Fact Check: ब्रिटिश सैनिकों के साथ नहीं, फुटबॉल क्लब के सदस्यों के साथ नजर आ रहे हैं महात्मा गांधी

महात्मा गांधी को दक्षिण अफ्रीका में जुलू विद्रोह के दौरान घायल अश्वेत विद्रोहियों की मानवीय सहायता और उपचार के लिए सार्जेंट मेजर की अस्थायी रैंक दी गई थी और उन्होंने इस रैंक के साथ किसी सैन्य भूमिका का निर्वहन नहीं किया। यह विशुद्ध रूप से असैन्य सेवा थी, जिसकी पहल गांधी ने खुद की थी। इस दावे के साथ वायरल हो रही तस्वीर गांधी जी की तरफ से गठित फुटबॉल क्लब पैसिव रेजिस्टर्स के सदस्यों के साथ की है।

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक तस्वीर को लेकर दावा किया जा रहा है कि महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सेना में सार्जेंट मेजर के पद पर काम किया था और उन्हें उनके बेहतरीन काम की वजह से पदक से सम्मानित भी किया गया था। पोस्ट से यह प्रतीत हो रहा है कि महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सेना में रहते हुए सैन्य भूमिकाओं का निर्वहन किया था।

विश्वास न्यूज की जांच में यह दावा भ्रामक निकला। जिस वायरल तस्वीर के जरिए दावा किया जा रहा है कि गांधी ने ब्रिटिश सेना में सैन्य भूमिका का निर्वहन किया था, वह तस्वीर महात्मा गांधी की तरफ से बनाई गई फुटबॉल टीम के सदस्यों की है। 1893-1915 के बीच दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए महात्मा गांधी ने जोहान्सबर्ग और प्रिटोरिया में दो फुटबॉल क्लब का गठन किया था और दोनों ही टीमों का नाम ‘द पैसिव रेजिस्टर्स’ रखा गया था और वायरल तस्वीर इसी फुटबॉल क्लब के सदस्यों की है, जिसमें गांधी जी भी नजर आ रहे हैं।

दक्षिण अफ्रीका के जुलू विद्रोह के दौरान महात्मा गांधी ने संघर्ष में घायल लोगों की सेवा करने के लिए ब्रिटिश सरकार से अनुमति मांगी थी और उन्हें इसकी मंजूरी भी मिल गई। विद्रोह के दौरान घायलों की सेवा करने के लिए चीफ मेडिकल ऑफिसर की तरह से उन्हें अस्थायी रूप से सार्जेंट मेजर और उनकी सहायता के लिए चुने गए तीन लोगों को सार्जेंट की रैंक दी गई, लेकिन यह रैंक संघर्ष क्षेत्र में घायलों (जुलू विद्रोहियों और यहां तक की ब्रिटिश सैनिकों) की मानवीय सहायता और उपचार के लिए था, न कि किसी सैन्य जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए। इसलिए यह कहना भ्रामक है कि गांधी जी ने ब्रिटिश आर्मी में सार्जेंट मेजर के पद पर काम किया। गांधी जी को यह रैंक अस्थायी रूप से घायलों की मदद और मानवीय सहायता के लिए मिली थी, जिसकी पहल उन्होंने खुद की थी।

क्या है वायरल?

सोशल मीडिया यूजर ‘Digvijay Mishra’ ने वायरल तस्वीर (आर्काइव लिंक) को शेयर करते हुए लिखा है, ”क्या ये सत्य है….
आप जानते हैं महात्मा गांधी कभी ब्रिटिश आर्मी में सार्जेंट मेजर थे और उन्हें ब्रिटिश सेना में शानदार काम करने के लिए दो पदक भी मिले थे
लेकिन हां कांग्रेसी की नजर में गद्दार तो सावरकर है।”

सोशल मीडिया पर भ्रामक दावे के साथ वायरल पोस्ट

सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर कई अन्य यूजर्स ने इस तस्वीर को समान और मिलते-जुलते दावे के साथ शेयर किया है।

https://twitter.com/yogivishalnand5/status/1529092426438021120

पड़ताल

वायरल पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर को जांचने के लिए हमने गूगल रिवर्स इमेज सर्च की मदद ली। सर्च में यह तस्वीर लाइव मिंट की वेबसाइट पर ‘When Bapu kicked the ball’ हेडलाइन से प्रकाशित रिपोर्ट में लगी मिली।

मिंट की वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट में इस्तेमाल तस्वीर

27 जून 2010 को प्रकाशित रिपोर्ट में दी गई जानकारी के मुताबिक, इस तस्वीर में महात्मा गांधी अपने सचिव के साथ दक्षिण अफ्रीका में ‘द पैसिव रेजिस्टर्स’ के साथ नजर आ रहे हैं। महात्मा गांधी फुटबॉल के बेहद शौकीन थे और उन्होंने क्रिकेट के मुकाबले फुटबॉल को तरजीह दी। इसी शौक की वजह से 1893-1915 के बीच करीब दो दशक के अफ्रीकी प्रवास के दौरान गांधी ने दो जोहान्सबर्ग और प्रिटोरिया में दो फुटबॉल क्लब का गठन किया था और दोनों का ही नाम ‘पैसिव रेजिस्टर्स’ रखा था। यह नाम लियो टॉल्सटॉय औऱ हेनरी थूरो से प्रेरित था, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में नस्ली भेदभाव और अन्याय का विरोध किया था।

वायरल हो रही तस्वीर इसी फुटबॉल क्लब के सदस्यों के साथ की है, जिसे गांधी के ब्रिटिश आर्मी में सार्जेंट मेजर होने के दावे के साथ वायरल किया जा रहा है।

फोटो एजेंसी alamy.com की वेबसाइट पर भी यह तस्वीर समान दावे के साथ लगी मिली।

Source-Alamy.com

स्पष्ट है कि वायरल हो रही तस्वीर को जिस संदर्भ में शेयर किया जा रहा है, वह उससे पूरी तरह से असंबंधित है। वायरल पोस्ट में यह दावा किया गया है कि गांधी जी ने ब्रिटिश आर्मी में सार्जेंट मेजर की नौकरी की थी और उन्होंने सैन्य भूमिका का निर्वहन किया था।

इस दावे की पड़ताल के लिए हमने सर्च की मदद ली। सर्च में हमें mkgandhi.org पर गांधी जी की आत्मकथा मिली, जिसके अध्याय 101 में इस बात का विवरण दिया गया है। दी गई जानकारी के मुताबिक, ‘नटाल में जुलू विद्रोह के दौरान मैंने खुद को नटाल का नागरिक समझते हुए गवर्नर को चिट्ठी लिखकर इंडियन एंबुलेस कॉर्प्स के गठन की मंजूरी मांगी। उन्होंने मेरे प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। मुझे गवर्नर से इतनी जल्दी मंजूरी मिलने की उम्मीद नहीं थी। (संघर्ष क्षेत्र) में काम करने और मुझे दर्जा देने के लिए, जो मौजूदा संधि के मुताबिक होता, चीफ मेडिकल ऑफिसर ने मुझे अस्थायी रूप से सार्जेंट मेजर और मेरे तीन आदमियों को सार्जेंट का रैंक दिया। हमें यूनिफॉर्म भी दी गई और हमारा कॉर्प्स (एंबुलेंस) करीब छह हफ्तों तक काम करता रहा।’

Source-www.mkgandhi.org

स्पष्ट है कि गांधी को जुलू विद्रोह के दौरान घायलों के उपचार और मानवीय मदद के लिए अस्थायी रूप से सार्जेंट की रैंक दी गई थी। गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत बताते हैं, ‘जब जुलू विद्रोह हुआ तब गांधी ने घायलों की सेवा करने का काम किया और इसी काम के लिए उन्हें सार्जेंट मेजर की रैंक दी गई। उन्हें यह रैंक किसी सैन्य भूमिका का निर्वहन करने के लिए नहीं दी गई थी और न ही गांधी बतौर सार्जेंट मेजर युद्ध क्षेत्र में गए। वास्तव में गोरे लोग अश्वेतों को आदमी ही नहीं मानते थे और इस विद्रोह में अश्वेतों के साथ हो रहे बर्ताव और उनकी समस्याओं को समझने का गांधी जी को मौका भी मिला।’

गांधी ने अपनी आत्मकथा में भी इसका जिक्र किया है। mkgandhi.org पर मौजूद गांधी जी की आत्मकथा के अध्याय 101 में गांधी बताते हैं, ‘जब मैं वहां (नटाल) पहुंचा तो प्रभारी चिकित्सा अधिकारी ने हमारा स्वागत किया। उन्होंने कहा कि गोरे लोग घायल जुलू की सेवा करने को तैयार नहीं थे। उन्होंने हमें बैंडेंज और दवाएं दी और फिर अस्पताल ले गएं। जुलू हमें देखकर खुश हुए। गोरे सैनिक उन रेलिंगों से झांक रहे थे, जो हमें उनसे अलग करती थीं और हमें घायलों पर ध्यान देने से रोकने की कोशिश करती थीं। हमने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया, जिससे वे क्रोधित हो गए और जुलू लोगों को गालियां देने लगें।’

जुलू विद्रोह के पहले बोअर युद्ध के दौरान भी इंडियन एंबुलेस कॉर्प्स सक्रिय था। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा के अध्याय ‘द बोअर वॉर’ में इसका जिक्र करते हुए बताया है कि जब युद्ध की घोषणा हुई तो मेरी सहानुभूति सभी बोअर के प्रति थी और मैंने जहां तक संभव हो सके, कई सहयोगियों को जुटाया और उन्हें एंबुलेंस कॉर्प्स में सेवा देने के लिए तैयार किया। इस कॉर्प्स ने छह हफ्तों की सेवा दी और इस कॉर्प्स में 40 लीडर समेत 1,100 लोग थे। इस कॉर्प्स के काम को सराहा गया और इसके लीडर्स को वॉर मेडल से भी नवाजा गया।

Source-www.mkgandhi.org

alamy.com की वेबसाइट पर में हमें वह तस्वीर मिली, जिसमें गांधी (दूसरी पंक्ति में बाएं से पांचवें) को बोअर युद्ध (1899-1900) के दौरान इंडियन एबुलेंस कॉर्प्स के साथ यूनिफॉर्म में देखा जा सकता है।

Source-alamy.com

निष्कर्ष: हमारी जांच से यह बात साबित होती है कि महात्मा गांधी को दक्षिण अफ्रीका में जुलू विद्रोह के दौरान घायल अश्वेत विद्रोहियों की मानवीय सहायता और उपचार के लिए सार्जेंट मेजर की अस्थायी रैंक दी गई थी और उन्होंने इस रैंक के साथ किसी सैन्य भूमिका का निर्वहन नहीं किया। यह विशुद्ध रूप से असैन्य सेवा थी, जिसकी पहल गांधी ने खुद की थी। इस दावे के साथ वायरल हो रही तस्वीर गांधी जी की तरफ से गठित फुटबॉल क्लब पैसिव रेजिस्टर्स के सदस्यों के साथ की है।

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