Fact Check : चार साल पुरानी तस्वीर कोरोना महामारी के बीच वायरल

विश्‍वास न्‍यूज की पड़ताल में वायरल पोस्‍ट भ्रामक साबित हुई। अप्रैल 2017 की तस्‍वीर को अब वायरल करने से भ्रम की स्थिति पैदा हुई।

विश्‍वास न्‍यूज (नई द‍िल्‍ली)। देशभर में भले ही कोरोना महामारी का कहर देखने को मिल रहा हो, लेकिन कुछ लोग फर्जी पोस्‍ट करने से बाज नहीं कर रहे हैं। सोशल मीडिया में एक तस्‍वीर को वायरल किया जा रहा है। इसमें एक शख्‍स को अपनी साइकिल पर एक शव को बांधकर ले जाते हुए देखा जा सकता है। यूजर्स इसे हाल का ही समझकर वायरल कर रहे हैं। विश्‍वास न्‍यूज की पड़ताल में वायरल पोस्‍ट भ्रम पैदा करने वाली साबित हुई।

जब हमने जांच की तो पता चला कि वायरल तस्‍वीर 2017 की है। असम के माजुली की यह दर्दनाक तस्‍वीर अप्रैल 2017 को दुनिया के सामने आई थी। सड़क के अभाव में एक शख्‍स को अपने छोटे भाई के शव को साइकिल से बांधकर ले जाना पड़ा।

क्‍या हो रहा है वायरल

फेसबुक यूजर अफजल स‍िद्दीकी ने 6 मई को एक तस्‍वीर को अपलोड करते हुए लिखा कि क्यूँ न अब बेफिक्र होकर सोया जाए, अब बचा ही क्या है जिसे खोया जाए. निःशब्द हूँ !

इस तस्‍वीर को लोग कोरोना में हुई मौत समझकर वायरल कर रहे हैं। फेसबुक पोस्‍ट का आर्काइव्‍ड वर्जन यहां देखें।

पड़ताल

विश्‍वास न्‍यूज ने वायरल पोस्‍ट की जांच के लिए सबसे पहले गूगल रिवर्स इमेज टूल की मदद ली। इसमें वायरल तस्‍वीर को जब हमने अपलोड करके सर्च किया तो ओरिजनल तस्‍वीर हमें इंडियन एक्‍सप्रेस की वेबसाइट में पब्लिश एक पुरानी न्‍यूज में मिली। 19 अप्रैल 2017 को पब्लिश इस खबर में बताया गया कि असम के मजुली में ढंग की सड़क नहीं होने के कारण एक शख्‍स को अपने छोटे भाई के शव को साइकिल में बांधकर ले जाना पड़ा।

पूरी खबर यहां पढ़ें। यह खबर हमें जनसत्ता डॉट कॉम पर भी मिली।

जांच को आगे बढ़ाते हुए विश्‍वास न्‍यूज ने असम के स्‍थानीय पत्रकार से संपर्क किया। नियोमी बार्ता अखबार के पत्रकार दिगंतर बोरागी ने विश्‍वास न्‍यूज को बताया कि वायरल पोस्‍ट फर्जी है। यह तस्‍वीर वर्ष 2017 के आसपास की है।

अब बारी थी कि उस यूजर की जांच करने की, जिसने चार साल पुरानी तस्‍वीर को अब वायरल किया। हमें पता चला कि फेसबुक यूजर अफजल सिद्दीकी श्रीनगर के रहने वाले हैं। इनके अकाउंट को जुलाई 2015 को बनाया गया था। इस अकाउंट को दो हजार से ज्‍यादा लोग फॉलो करते हैं।

निष्कर्ष: विश्‍वास न्‍यूज की पड़ताल में वायरल पोस्‍ट भ्रामक साबित हुई। अप्रैल 2017 की तस्‍वीर को अब वायरल करने से भ्रम की स्थिति पैदा हुई।

False
Symbols that define nature of fake news
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