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Fact Check: 1930 में गांधी को ‘व्यक्तिगत खर्चों’ के लिए अंग्रेजों से प्रति माह 100 रुपये भत्ता मिलने का दावा FAKE

1930 में महात्मा गांधी को उनकी 'निजी खर्चों' को पूरा करने के लिए अंग्रेजों से प्रति माह 100 रुपये की राशि मिलने का दावा फेक है और इस दावे के साथ वायरल हो रहा रिकॉर्ड वास्तव में जी.एफ.एस कॉलिन्स की तरफ से लिखी गई चिट्ठी है, जो उस वक्त बंबई सरकार के गृह विभाग के सचिव थे और उन्होंने भारत सरकार के गृह विभाग के सचिव को यह चिट्ठी लिखते हुए राजनीतिक कैदी के तौर पर महात्मा गांधी के भरण-पोषण के लिए 100 रुपये मासिक भत्ता के आवंटन की मंजूरी की सूचना दी थी। महात्मा गांधी उस वक्त येरवदा सेंट्रल जेल में बंद थे।

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर पुराने रिकॉर्ड के हवाले से मिली चिट्ठी की प्रति को शेयर करते हुए दावा किया जा रहा है कि 1930 में महात्मा गांधी को अंग्रेजी सरकार की तरफ से उनके ‘व्यक्तिगत खर्चों’ के लिए 100 रुपये मिला करते थे, जो उस जमाने के लिहाज से बड़ी रकम थी। इसी आधार पर यह बताने की कोशिश की जा रही है कि गांधी जी अंग्रेजों के ‘हितों’ को पूरा करने के लिए काम कर रहे थे।

विश्वास न्यूज ने अपनी जांच में इस दावे को गलत पाया। महात्मा गांधी जब जेल में राजनीतिक कैदी के तौर पर बंद थे, तब उनके खर्चों के लिए यह राशि आवंटित किया गया था। भत्ते की यह राशि महात्मा गांधी को निजी तौर पर नहीं बल्कि जेल विभाग को दी जाती थी, जो जेल में बंद कैदियों के भरण-पोषण के लिए सामान्य प्रथा है। यह जानना जरूरी है कि अंग्रेजों की तरफ से आवंटित इस भत्ते को गांधी जी ने स्वीकार करने से मना कर दिया था।

क्या है वायरल?

विश्‍वास न्‍यूज के टिपलाइन नंबर +91 9599299372 पर यूजर ने वायरल रिकॉर्ड की कॉपी को शेयर करते हुए लिखा है, “*आखिरकार, पुराने रिकॉर्ड से वह पत्र मिल ही गया* 1930 में गांधी को व्यक्तिगत खर्चों के लिए अंग्रेजों से प्रति माह 100 रुपये मिलते थे। उस समय 10 ग्राम सोने का बाजार मूल्य ₹18 था। उस समय के ₹100 का बाजार मूल्य वर्तमान में लगभग *₹3.88 लाख* के बराबर है। यक्ष प्रश्न यह है कि अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ने वाले गांधी को *अंग्रेज़ सरकार ही* इतनी बड़ी धनराशि प्रतिमाह नियमित भुगतान क्यों कर रही थी ? विचार करें आगे भेजें.यह कितने बड़े देश द्रोही थे अब पता चल रहा है…* *अगर राष्ट्रवादी पार्टी सत्ता मैं नहीं आती तो पता ही नहीं चलता..*”

विश्वास न्यूज के टिपलाइन पर भेजा गया क्लेम।

सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर कई अन्य यूजर्स ने इस तस्वीर को समान और मिलते-जुलते दावे के साथ शेयर किया है।

पड़ताल

वायरल पोस्ट में किए गए रिकॉर्ड की प्रति को रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमें इसकी ऑरिजिनल प्रति भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट इंडिया कल्चर पर लगी मिली। यहां हमें कई अन्य दस्तावेज मिले, जो राजनीतिक कैदी के तौर पर जेल में बंद महात्मा गांधी के भरण-पोषण (वर्ष 1931 में) पर होने वाले खर्च के लिए (तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की तरफ से) 100 रुपये का आवंटन किए जाने से संबंधित है।

Source-indianculture.gov.in

जून 1930 को यह यह गोपनीय चिट्ठी जी एफ एस कॉलिन्स (बॉम्बे सरकार में गृह विभाग के तत्कालीन सचिव) ने भारत सचिव, गृह विभाग (राजनीतिक) को लिखी थी।  

इस चिट्ठी में  कॉलिन्स ने महात्मा गांधी के भरण-पोषण के लिए 100 रुपये भत्ता की राशि आवंटित करने का सुझाव दिया था, जो उस वक्त (1827 के रेग्युलेशंस Xxv के तहत) येरवदा सेंट्रल जेल में राजनीतिक कैदी के तौर पर बंद थे। चिट्ठी के मुताबिक, यह राशि जेल विभाग को दी गई थी, जिसका भुगतान “29 पॉलिटिकल सेंट्रल रिफ्यूजी एंड स्टेट प्रिजनर्स-अदर रिफ्यूजिज  एंड स्टेट प्रिजनर्स” के तहत किया गया था।

इस चिट्ठी में और अन्य संबंधित दस्तावेजों में कहीं भी इस राशि को सीधे गांधी को ‘निजी’ तौर पर दिए जाने का कोई उल्लेख नहीं है। इसी वेबसाइट पर हमें ऐसे दस्तावेज मिले, जिसमें इस बात का जिक्र है, इस तरह का भत्ता पाने वाले गांधी इकलौते राजनीतिक कैदी नहीं थे।

हमें एमके गांधी.ओआरजी की वेबसाइट पर gandhiheritageportal.org के हवाले से मौजूद उस चिट्ठी की प्रति मिली, जिसे गांधी ने मेजर डॉएले को लिखते हुए इस 100 रुपये की भत्ता राशि को लेने से इनकार कर दिया था।

gandhiheritageportal.org की वेबसाइट पर मौजूद चिट्ठी, जिसके मुताबिक गांधी ने मेजर डॉएले को लिखते हुए इस 100 रुपये की भत्ता राशि को लेने से इनकार कर दिया था।

हमने इस मामले को लेकर  गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़े गांधीवादी कार्यकर्ता कुमार प्रशांत से संपर्क किया। उन्होंने कहा, यह दुष्प्रचार और चरित्र हनन से जुड़ा मामला है। उन्होंने आगे कहा, “जेल में बंद राजनीतिक कैदियों के भरण-पोषण के लिए रकम आवंटित किए जाने की प्रथा सामान्य है और यह रकम उस कैदी को नहीं दी जाती है, बल्कि जेल प्रशासन को इसका भुगतान किया जाता है।” उन्होंने कहा, “कैदियों की श्रेणियों के आधार पर उनके भरण-पोषण की रकम या भत्ता का आवंटन किया जाता है। यह कहना गलत और तथ्यों को तोड़ना-मरोड़ना है कि बतौर राजनीतिक कैदी गांधी के भरण-पोषण के लिए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने जो भत्ता या रकम का आवंटन किया था, वह गांधी को उनकी ‘निजी’ खर्चों को पूरा करने के लिए मिलता था।” यह पूरी तरह से झूठ है।

एमके गांधी.ओआरजी की वेबसाइट पर भी हमें इस बारे में मौजूद रिपोर्ट मिली, जिसमें इस दावे का खंडन करते हुए बताया गया है कि गांधी को 1930 में निजी खर्चों को पूरा करने के लिए अंग्रेजी सरकार की तरफ से 100 रुपये का मासिक भत्ता दिए जाने का दावा फेक है, बल्कि यह भत्ता जेल प्रशासन को दिया जा रहा था, जहां गांधी राजनीतिक कैदी के तौर पर बंद थे।

निष्कर्ष: 1930 में महात्मा गांधी को उनकी ‘निजी खर्चों’ को पूरा करने के लिए अंग्रेजों से प्रति माह 100 रुपये की राशि मिलने का दावा फेक है और इस दावे के साथ वायरल हो रहा रिकॉर्ड वास्तव में जी.एफ.एस कॉलिन्स की तरफ से लिखी गई चिट्ठी है, जो उस वक्त बंबई सरकार के गृह विभाग के सचिव थे और उन्होंने भारत सरकार के गृह विभाग के सचिव को यह चिट्ठी लिखते हुए राजनीतिक कैदी के तौर पर महात्मा गांधी के भरण-पोषण के लिए 100 रुपये मासिक भत्ता के आवंटन की मंजूरी की सूचना दी थी। महात्मा गांधी उस वक्त येरवदा सेंट्रल जेल में बंद थे।

  • Claim Review : 1930 में अंग्रेजों की तरफ से महात्मा गांधी को उनके निजी खर्चों के लिए 100 रुपये मासिक भत्ता मिलता था।
  • Claimed By : Tipline User
  • Fact Check : झूठ
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