडीसी) और नवी मुंबई पुलिस को ढांचा गिराने के लिए 26 नवंबर तक का समय दिया था। सोमवार को रिहर्सल करने के बाद एमआईडीसी ने मंगलवार दोपहर बाद इसे गिराना शुरू किया। मंदिर का निर्माण नवी मुंबई के पवाने गांव में 2007 में किया गया था, जो 32 एकड़ में फैला हुआ था। यह जमीन कथित रूप से एमआईडीसी की थी। मंदिर का उद्घाटन तत्कालीन गार्डियन मिनिस्टर गणेश नाईक ने किया था।’
बाद में मंदिर का पूरा अधिकार बवकालेश्वर टेंपल ट्रस्ट के पास चला गया। आरटीआई एक्टिविस्ट संदीप ठाकुर ने इस ट्रस्ट और अन्य प्राधिकरणों के खिलाफ कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। कोर्ट ने माना कि मंदिर अवैध तरीके से बनाई गई और इसके लिए जमीन पर कब्जा किया गया। मंदिर परिसर में तीन मंदिर थे, जिसे करीब दो सालों तक के लिए सील कर दिया गया।
विश्वास न्यूज ने इस मामले को समझने के लिए याचिकाकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट संदीप ठाकुर से बात की। विश्वास न्यूज से बातचीत में विकास कार्यों या उससे जुड़ी किसी भी गतिविधि के लिए मंदिर के गिराए जाने की बात को खारिज करते हुए उन्होंने बताया, ‘जिस जमीन पर मंदिर बनाई गई थी, वह ओपन स्पेस (सार्वजनिक जगह) थी। एनसीपी नेता तत्कालीन गार्डियन मंत्री गणेश नाईक ने करीब 1 लाख 30 हजार वर्गमीटर जमीन पर कब्जा कर, 1 लाख 20 हजार वर्गफुट के इलाके पर मंदिरों का निर्माण किया।’
उन्होंने कहा कि कि नाईक ने कब्जे में की गई जमीन के कुछ हिस्से पर कृत्रिम झील तक का निर्माण भी कराया था। उन्होंने बताया, ‘बॉम्बे हाई कोर्ट में इसे लेकर पीआईएल दायर किया, जिसमें मंदिर निर्माण को अवैध बताया गया।’ बॉम्बे हाई कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किए गए पीआईएल (जनहित याचिका) संख्या 53/2013 पर दिए गए निर्णय से इसकी पुष्टि होती है।
अब आते है पोस्ट में किए गए दूसरे दावे पर, जिसके मुताबिक नागपुर में पिछले साल 1500 मंदिरों को तोड़े जाने की अधिसूचना नगर निगम द्वारा जारी की गई थी।
दावे की पड़ताल के लिए हमने न्यूज सर्च का सहारा लिया। सर्च में हमें कई न्यूज लिंक्स मिले, जिसके मुताबिक नागपुर नगर निगम (एनएमसी) ने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच को 30 नवंबर 2018 से पहले करीब 1,521 अवैध धार्मिक ढांचे को ढहाए जाने की सूचना दी है।
अंग्रेजी अखबार ”टाइम्स ऑफ इंडिया” में 26 जुलाई 2018 को प्रकाशित खबर के मुताबिक, निगम ने कोर्ट को इन सभी ढांचों को शहर से हटाए जाने के एक्शन प्लान के बारे में जानकारी दी, जिसके मुताबिक इनमें से 331 ढांचे सड़क और फुटपाथ पर बने हुए हैं, जबकि 71 ढांचे एक मई 1960 से पहले से मौजूद हैं, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से नहीं गिराया जाएगा।
खबर के मुताबिक, ‘नगर निगम ने ने 294 अवैध मंदिरों, मस्जिदों और अन्य ढांचों की पहचान की है, जिन्हें सार्वजनिक जमीनों और खुली जगह पर बनाया गया है।’
यानि जिन ढांचों को गिराया जाना है, उनमें कोई धर्म विशेष के प्रतीक नहीं है।
ठाकुर ने बताया, ‘ऐसा होना संभव नहीं है कि किसी एक ही धर्म विशेष के ढांचों को गिराया जाए। दूसरा ऐसे निर्माण को मंदिर या मस्जिद कहना ठीक नहीं, बल्कि अवैध निर्माण कहना ज्यादा उचित है, जिसे सरकारी जमीन या खुली जगह का अतिक्रमण कर बनाया जाता है।’
निष्कर्ष: विकास कार्यों की वजह से नवी मुंबई के बवकालेश्वर मंदिर को गिराए जाने का दावा गलत है। यह मंदिर अवैध तरीके से खुली जमीन को हड़प कर बनाई गई थी, जिसे बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के बाद गिराया गया। वहीं, नागपुर नगर निगम की कार्रवाई धर्म विशेष के प्रति नहीं थी, बल्कि कोर्ट के आदेश के मुताबिक सार्वजनिक जगहों पर कब्जा कर बनाए गए अवैध ढांचों को ढहाया गया।
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