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Explainer : फैशन ट्रेंड फॉलो करने की आपकी दीवानगी हर दिन प्रदूषण को बढ़ा रही है

  • By: Pragya Shukla
  • Published: Sep 12, 2024 at 07:02 PM
  • Updated: Sep 13, 2024 at 12:21 PM

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। प्रदूषण शब्द सुनते ही ज्यादातर लोगों के दिमाग में गाड़ियां, निर्माण  का काम, फैक्ट्रियां धूल-मिट्टी और पटाखे यही सारी बातें आती हैं, जो कि प्रदूषण का एक बड़ा कारण है भी। 

ऑयल इंडस्ट्रीज की वजह से दुनियाभर में बहुत प्रदूषण होता है और यह इंडस्ट्री प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में से एक है।ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) की साल 2023 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, ऑयल इंडस्ट्रीज का वैश्विक उत्सर्जन में सालाना 15% का योगदान देती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि फैशन इंडस्ट्री भी किसी से पीछे नहीं है।

इस पर यकीन करना शायद आपके लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन यह सच है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और मैकआर्थर फाउंडेशन के अनुसार, यह दूसरी सबसे ज्यादा पानी का इस्तेमाल करने वाली इंडस्ट्री है।

फैशन इंडस्ट्री वैश्विक कार्बन का 2 से 8 फीसदी तक उत्सर्जन करती हैं, जो कि इंटरनेशनल फ्लाइट्स और मैरीटाइम शिपिंग को मिलाकर भी ज्यादा है।

तेजी से बदलते इस दौर में फैशन भी तेजी से बदल रहा है। लोगों के बीच एक-दूसरे से अच्छा दिखने की होड़ लगी रहती है, जिसके लिए वो खूब सारी शॉपिंग करते हैं। लोग सोशल मीडिया पर अपने पसंदीदा सेलिब्रिटीज और इन्फ्लुएंसर को देखते हैं और उन्हीं से प्रभावित होकर खूब कपड़े खरीदने में लग जाते हैं। फिर वो एक कपड़े को एक ही बार पहनते हैं और उसे छोड़ देते हैं, क्योंकि तब तक नया फैशन आ चुका होता है। इसे ही ‘फास्ट फैशन’ कहा जाता है।  

ओसियन जनरेशन की वेबसाइट पर साल 2023 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, फास्ट फैशन शब्द का चलन 1990 के दशक से शुरू हुआ था। जब गारमेंट कंपनियों ने न्यूयॉर्क में कदम रखे थे। दरअसल, कंपनियों ने कपड़ों के उत्पादन के 15 दिन के भीतर ही अपने स्टोर पर कपड़ों को उपलब्ध कराना और बेचना शुरू कर दिया था। उस समय न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसे फास्ट फैशन का नाम दिया था।

विश्वास न्यूज ने पर्यावरण को लेकर काम करने वाले पीड्यू पीपल (Peedu’s People) फाउंडेशन की एक एक्टिविस्ट अवंतिका माथुर से संपर्क किया। हमने फास्ट फैशन के कारण बढ़ते प्रदूषण को लेकर उनसे बातचीत की। उन्होंने हमें बताया, “हमें स्लो फैशन के ट्रेंड को फॉलो करना चाहिए। हमें कपड़ों की क्वांटिटी  यानी संख्या  की जगह उनकी क्वालिटी यानी गुणवत्ता पर फोकस करना चाहिए। हमें अपसाइकलिंग और रीसाइक्लिंग पर फोकस करना चाहिए। अगर हमारा एक या दो बार किसी कपड़े को पहनने के बाद भर गया है, तो हमें उसे डोनेट कर देना चाहिए। या फिर अगर आप चाहें तो उसे सेकंड हैंड कपड़े बेचने वाली वेबसाइट पर डालकर बेच भी सकते हैं। ऐसा करने से कपड़ा कूड़े में ना जाकर साइकिल में बना रहता है और बार-बार इस्तेमाल होता रहता है। अगर किसी कपड़े से आपका दिल भर गया है, लेकिन आप उसे किसी को देना नहीं चाहते हैं, तो आप उसे अन्य तरीके से स्टाइल कर पहन सकते हैं। या फिर उसके डिजाइन में बदलाव कर उसे दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं। इन तरीकों से हम कपड़ों के जरिए होने वाले प्रदूषण को कम कर सकते हैं।”

मैकआर्थर फाउंडेशन के अनुसार, फास्ट फैशन की वजह से लोग ट्रेंड में रहने के लिए ज्यादा से ज्यादा कपड़े खरीदते हैं, जिसकी वजह से कंपनियां ज्यादा कपड़ों का उत्पादन करती हैं। मांग अधिक होने के लिए कंपनियां  कम गुणवत्ता वाले कपड़ों का उत्पाद करती हैं,ताकि लोगों तक कपड़ों को जल्दी और सस्ते में पहुंचाया जा सके। हालांकि, इस वजह से कपड़े जल्दी खराब हो जाते हैं और ट्रेंड से भी चले जाते हैं। फिर लोग उन्हें कबाड़ में फेंक देते हैं और बड़ी मात्रा में इस तरह के कपड़े लैंडफिल साइट्स पर फेंक दिये जाते हैं। जब इन्हें जलाया जाता है, तो इनसे जहरीले पदार्थ और गैसें निकलती हैं, जो कि पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक होते हैं।

मैकआर्थर फाउंडेशन की 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, काफी कम प्रतिशत में कपड़ों को रिसाइकल किया जाता है। कपड़ों के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों का एक फीसदी ही दोबारा कपड़ों को बनाने के लिए इस्तेमाल में आती है।

द राउड अप की साल 2018 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, कपड़ा इंडस्ट्री दुनिया में हर साल 92 मिलियन टन कचरा पैदा करती है। यह इंडस्ट्री लगभग 7 फीसदी तक वैश्विक लैंडफिल कचरा करती है। हर साल वैश्विक स्तर पर 80 से 100 अरब नए कपड़ों का उत्पादन होता है। कपड़े बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली 87 फीसदी सामग्री और फाइबर या तो जलाए जाते हैं या फिर जमीनी कचरे के लिए जिम्मेदार होते हैं। 

क्वांटिस इंटरनेशनल की साल 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, फास्ट फैशन से होने वाले प्रदूषण के तीन मुख्य कारण रंगाई और फिनिशिंग (36%), यार्न बनाने की प्रक्रिया (28%) और फाइबर उत्पादन (15%) हैं। साथ ही रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इस प्रक्रिया में पानी काफी ज्यादा बर्बाद होने के साथ-साथ  प्रदूषित भी होता है। साथ ही यह मिट्टी को भी प्रदूषित  करता है। 

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की साल 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल कपड़ा उत्पादन से कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, 1.2 बिलियन टन होता है। जो कि 2030 तक 60 फीसदी से भी अधिक तक बढ़ने का अनुमान है। 

फैशन इंडस्ट्री पानी की खपत करने वाला दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता उद्योग है। इंग्लैंड की वेबसाइट व्हाट्स ऑन वुल्फ की एक रिपोर्ट के अनुसार, फैशन इंडस्ट्री को एक सूती शर्ट के उत्पादन के लिए लगभग 700 गैलन और एक जोड़ी जींस के उत्पादन के लिए 2,000 गैलन पानी की आवश्यकता होती है, जबकि कपड़ों को रंगने के लिए 5.9 ट्रिलियन लीटर पानी का उपयोग होता है। इस पानी को इस्तेमाल करने के बाद उसे अक्सर खाइयों, नालों या नदियों में बहा दिया जाता है, जिसकी वजह से बड़े स्तर पर पानी प्रदूषित हो रहा है। 

फैशन इंडस्ट्री ऐक्रेलिक, ब्रांड पॉलिएस्टर, और नायलॉन जैसे सिंथेटिक फाइबर का उपयोग करते है। इन फाइबर को बायोडिग्रेड करने में सैकड़ों साल लगते हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्र 30 फीसदी गैर-बायोडिग्रेडेबल माइक्रोप्लास्टिक्स के छोटे-छोटे टुकड़े फैशन इंडस्ट्री के कारण आते हैं। 

गर्मियों में अक्सर लोग सूती कपड़ों को पहनना पसंद करते हैं, लेकिन यह भी पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है। projectcece की 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, कपड़ों को बनाने के लिए कपास का इस्तेमाल किया जाता है और कपास की खेती पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाती हैं, क्योंकि कपास की खेती में ना सिर्फ पानी अधिक लगता है, बल्कि इसके लिए हानिकारक रसायन और उर्वरकों का भी इस्तेमाल किया जाता है, जो कि मिट्टी को दूषित कर देते हैं और उसकी  उर्वरक क्षमता को घटा देते हैं। 

इस पर विस्तृत जानकारी के लिए हमने सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के हेड राकेश सिंह सेंगर से संपर्क किया। उन्होंने हमें बताया, “आजकल फैक्ट्रियां सस्ते में कपड़े बनाने के लिए सिंथेटिक फाइबर और माइक्रो प्लास्टिक का इस्तेमाल करती हैं, जो कि हर तरह से पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं।

उन्होंने सलाह देते हुए कहा, “हमें बचाव के तौर पर पर्यावरण फ्रेंडली कपड़े पहनने चाहिए। लोगों को सिंथेटिक  फाइबर और माइक्रो प्लास्टिक के कपड़ों की जगह हेंप लिनन,बंबू और ऑर्गेनिक कॉटन जैसे मटेरियल के कपड़े खरीदने चाहिए। ये बायोडिग्रेडेबल होते हैं।”

फैशन इंडस्ट्री जंगलों के कम होने का भी एक कारण है। अर्थडे (earthday) की वेबसाइट पर 2023 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, विस्कोस और रेयॉन फेब्रिक्स का कपड़ों को बनाने में काफी इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए लकड़ी की लुगदी का इस्तेमाल किया जाता है और इसके लिए हजारों हेक्टेयर के जंगलों को काटा जा रहा है, जिसके कारण हर साल जंगलों की मात्रा कम होती जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल 200 मिलियन से अधिक पेड़ों को कपड़ों के उत्पादन के लिए काट दिया जाता है। 

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