प्रणब मुखर्जी की आत्मकथा 'द कोलिशन ईयर्स' के आधार पर किया जा रहा यह दावा फेक और मनगढ़ंत है कि उन्होंने अपनी इस पुस्तक में सोनिया गांधी को 'हिंदुओं से नफरत' करने वाला नेता बताया था। पूरी पुस्तक में मुखर्जी ने सोनिया गांधी का जिक्र न तो ऐसे संदर्भ में किया है और न ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उनके लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया है, बल्कि इस पुस्तक में उन्होंने 1996-2012 के बीच की सरकारों में अपनी भूमिका उसी संदर्भ में सोनिया गांधी के साथ अपने रिश्तों का जिक्र किया है, जो सहमति और असहमति के लोकतांत्रिक आचरण पर टिका हुआ था।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर यूजर्स एक अखबार में छपी खबर के स्क्रीनशॉट को अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर शेयर कर रहे हैं, जिसमें पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब ‘द कोलिशन ईयर्स’ का जिक्र है। इस किताब के हवाले से दावा किया जा रहा है कि प्रणब मुखर्जी ने कथित तौर पर अपनी किताब में यह ‘खुलासा’ किया है कि सोनिया गांधी ‘हिंदुओं से नफरत’ करती हैं। यह पुस्तक प्रणब मुखर्जी की बायोग्राफी है, जिसमें 1996-2012 की अवधि के बीच की राजनीतिक गतिविधियों का विस्तार से जिक्र किया है, जिसमें वह खुद भी शामिल थे।
हकीकत में ‘द कोलिशन ईयर्स’ में प्रणब मुखर्जी ने सोनिया गांधी के लिए ऐसे किसी संदर्भ का जिक्र नहीं किया है। बल्कि उन्होंने पुस्तक में कई जगह सोनिया गांधी और उनके बीच के राजनीतिक रिश्तों का भरोसे वाले संदर्भ में जिक्र किया है, जहां सहमति और असहमति दोनों की जगह थी।
पुस्तक में 12 नवंबर 2004 को कांची के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती की गिरफ्तारी का जिक्र है और गिरफ्तारी के समय (दिवाली) को लेकर मुखर्जी ने कैबिनेट की मीटिंग में आपत्ति जताई थी। उन्होंने लिखा है कि गिरफ्तारी के समय को लेकर आपत्ति जताए जाने के मुद्दे पर तत्कालीन प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) के विशेष सलाहकार एम के नारायण भी सहमत थे और फिर उन्होंने शंकराचार्य को तत्काल जमानत पर रिहा किए जाने के निर्देश दिए। इसी संदर्भ के आधार पर वायरल क्लिप में यह फेक दावा किया गया है कि प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में सोनिया गांधी को ‘हिंदुओं से नफरत’ करने वाला नेता बताया था। पूरी पुस्तक में ऐसे किसी प्रसंग और संदर्भ का जिक्र नहीं है।
विश्वास न्यूज के टिपलाइन नंबर +91 9599299372 पर यूजर ने इस वीडियो को भेजकर इसकी सच्चाई बताने का अनुरोध किया है।
सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर कई अन्य यूजर्स ने इस क्लिप को समान संदर्भ में शेयर किया है। प्रणब मुखर्जी की यह किताब 2017 में प्रकाशित हुई थी, जिसके बाद से यह दावा सोशल मीडिया पर शेयर होता रहा है।
वायरल पोस्ट में किया गया दावा प्रणब मुखर्जी की बायोग्राफी ‘द कोलिशन ईयर्स’ का जिक्र है, जो 1996-2012 के बीच की अवधि में देश की राजनीति गतिविधियों का विस्तृत उल्लेख है। वायरल पोस्ट में किए गए दावे की पड़ताल के लिए हमने इस किताब का अध्ययन किया और पाया कि पूरी पुस्तक में ऐसे किसी प्रसंग और संदर्भ का जिक्र नहीं है, जहां प्रणब मुखर्जी ने सोनिया गांधी को ‘हिंदुओं से नफरत’ करने वाला नेता बताया हो, बल्कि ऐसे कई प्रसंग है, जहां उन्होंने सोनिया गांधी और उनके बीच के रिश्तों का सकारात्मक मूल्यांकन किया है।
सबसे पहला उल्लेख ‘1999 इलेक्शन’ चैप्टर में वह बताते हैं, “सोनिया गांधी विपक्ष की सक्रिय नेता थीं। जब संसद सत्र में होता था, तब वह पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं के साथ दिन के एजेंडा और रणनीति को लेकर प्रत्येक सुबह बैठक किया करती थीं। कई मुद्दों पर मेरी और उनकी राय अलग होती थी। हमारी असहमति संसद के दोनों सदनों में विपक्ष को कैसे काम करना चाहिए, को लेकर थी। वे और कांग्रेस सदस्य लोकसभा में बाधा डालने का रास्ता अख्तियार करती थीं, जबकि मेरा और सिंह का तरीका अलग था। हमारा मानना था कि संवाद और जुड़ाव बेहतर काम करने वाला तरीका है।” उन्होंने लिखा है, “….आखिरकार उन्होंने (सोनिया गांधी) हमें कहा, तुम अपने तरीके से राज्य सभा को चलाओ और मैं अपने तरीके से लोक सभा में काम करती हूं।”
चुनाव बाद जब 15 मई को संसद के केंद्रीय कक्ष में सीपीपी की बैठक हुई, तो उसमें सोनिया गांधी को सर्वसम्मति से कांग्रेस पार्टी का नेता चुना गया। मुखर्जी लिखते हैं, “मनमोहन सिंह को उनका नाम पहले प्रस्तावित करना था और फिर मुझे उसका अनुमोदन करना था।” और ऐसा ही हुआ।
अध्याय 10 (टू राष्ट्रपति भवन) में वह एक प्रसंग का जिक्र करते हैं, जो सोनिया गांधी के साथ उनके रिश्तों को स्पष्ट करता है। वह लिखते हैं, “…..हालांकि, इस बात में कोई शंका नहीं है कि सोनिया गांधी मुझे हमेशा संगठन के व्यक्ति के तौर पर देखती थी और यह बात एक घटना से और अधिक स्पष्ट हो जाती है।” मुखर्जी ने आगे लिखा, “…संसद में एक मसले पर जोरदार बहस हो रही थी और सुषमा स्वराज इसकी अगुआई करते हुए सरकार से जवाब मांग रही थीं। इसके तुरंत बाद संसद में हंगामा हुआ और और सभी सदस्य एक-दूसरे पर चिल्लाने लगे। जब दोपहर के खाने के लिए संसद स्थगित हुआ, तब मैंने सुषमा स्वराज से कहा उन्हें संसद को चलने देना चाहिए और मैं आपको आश्वासन देता हूं कि आपको उस मुद्दे पर जवाब मिलेगा, जिसे आपने उठाया है। मेरे आश्वासन के बावजूद हंगामा जारी रहा और पवन बंसल मुझसे मिलने मेरे ऑफिस आए। मैं इसके बाद संसद गया और वहां हंगामे को देखकर मुझे गुस्सा आ गया। गुस्से में मैंने सदस्यों को बोला कि वे इस बात को भूल गए हैं कि वे नेता हैं, लेकिन वे बदमाश बच्चों की तरह बर्ताव कर रहे हैं। मैंने कहा कि मेरी सुषमा स्वराज से बात हुई है कि मैं इस मुद्दे को उठाउंगा, लेकिन किसी को भी इस तरह से संसद को बाधित करने का अधिकार नहीं है।”
मुखर्जी आगे लिखते हैं, “…मेरी नाराजगी को भांपते हुए मुरली मनोहर जोशी ने कहा, दादा बहुत गुस्से में हैं। कोई उन्हें कृपया पानी दें और फिर सोनिया गांधी ने मुझे पानी दिया। इसके बाद सुषमा स्वराज मेरे पास आई और उन्होंने माफी मांगते हुए कहा कि मैं आपका संदेश अपने सहयोगियों तक नहीं पहुंचा पाई। इसके बाद सोनिया गांधी की इस टिप्पणी…..’इसलिए आप राष्ट्रपति नहीं बन सकते!’ के साथ मामला शांत हो गया।”
बताते चलें कि यूपीए के कुछ सहयोगी दलों ने राष्ट्रपति पद के लिए मुखर्जी का नाम प्रस्तावित किया था, लेकिन सोनिया गांधी ने यह कहते हुए मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाने से इनकार कर दिया था, “……कुछ राजनीतिक दलों की तरफ से आपका नाम राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर सुझाया गया है, लेकिन मेरे लिए ऐसा करना मुश्किल होगा, क्योंकि आप सरकार और संसद में पार्टी के मुख्य स्तंभ है।”
इसके बाद मुखर्जी 12 नवंबर 2004 को कांची के शंकराचार्य की गिरफ्तारी के मामले को लेकर अपने तीखे तेवर का जिक्र करते हुए लिखते हैं, “…यह वह समय था जब देश में दिवाली मनाई जा रही थी। कैबिनेट मीटिंग के दौरान मैंने गिरफ्तारी के समय की आलोचना की और पूछा कि क्या भारतीय राज्य की धर्मनिरपेक्षता का ताना-बाना केवल हिंदू साधु-संतों तक ही सीमित है? क्या राज्य ईद के दौरान किसी मुस्लिम मौलवी को गिरफ्तार करने की हिमाकत करेगा? तब के प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार एम के नारायणन मेरी बात से सहमत थे। इसके बाद मैंने तुरंत शंकराचार्य को जमानत पर रिहा किए जाने के निर्देश दिए।”
एक अन्य प्रसंग में भी मुखर्जी ने सरकार में अपनी अहम भूमिका का जिक्र किया है। ‘कोलिशन कंसल्टेशंस’ चैप्टर में मुखर्जी बताते हैं, “….जब अन्य दलों के साथ बातचीत पूरे जोर-शोर से चल रही थी, तब मुझे अहमद पटेल के जरिए सूचित किया गया कि मुझे शरद पवार, लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान, शिबू सोरेन, के चंद्रशेखर राव (के सी आर) समेत कुछ अन्य नेताओं से बात करनी चाहिए। सोनिया गांधी ने वामपंथी नेताओं (हरकिशन सिंह सुरजीत और ज्योति बसु) से बात की और इसके बाद मैंने और अहमद पटेल ने इस बात को आगे बढ़ाया।” वे आगे लिखते हैं, “सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, नटवर सिंह और अहमद पटेल की मौजूदगी में मैंने जिस फॉर्मूले पर काम किया, वह यह था कि जिस पार्टी को लोकसभा में पांच सीटें हैं, उसे एक कैबिनेट रैंक का पोर्टफोलियो मिलेगा। हालांकि, इस फॉर्मूले का अपवाद राम विलास पासवान थे, जिनकी पार्टी के पास कुल चार सीटें थीं।”
उपरोक्त सभी प्रसंग प्रणब मुखर्जी की किताब ‘द कोलिशन ईयर्स’ से हैं और यह साबित करते हैं कि प्रणव मुखर्जी ने सोनिया गांधी का जिक्र वैसे संदर्भ में कहीं नहीं किया है, जैसा कि वायरल पोस्ट में दावा किया गया है।
सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे के मामले वाले अध्याय में प्रणब मुखर्जी ने पत्रकार रशीद किदवई की किताब (सोनिया: ए बायोग्राफी) का जिक्र किया है। वायरल पोस्ट को लेकर हमने रशीद किदवई से संपर्क किया। उन्होंने पुष्टि करते हुए बताया कि वायरल पोस्ट में किया गया दावा गलत है। उन्होंने कहा कि प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक जीवन काफी लंबा रहा था और उन्होंने कांग्रेस की सरकार और पार्टी के भीतर बड़ी और जिम्मेदारी वाली भूमिकाएं निभाईं। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी के साथ उनके बेहतर संबंध थे और वे उनकी तारीफ भी किया करते थे।
हमारी जांच से स्पष्ट है कि वायरल प्रणब मुखर्जी की बायोग्राफी ‘द कोलिशन ईयर्स’ के आधार पर किया गया यह दावा फेक है कि मुखर्जी ने अपनी इस आत्मकथा में सोनिया गांधी को ‘हिंदुओं से नफरत’ करने वाली नेता बताया था। गौरतलब है कि ‘द कोलिशन ईयर्स’ (2017 में प्रकाशित) प्रणब मुखर्जी लिखित तीन पुस्तकों की सीरीज की आखिरी किताब है। इस सीरीज की दो अन्य किताबें ‘द ड्रामेटिक डिकेड: द इंदिरा गांधी ईयर्स’, ‘द टर्बुलेंट ईयर्स’ (1980-1996) हैं। मुखर्जी 25 जुलाई 2012 को भारत के 13वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे।
राजनीति, अर्थव्यवस्था समेत अन्य मुद्दों की विस्तृत जानकारी वाले लेखों को आप विश्वास न्यूज के एक्सप्लेनर सेक्शन में पढ़ सकते हैं।
निष्कर्ष: प्रणब मुखर्जी की आत्मकथा ‘द कोलिशन ईयर्स’ के आधार पर किया जा रहा यह दावा फेक और मनगढ़ंत है कि उन्होंने अपनी इस पुस्तक में सोनिया गांधी को ‘हिंदुओं से नफरत’ करने वाला नेता बताया था। पूरी पुस्तक में मुखर्जी ने सोनिया गांधी का जिक्र न तो ऐसे संदर्भ में किया है और न ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उनके लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया है, बल्कि इस पुस्तक में उन्होंने 1996-2012 के बीच की सरकारों में अपनी भूमिका उसी संदर्भ में सोनिया गांधी के साथ अपने रिश्तों का जिक्र किया है, जो सहमति और असहमति के लोकतांत्रिक आचरण पर टिका हुआ था।
सब को बताएं, सच जानना आपका अधिकार है। अगर आपको ऐसी किसी भी खबर पर संदेह है जिसका असर आप, समाज और देश पर हो सकता है तो हमें बताएं। हमें यहां जानकारी भेज सकते हैं। हमें contact@vishvasnews.com पर ईमेल कर सकते हैं। इसके साथ ही वॅाट्सऐप (नंबर – 9205270923) के माध्यम से भी सूचना दे सकते हैं।