ऑस्ट्रेलिया के स्कूलों में गैर-मुस्लिम छात्रों के इस्लामीकरण के दावे के साथ वायरल हो रहा वीडियो क्लिप वास्तव में विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के छात्रों और परिवारों के बीच एक-दूसरे के बारे में समझ विकसित करने के मकसद से बनाई गई डॉक्युमेंट्री 'द स्वैप' का वीडियो क्लिप है, जो एक सामाजिक प्रयोग है। इसी डॉक्युमेंट्री के क्लिप को गलत और बेतुका दावे के साथ सोशल मीडिया पर गैर इस्लामी बच्चों के इस्लामीकरण के नाम पर फैलाया जा रहा है।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो को लेकर दावा किया जा रहा है कि ऑस्ट्रेलिया में स्कूली बच्चों को नमाज पढ़ने का तरीका सिखाया जा रहा है। मामले का वीडियो सामने आने के बाद बच्चों के अभिभावकों ने प्रवासी समुदाय का तुष्टिकरण किए जाने को लेकर स्कूल पर बच्चों का ब्रेनवॉश करने और उनका इस्लामीकरण करने का आरोप लगाया।
विश्वास न्यूज की जांच में यह दावा गलत निकला। वायरल हो रहा वीडियो ऑस्ट्रेलिया का ही है, लेकिन यह स्कूली बच्चों के इस्लामीकरण का नहीं है, बल्कि सामाजिक प्रयोग का हिस्सा है, जिसके तहत बच्चों को भिन्न-भिन्न संस्कृतियों से परिचित कराना था, ताकि सामाजिक बाधाओं को दूर करते हुए महत्तम स्वीकार्यता, सम्मान और विविध सांस्कृतिक समुदायों के बारे में समझ विकसित की जा सके।
ट्विटर यूजर ‘Megh Updates’ ने वायरल वीडियो (आर्काइव लिंक) को शेयर करते हुए लिखा है, “Australia: Parents go furious as a video of children in Australia being taught how to pray in a mosque goes viral.
Furious parents accuse the school of brainwashing and Islamizing their children in the name of pleasing a migrant community.”
कई अन्य यूजर्स ने भी इस वीडियो को समान और मिलते-जुलते दावे के साथ शेयर किया है। सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर भी इस वीडियो समान दावे के साथ शेयर किया गया है।
करीब एक मिनट से अधिक लंबे वीडियो क्लिप में छात्रों को नमाज पढ़ते हुए देखा जा सकता है। वीडियो क्लिप के अंत में ‘SBS’ लिखा हुआ नजर आ रहा है और वीडियो के बीच में इस्लामिक कॉलेज ऑफ ब्रिसबेन के सीईओ अली कादरी को बोलते हुए देखा जा सकता है। इन की-वर्ड से सर्च करने पर एसबीएस ऑस्ट्रेलिया के आधिकारिक पेज पर ‘The Swap | Attending Prayers’ के टाइटल के साथ वीडियो अपलोड किया हुआ मिला।
वीडियो में दी गई जानकारी के मुताबिक, यह ‘द स्वैप’ कार्यक्रम का वीडियो है। वीडियो के साथ बताया गया है, ”कभी-कभी अपने मूल्यों के बारे में दूसरों को शिक्षित करने की कोशिश में, हम असभ्य या अचानक तल्ख हो सकते हैं… यह एक ऐसी चीज है, जिसे (छात्रों को) सीखना होगा कि कैसे नहीं करना है। उनमें से कुछ पहली बार प्रार्थना में शामिल हुए।”
स्पष्ट है कि यह द स्वैप नाम के कार्यक्रम का हिस्सा है। एसबीएस की वेबसाइट पर दो मार्च 2023 को प्रकाशित एक आर्टिकल में बताया गया है कि एसबीएस की नई सीरीज द स्वैप एक मजबूत और साहसी स्कूली प्रयोग है।
टीवी पर बनी इस तरह की पहली ऑरिजिनल सीरीज तीन पार्ट में बनाई गई डॉक्युमेंट्री सीरीज है, जो यह बताती है कि जब विभिन्न संस्कृतियों, धर्म और भिन्न पृष्ठभूमि के 12 स्कूली छात्र और परिवारों को एक-दूसरे की दुनिया में रख दिया जाता है, तो क्या नतीजा सामने आता है। अभी तक इस कार्यक्रम के दो एपिसोड को ही जारी किया गया है।
इस कार्यक्रम के जनक इस्लामिक कॉलेज ऑफ ब्रिसबेन के सीईओ अली कादरी हैं। इस कार्यक्रम में छह मुस्लिम परिवार, चार कैथोलिक परिवार और दो नास्तिक परिवार शामिल हैं।
स्पष्ट है कि वायरल हो रहा वीडियो ऑस्ट्रेलिया के स्कूलों में गैर-मु्स्लिम बच्चों के इस्लामीकरण का नहीं, बल्कि भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के बच्चों को एक-दूसरे से परिचित कराने के सामाजिक प्रयोग का हिस्सा है। वायरल वीडियो को लेकर हमने ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय मूल के पत्रकार विवेक असरी से संपर्क किया। उन्होंने पुष्टि करते हुए बताया कि वायरल हो रहा वीडियो क्लिप स्कूलों में चलाए गए सामाजिक प्रयोग के तहत ‘द स्वैप’ नाम की डॉक्युमेंट्री का हिस्सा है।
वायरल वीडियो को गलत दावे के साथ शेयर करने वाले यूजर को ट्विटर पर दो लाख से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं।
निष्कर्ष: ऑस्ट्रेलिया के स्कूलों में गैर-मुस्लिम छात्रों के इस्लामीकरण के दावे के साथ वायरल हो रहा वीडियो क्लिप वास्तव में विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के छात्रों और परिवारों के बीच एक-दूसरे के बारे में समझ विकसित करने के मकसद से बनाई गई डॉक्युमेंट्री ‘द स्वैप’ का वीडियो क्लिप है, जो एक सामाजिक प्रयोग है। इसी डॉक्युमेंट्री के क्लिप को गलत और बेतुका दावे के साथ सोशल मीडिया पर गैर इस्लामी बच्चों के इस्लामीकरण के नाम पर फैलाया जा रहा है।
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