भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) की 2022-23 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में 131 अरब डॉलर प्रीमियम राशि (कुल वैश्विक बीमा प्रीमियम में 1.9 फीसदी हिस्सेदारी के साथ) के साथ भारत का बीमा बाजार दुनिया का 10वां बड़ा बाजार है और 2023 तक इसके छठा बड़ा बाजार होने का अनुमान है, जो यह बताता है कि भारत का बीमा बाजार दुनिया की सर्वाधिक तेज वृद्धि दर से विकसित होता बाजार है।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। कोविड-19 महामारी के बाद हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम में भारी वृद्धि देखने को मिली। लोकल सर्कल्स के एक सर्वे के हवाले से ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, 52% हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी धारकों ने माना कि पिछले 12 महीनों में उनके प्रीमियम में करीब 25% से अधिक का इजाफा हुआ है। सर्वे के लिए शोधकर्ताओं ने भारत के 324 जिलों में 11,000 लोगों की राय ली।
कुछ महीने पहले इसी संदर्भ को ध्यान में रखते हुए परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को चिट्ठी लिखकर लाइफ इंश्योरेंस (जीवन बीमा) और हेल्थ इंश्योरेंस (स्वास्थ्य बीमा) पर जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवा कर को समाप्त करने की अपील की थी। हालांकि, उनकी यह चिट्ठी गोपनीय थी, लेकिन यह सार्वजनिक हो गई और विपक्ष ने इस मुद्दे को हाथोंहाथ लिया और संसद परिसर में राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों के सांसदों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए स्वास्थ्य बीमा और जीवन बीमा के प्रीमियम भुगतान पर जीएसटी को हटाए जाने की मांग की।
गौरतलब है कि भारतीय उपभोक्ताओं को स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर 18% जीएसटी का भुगतान करना होता है, जो कई देशों के मुकाबले काफी ज्यादा है। इसके बाद सरकार ने इस मामले पर विचार करने के लिए मंत्रियों के समूह (जीओएम) का गठन किया था, जिसने जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर जीएसटी को खत्म करने की सलाह दी है। हालांकि, इसका फैसला जीएसटी काउंसिल की बैठक में होगा, लेकिन इस सलाह के बाद यह माना जा रहा है कि सरकार जीएसटी काउंसिल की नवंबर में होने वाली बैठक में अहम फैसला ले सकती है।
भारत का बीमा बाजार दुनिया के तेजी से बढ़ते हुए बीमा बाजारों में से एक हैं, लेकिन इसके बावजूद यहां की बड़ी आबादी बीमा के दायरे से बाहर है। सर्विस से सिग्मा रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में सुस्ती और महंगाई के आसार के बावजूद 2023 में बीमा बाजार के मजबूत रहने की उम्मीद है।
भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) की 2022-23 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में 131 अरब डॉलर प्रीमियम राशि (कुल वैश्विक बीमा प्रीमियम में 1.9 फीसदी हिस्सेदारी के साथ) के साथ भारत का बीमा बाजार दुनिया का 10वां बड़ा बाजार है और 2032 तक इसके छठा बड़ा बाजार होने का अनुमान है, जो यह बताता है कि भारत का बीमा बाजार दुनिया की सर्वाधिक तेज वृद्धि दर से विकसित होता बाजार है।
2022 में कुल 3 ट्रिलियन डॉलर के प्रीमियम के साथ दुनिया का सबसे बड़ा बीमा बाजार अमेरिका रहा, जबकि 698 अरब डॉलर की प्रीमियम के साथ चीन दूसरे नंबर पर, 363 अरब डॉलर प्रीमियम के साथ ब्रिटेन तीसरे नंबर पर, 338 डॉलर प्रीमियम के साथ जापान चौथे नंबर पर 261 बिलियन डॉलर प्रीमियम वॉल्यूम के साथ फ्रांस पांचवें नंबर पर रहा।
भारत में बीमा की पहुंच बेहद सीमित आबादी तक है, इसलिए बीमा प्रीमियम भुगतान से जीएसटी को हटाने का व्यापक असर होगा और इसकी पहुंच और पैठ में इजाफा होगा, जिसे आम तौर पर इंश्योरेंस पेनिट्रेशन कहा जाता है।
किसी भी देश में बीमा क्षेत्र की स्थिति को मापने के लिए दो मानकों इंश्योरेंस पेनिट्रेशन और इंश्योरेंस डेंसिटी जैसे दो मानकों का इस्तेमाल किया जाता है। इंश्योरेंस पेनिट्रेशन को मापने का तरीका कुल GDP में बीमा की प्रतिशत हिस्सेदारी से तय होती है, वहीं इंश्योरेंस डेंसिटी प्रीमियम और आबादी (प्रति व्यक्ति प्रीमियम) के अनुपात से तय होती है।
IRDAI की रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में भारत की कुल जीडीपी में बीमा प्रीमियम की हिस्सेदारी करीब 4 फीसदी रही। अमेरिका में यह करीब 11 फीसदी से अधिक है। वहीं बीमा घनत्व या इंश्योरेंस डेंसिटी के मामले में भारत पाकिस्तान और इंडोनेशिया से उपर है।
स्विस रे सिग्मा रिपोर्ट के मुताबिक, 2022-23 में जीवन बीमा घनत्व (प्रति व्यक्ति प्रीमियम) 2021-22 के 69 डॉलर से बढ़कर 70 डॉलर हो गया। वहीं, 2022-23 में समग्र बीमा घनत्व 2021-22 के 91 डॉलर से बढ़कर 2022-23 में 92 डॉलर के स्तर पर पहुंच गया।
2022-23 में सामान्य और हैल्थ इंश्योरेंस बीमा कंपनियों ने 89,492 करोड़ रुपये का हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम (पर्सनल एक्सिडेंट और ट्रैवल को छोड़कर) कलेक्ट किया, जो पिछले साल के मुताबिक 23 फीसदी अधिक है।
राज्यवार देखें तो 2022-23 में पांच राज्यों की कुल हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम में हिस्सेदारी करीब 64 फीसदी रही और देश के अन्य राज्यों की समग्र हिस्सेदारी 36 फीसदी रही। जिन पांच राज्यों का योगदान सर्वाधिक रहा है, उसमें 29.5 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ महाराष्ट्र शीर्ष पायदान पर, कर्नाटक (11%) दूसरे पायदान पर, 10 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ तमिलनाडु तीसरे स्थान पर, 7 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ गुजरात चौथे पायदान पर और 6.5 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ दिल्ली पांचवें पायदान पर रहा है।
भारत की कुल जनसंख्या में लगभग 49 फीसदी महिलाएं हैं और देश की आर्थिक गतिविधियों में उनकी हिस्सेदारी में लगातार वृद्धि हो रही है। IRDAI की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2022-23 में महिलाओं के लिए जारी पॉलिसियों की संख्या लगभग 97.38 लाख है, जो 2021-22 में 34.7 प्रतिशत के मुकाबले कुल जारी पॉलिसियों का 34.20 फीसदी है।
कर्नाटक, केरल, मिजोरम, सिक्कम और मेघालय इस मामले में शीर्ष पांच राज्य हैं, जबकि कुल पॉलिसियों में महिलाओं की हिस्सेदारी के मामले में गुजरात, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और लद्दाख निम्न पांच राज्यों में शुमार हैं।
2022-23 के आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार और इंश्योरेंस रेग्युलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की तरफ से बीमा उद्योग को सपोर्ट करने की दिशा में उठाए गए कई उपायों का जिक्र है, जो नवंबर 2022 में “2047 तक सबके लिए बीमा” मिशन से प्रेरित है, ताकि देश के प्रत्येक नागरिकों को उचित बीमा कवर सुनिश्चित किया जा सके। बीमा सुगम, बीमा वाहक और बीमा विस्तार इस दिशा में उठाए जाने वाले तीन प्रमुख पहले हैं, जिन्हें विशेष रूप से अर्द्ध शहरी इलाकों, ग्रामीण नगरों और गांवों में बीमा पैठ बढ़ाने के लिए लॉन्च किया जाना है।
वहीं आर्थिक सर्वेक्षण (2023-24) में स्विस-रे इंस्टीट्यूट की जनवरी 2024 की रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि अगले पांच वर्षों (2024-28) में भारत में कुल बीमा प्रीमियम की वृद्धि दर 7.1 फीसदी रहेगी, जो वैश्विक (2.4 फीसदी), उभरती अर्थव्यवस्थाओं (5.1 फीसदी) और विकसित अर्थव्यवस्थाओं (1.7 फीसदी) के मुकाबले कहीं अधिक होगी और इस दर के आधार पर जी-20 देशों के बीच सबसे तेज गति से बढ़ने वाला बीमा बाजार होगा। वहीं, बीमा पैठ या इंश्योरेंस पेनिट्रेशन के वित्त वर्ष 23 के 3.8 फीसदी के मुकाबले वित्त वर्ष 35 में बढ़कर 4.3 फीसदी होने की संभावना है।
बजट 2024-25 में स्वास्थ्य मंत्रालय को कुल 90,659 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो 2023-24 के संशोधित अनुमान के मुकाबले 13% अधिक है।
2024-25 बजट के पीआरएस एनालिसिस रिपोर्ट के मुताबिक, नेशनल हेल्थ पॉलिसी 2017 ने (राज्य और केंद्रों को मिलाकर) स्वास्थ्य खर्च को जीडीपी का 2.5 फीसदी रखने की सिफारिश की थी और 2019-20 में यह खर्च जीडीपी के 1.4 फीसदी रहने का अनुमान था। वहीं 2022-23 में सरकार का स्वास्थ्य खर्च जीडीपी का 2 फीसदी रहने की उम्मीद है। 2019 के आंकड़ों के मुताबिक, जहां स्वास्थ्य पर चीन का सरकारी खर्च 3 फीसदी रहा, वहीं दक्षिण अफ्रीका और कोरिया का 5-5 फीसदी, कनाडा का 8 फीसदी, अमेरिका और जर्मनी का 9-9 फीसदी और ब्रिटेन का 8 फीसदी रहा।
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