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Explainer: क्या है मनी बिल, जिसके जरिए कानून बनाने के मामले की सुनवाई के लिए सहमत हुआ SC?

अक्सर मनी बिल के साथ फाइनेंशियल बिल का भी जिक्र आता है। लेकिन ये दोनों समान नहीं, बल्कि बेहद भिन्न हैं। अनुच्छेद 110 जहां मनी बिल के बारे में हैं, वहीं अनुच्छेद 117 फाइनेंशियल  बिल की व्याख्या करता है। जो मुद्दे वित्तीय मुद्दों से संबंधित हैं लेकिन मनी बिल के दायरे में नहीं आते हैं, वे फाइनेंशियल  बिल के दायरे में आते हैं।

  • By: Abhishek Parashar
  • Published: Jul 22, 2024 at 10:19 AM
  • Updated: Aug 2, 2024 at 03:59 PM

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। मोदी सरकार 3.0 के पहले फुल बजट को पेश किए जाने के पहले धन विधेयक या मनी बिल का मामला उस वक्त सुर्खियों में आ गया, जब इस बिल के जरिए कानून बनाए जाने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुने जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सहमति दे दी।

न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, अक्टूबर 2023 में चीफ जस्टिस ने कहा था कि इन मामलों की सुनवाई के लिए जल्द ही सात जजों वाली संवैधानिक पीठ का गठन किया जाएगा। 23 जुलाई को बजट पेश किए जाने से पहले सीनियर एडवोकेट और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने आगामी बजट के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट से इस मामले पर तत्काल सुनवाई की अपील की।

हाल के वर्षों में आधार एक्ट, 2016, मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2022 (पीएमएलए) और फॉरेन कंट्रीब्यूशंस एक्ट, 2010 जैसे अहम विधेयकों को मनी बिल के तौर पर संसद से पारित कर कानून बनाया गया है। जिस वक्त इन विधेयकों या बिल को राज्यसभा में पेश किया गया, उस वक्त राज्यसभा में विपक्षी सांसदों की संख्या ज्यादा थी।

क्या है विधायी या संसदीय संदर्भ?

बेहद सामान्य तरीके से अगर इस मुद्दे को समझा जाए तो उसे ऐसे समझा जा सकता है कि कोई विधेयक संसद के दोनों से सदनों से पारित होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी से कानून बनता है। लेकिन जब किसी बिल को मनी बिल के तौर पर चिह्नित किया जाता है, तो उस मामले में राज्यसभा को नजरअंदाज कर दिया जाता है या उस बिल को पास कराने के लिए राज्यसभा की स्वीकृति की जरूरत नहीं रह जाती है, जैसा कि सामान्य कानून निर्माण की प्रक्रिया में होता है।

मनी बिल के मामले में लोकसभा की भूमिका ज्यादा प्रभावी होती है और आखिरकार सरकार क्यों किसी विधेयक को मनी बिल के तौर पर पेश करती है, इसे समझने के लिए जरूरी है कि हम यह समझें कि मनी बिल होता क्या है और इसे लेकर संवैधानिक व्यवस्था क्या है?

संवैधानिक संदर्भ

संविधान के अनुच्छेद 109 (1) के तहत मनी बिल या धन विधेयक को राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सकता है। इसे सिर्फ और सिर्फ लोकसभा में पेश किया जाएगा और वहां से पारित होने के बाद इसे राज्य सभा को भेजा जाता है।

अनुच्छेद 109 (2) में इस बात का साफ और स्पष्ट उल्लेख है कि मनी बिल या धन विधेयक को लोकसभा से पारित किए जाने के बाद राज्यसभा को भेजा जाता है और राज्यसभा को बिल मिलने के 14 दिनों के भीतर इसे लोकसभा को अपनी अनुशंसाओं के साथ लौटाना होता है।

हालांकि, यह लोकसभा पर निर्भर करता है कि वह उन सभी या कुछ अनुशंसाओं को खारिज करती है या स्वीकार करती है। अनुच्छेद 109 (3) के मुताबिक, अगर लोकसभा संबंधित धन विधेयक पर राज्यसभा की किसी भी अनुशंसा को स्वीकार करती है तो राज्यसभा के सुझाए गए संशोधन के साथ बिल को दोनों सदनों से पास मान लिया जाएगा।

Source-legislative.gov.in

वहीं, अनुच्छेद 109 (4) के मुताबिक, अगर लोकसभा, उपरी सदन की किसी भी अनुशंसा को स्वीकार नहीं करती है तो भी उसे बिना किसी संशोधन के उस स्वरूप में पारित मान लिया जाएगा,  जिस स्वरूप में लोकसभा ने उसे पारित कर राज्यसभा को भेजा था।

यानी अगर किसी भी विधेयक को मनी बिल के तौर पर लोकसभा में पेश कर उसे पारित करने के बाद राज्यसभा को भेजा जाता है तो लोकसभा संबंधित विधेयक पर राज्यसभा की अनुशंसाओं को पूरी या आंशिक तरह से मानने या न मानने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है।

अब यहां यह सवाल उठता है कि अगर संबंधित विधेयक को लोकसभा ने  पारित करने के बाद राज्यसभा को भेजा और राज्यसभा उस विधेयक को 14 दिनों (अनुच्छेद 109-2) के भीतर अगर लोकसभा को नहीं लौटाया तो क्या होगा?

संविधान का अनुच्छेद 109(5) इस स्थिति का जवाब देता है। इस अनुच्छेद के मुताबिक, अगर लोकसभा से पारित मनी बिल को  14 दिनों के भीतर नहीं लौटाती है तो इस अवधि के खत्म होने के बाद संबंधित विधेयक को उसी स्वरूप में दोनों सदनों से पास मान लिया जाएगा, जिस स्वरूप में उसे लोकसभा से पास किया गया था।

अब सवाल यह उठता है कि किस विधेयक को मनी बिल या धन विधेयक के तौर पर चिह्नित किया जा सकता है, जो पूरे विवाद की वजह है।

15 जुलाई 2024 को अपने आधिकारिक एक्स हैंडल से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री जयराम रमेश ने पोस्ट करते हुए लिखा, “पिछले दस वर्षों में कई विधेयकों को संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत ‘धन विधेयक’ घोषित करके संसद  से पारित किया गया है। इसकी एक मिसाल 2016 का आधार अधिनियम है। मैंने इसे धन विधेयक के रूप में घोषित करने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, और तत्कालीन सीजेआई ने अपने असहमतिपूर्ण फैसले में इस घोषणा को ‘संविधान के साथ धोखाधड़ी’ कहा था। मैंने ऐसे अन्य मामलों को भी चुनौती दी है।”

उन्होंने लिखा, “2014 से अनुच्छेद 110 के व्यापक दुरुपयोग पर याचिकाओं की सुनवाई के लिए एक अलग संवैधानिक पीठ गठित करने का सीजेआई का आज का फैसला एक स्वागत योग्य कदम है। उम्मीद है कि नवंबर 2024 में उनके सेवानिवृत्त होने से पहले अंतिम और निश्चित घोषणा आ जाएगी।”

25 दिसंबर 2018 की द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, “राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने सुप्रीम कोर्ट के 29 सितंबर के फैसले की समीक्षा किए जाने की अपील की है, जिसमें कोर्ट ने आधार एक्ट को मनी बिल के तौर पर संसद में पेश किए जाने के फैसले को सही ठहराया था।”

क्या है आधार एक्ट से संबंधित विवाद?

जनवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 4-1 से सितंबर 2018 के उस फैसले को सही ठहराया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने देश की बायोमीट्रिक आइडेंटिटी सिस्टम को वैध करार देते हुए सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ पाने के लिए आधार पंजीकरण को अनिवार्य करार दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ऑब्जर्वर की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, 2018 के आधार फैसले में दो महत्वपूर्ण सवालों का जवाब देना था। पहला यह कि क्या किसी विधेयक को ‘धन विधेयक’ के रूप में वर्गीकृत करने का लोक सभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम है या इसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। दूसरा क्या आधार अधिनियम को वैध रूप से ‘धन विधेयक’ के रूप में प्रमाणित किया गया था।

पहले प्रश्न पर बहुमत की राय यह थी कि कुछ परिस्थितियों में जिसमें संविधान का उल्लंघन शामिल हो सकता है, धन विधेयक की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। लेकिन आधार अधिनियम पर, बहुमत इस पक्ष में था कि इसमें धन विधेयक के ‘तत्व’ मौजूद थे, इसलिए इसे मनी बिल के तौर पर वर्गीकृत किया जाना वैध था।

आधार रिव्यू (बेघर फाउंडेशन बना जस्टिस के एस पुट्टुस्वामी) (Source-https://www.scobserver.in/)

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मामले की सुनवाई की थी, जिसमें मौजूदा चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे। इस फैसले में असहमति का पक्ष डी वाई चंद्रचूड़ का था। उन्होंने इस फैसले से अहमति जताते हुए कहा कि पूरा अधिनियम संवैधानिक वैधता की कसौटी पर खरा नहीं उतरा।

लेकिन 20 जनवरी 2021 को आया फैसला 4:1 के बहुमत से था, इसलिए इसके खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका (डी वाई चंद्रचूड़ की असमहमति के बावजूद) खारिज हो गई। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के संदर्भ में हमारे लिए यह समझा महत्वपूर्ण है कि आखिर किन आधारों पर किसी विधेयक को मनी बिल या धन विधेयक के तौर पर संसद में पेश किया जा सकता है।

संविधान के पांचवें भाग (संघ) के अनुच्छेद 110 में मनी बिल या धन विधेयक की परिभाषा दी गई है।

कर को लगाए, संसोधित, हटाए या नियमन, या फिर सरकार की तरफ से दी जाने वाली गांरटी या कर्ज नियमन,संचित निधि या आपातकालीन निधि की कस्टडी  या फिर ऐसी निधि से धन निकाले जाने या उसे पैसा डाले जाने या फिर भारत की संचित निधि पर भारित किसी व्यय की उद्घोषणा या इस प्रकार के किसी व्यय की राशि में वृद्धि करने वाले समेत अन्य मुद्दों को संबोधित करने वाले प्रावधानों से संबंधित बिल को धन विधेयक के तौर पर चिह्नित किया जाता है। सामान्य शब्दों में समझें तो मनी बिल या धन विधेयक टैक्स, सरकारी खर्च और बजट जैसे वित्तीय मामलों से संबंधित होता है।

अपवाद

हालांकि जुर्माना लगाए जाने या फिर किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिये किसी कर को लगाने, हटाने, संसोधित करने या उसमें बदलाव करने समेत अन्य मामलों से संबंधित विधेयक को धन विधेयक के तौर पर वर्गीकृत नहीं किया जाएगा। या फिर किसी सेवा के बदले या लाइसेंस फी के लिए किया गया भुगतान भी मनी बिल के तहत नहीं आता है।

विवाद की स्थिति में कैसे होगा समाधान?

अनुच्छेद 110 (2) इस बात का प्रावधान है कि अगर इस बात को लेकर सवाल उठे कि कोई विधेयक मनी बिल है या नहीं तो इस पर स्पीकर का फैसला अंतिम फैसला होगा।

अनुच्छेद 111 के मुताबिक, अगर दोनों सदनों की तरफ से पारित होने के बाद धन विधेयक को राष्ट्रपति के समक्ष पेश किया जाता है तो वे इस पर सहमति देंगे या फिर इसे अपने पास रोक कर रख सकते हैं। लेकिन वे किसी भी दशा में इस विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद को वापस नहीं भेज सकते हैं।

अक्सर मनी बिल के साथ फाइनेंशियल बिल का भी जिक्र आता है। लेकिन ये दोनों समान नहीं, बल्कि बेहद भिन्न हैं। अनुच्छेद 110 जहां मनी बिल के बारे में हैं, वहीं अनुच्छेद 117 फाइनेंशियल  बिल की व्याख्या करता है। जो मुद्दे वित्तीय मुद्दों से संबंधित हैं लेकिन मनी बिल के दायरे में नहीं आते हैं, वे फाइनेंशियल  बिल के दायरे में आते हैं।

मसलन बैंकिंग रेग्युलेशन (संशोधन ) विधेयक या कंपनीज (संशोधन) अधिनियम फाइनेंशियल बिल हैं। वहीं बजट मनी बिल है। दोनों के बीच एक अन्य महत्वपूर्ण फर्क यह भी है कि जहां मनी बिल को को केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है, वहीं फाइनेंशियल  बिल को संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। मनी बिल भी एक तरह का फाइनेंशियल  बिल है, जो संविधान के अनुच्छेद 110(1) (1) से (g) में उल्लिखित मुद्दों से संबंधित है।

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