नई दिल्ली (विश्वास न्यूज़): सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर की गई है, जिसमें एक टेक्स्ट बुक का पेज दिखाया गया है और इसमें एक कैप्शन में लिखा है कि कक्षा 12वीं की टेक्स्ट बुक में COVID-19 के इलाज का उल्लेख किया गया है और यह वायरस नया नहीं है। इस पोस्ट में बुक का नाम डॉ. रमेश गुप्ता द्वारा लिखी गई मॉडर्न जूलॉजी है। Vishvas News ने इसकी पड़ताल की और पाया कि यह पोस्ट भ्रामक है। कोरोना वायरस के अन्य उपभेद पहले से मौजूद थे, लेकिन कोरोना वायरस फैमिली में COVID-19 नया है। इसका वैक्सीन अभी नहीं बनाया गया है। इसका क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है।
आराध्या रायकवर नाम के एक यूजर ने यह पोस्ट फेसबुक पर शेयर किया है जिसमें लिखा है: “भाइयों काफी किताबों में ढूंढने के बाद बड़ी मुश्किल से कोरोना वायरस की दवा मिली है, हम लोग कोरोना वायरस की दवा ना जाने कहां-कहां ढूंढते रहे, लेकिन कोरोना वायरस की दवा इंटरमीडिएट की जन्तु विज्ञान की किताब में दी गई है, जिस वैज्ञानिक ने इस बीमारी के बारे में लिखा है उसने ही इसके इलाज के बारे में भी लिखा है और यह कोई नई बीमारी नहीं है इसके बारे में तो पहले से ही इंटरमीडिएट की किताब में बताया गया है साथ में इलाज भी। कभी-कभी ऐसा होता है कि डॉक्टर और वैज्ञानिक बड़ी-बड़ी किताबों के चक्कर में छोटे लेवल की किताबों पर ध्यान नहीं देते और यहां ऐसा ही हुआ है। (किताब- जन्तु विज्ञान, लेखक- डॉ रमेश गुप्ता, पेज नं-1072) भाइयों यह कोई फेक न्यूज़ नहीं है इसलिए मेरी आप से यह विनती है कि इस दवा को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें, ताकि किसी कोरोना वायरस से ग्रसित मरीज का इलाज हो सके।”
इस पोस्ट का आर्काइव लिंक यहां देखा जा सकता है।
विश्वास न्यूज़ ने इस दावे के अलग-अलग तत्वों की जांच शुरू की।
हमने पाया कि बुक में कोरोना वायरस के बारे में उल्लेख किया गया है। हमने पाया कि पुस्तक कोरोना वायरस के बारे में उल्लेख करती है। पुस्तक डॉ. रमेश गुप्ता द्वारा लिखी गई है। यह बुक डॉ. रमेश गुप्ता द्वारा लिखी गई है। डॉ. रमेश गुप्ता लखनऊ के श्री जय नारायण पी जी कॉलेज के जूलॉजी डिपार्टमेंट के हेड रह चुके हैं। Vishvas News ने डॉ. रमेश गुप्ता के पुराने सहयोगी डॉ. वी के द्विवेदी से बात की। उन्होंने कहा कि डॉ. गुप्ता अब जिंदा नहीं हैं। साथ ही यह भी बताया है कि उनकी बुक में कोरोना वायरस के सामान्य परिवार की डिटेल्स मौजूद हैं। इसमें नोवल कोरोना वायरस (COVID-19) के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
हमने बुक में पूरा पाठ पढ़ा। इसमें जो डिटेल्स दी गई हैं जिसमें कॉमन कोल्ड और कुछ कोरोना वायरस की जानकारी मौजूद हैं। यह कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया कि COVID-19 का इलाज किया जा सकता है।
इस पर टिप्पणी करते हुए डॉ. वी. के. द्विवेदी ने बताया कि डॉ. गुप्ता का कभी भी यह मतलब नहीं था कि ये दवाएं नोवल कोरोना वायरस को ठीक कर सकती हैं। यह पोस्ट लोगों को गुमराह कर रही है कि पुस्तक COVID-19 के बारे में बताती है, जबकि ऐसा नहीं है।
हमने नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ में स्थित अपोलो अस्पताल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. निखिल मोदी से भी बात की। उन्होंने कहा, “ये दवाएं आम सर्दी में सहायक हो सकती हैं, लेकिन इनसे कोरोना वायरस को ठीक नहीं किया जा सकता है।”
WHO के अनुसार, वर्तमान में COVID-19 के उपचार या रोकथाम के लिए कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। हालांकि, इसके लिए कई क्लीनिकल टेस्ट किए जा रहे हैं। वर्तमान में ऐसा कोई सबूत नहीं है कि जिससे यह साबित हो कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन या कोई अन्य दवा COVID-19 को ठीक कर सकती है या रोक सकती है।
नोवल कोरोना वायरस, कोरोना वायरस परिवार का एक नया मेंबर है। यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और प्रीवेंशन (CDC) के अनुसार, 1960 दशक के मध्य में ह्यूमन कोरोना वायरस की पहचान की गई थी। लोगों को संक्रमित करने वाले 7 कोरोना वायरस के नाम कुछ इस प्रकार हैं।
इस पोस्ट को आराध्या रायकवर नाम के एक यूजर ने फेसबुक पर पोस्ट किया था। जब हमने यूजर की सोशल प्रोफाइल को स्कैन किया तो पाया कि यूजर दिल्ली के बाहर का है।
विश्वास न्यूज़ की पड़ताल में ये पता चला कि वायरल हो रहा यह पोस्ट भ्रामक है। टेक्सटबुक में कोरोनावायरस की डिटेल्स दी गई हैं लेकिन यह COVID-19 से संबंधित नहीं है। कोरोनावायरस के अन्य उपभेद पहले से मौजूद थे, लेकिन कोरोना वायरस फैमिली में COVID-19 नया है। इसका वैक्सीन अभी नहीं बनाया गया है। इसका क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है।
Disclaimer: विश्वास न्यूज की कोरोना वायरस (COVID-19) से जुड़ी फैक्ट चेक स्टोरी को पढ़ते या उसे शेयर करते वक्त आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि जिन आंकड़ों या रिसर्च संबंधी डेटा का इस्तेमाल किया गया है, वह परिवर्तनीय है। परिवर्तनीय इसलिए क्योंकि इस महामारी से जुड़े आंकड़ें (संक्रमित और ठीक होने वाले मरीजों की संख्या, इससे होने वाली मौतों की संख्या ) में लगातार बदलाव हो रहा है। इसके साथ ही इस बीमारी का वैक्सीन खोजे जाने की दिशा में चल रहे रिसर्च के ठोस परिणाम आने बाकी हैं, और इस वजह से इलाज और बचाव को लेकर उपलब्ध आंकड़ों में भी बदलाव हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि स्टोरी में इस्तेमाल किए गए डेटा को उसकी तारीख के संदर्भ में देखा जाए।
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